Chikheang Publish time 2025-12-5 15:38:11

गोरखपुर चिड़ियाघर में गैंडे खा रहे तीन क्विंटल आहार, गंगा प्रसाद चबाता है छाल

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गैंडा हर व गौरी को दिन भर दिया जाता चोकर, खीरा व गाजर। जागरण



जागरण संवाददाता, गोरखपुर। चिड़ियाघर में रहने वाले वन्यजीवों का जीवन जितना रोचक है, उतना ही विशिष्ट भी। यहां हर प्रजाति का अपना अलग खान-पान और आदतें हैं। कोई दिन में सवा से डेढ़ क्विंटल तक आहार लेता है, तो कोई रातभर पेड़ की डालियों की छाल और पत्ते चबाता रहता है। हालांकि शेर, बाघ और तेंदुए जैसे मांसाहारी वन्यजीव अपने निर्धारित आहार पर ही रहते हैं, लेकिन शाकाहारी जीवों का भोजन चक्र काफी लंबा और विविधतापूर्ण है।

चिड़ियाघर में मौजूद दो गैंडे हर और गौरी को प्रतिदिन करीब तीन क्विंटल आहार दिया जाता हैं। उनका पूरा दिन विभाजित भोजन पर आधारित होता है। सुबह चोकर, दोपहर में गाजर, खीरा और अन्य हरी सब्जियां, जबकि शाम को भरपूर हरा चारा दिया जाता है। चिड़ियाघर प्रशासन के अनुसार, एक गैंडा अपने कुल वजन का लगभग पांच से छह प्रतिशत भोजन प्रतिदिन करता है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

आमतौर पर एक वयस्क गैंडे का वजन 30 से 40 क्विंटल के बीच होता है, ऐसे में उनका भोजन स्वाभाविक रूप से अधिक होता है। इसी तरह चिड़ियाघर का आकर्षण ‘गंगाप्रसाद’ हाथी भी अपनी अलग दिनचर्या के लिए जाना जाता है। उसे दिन में 50 किलो आहार दिया जाता है, जिसमें गुड़, चोकर, हरी सब्जियां और फल शामिल होते हैं। लेकिन यह केवल उसका दिन का भोजन है। रात के समय हाथी के खाने की विशेष व्यवस्था की जाती है।

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चिड़ियाघर के उप निदेशक एवं वरिष्ठ पशु चिकित्सक डा. योगेश प्रताप सिंह बताते हैं कि हाथी जब तक खड़ा रहता है, वह खाता ही रहता है। इसी वजह से रातभर खाने के लिए उसे पेड़ों की डालियां और हरे पत्ते दिए जाते हैं, जिनकी छाल वह धीरे-धीरे चबाकर खाता रहता है। इसके अलावा मांसाहारी वन्यजीवों को निर्धारित मात्रा में भोजन दिया जाता है। शेर और बाघ को ठंड में 14 किलों तो तेंदुआ को 10 किलो मांस दिया जाता। इसी तरह से जंगली बिल्ली, भेड़िया समेत अन्य मांसाहारी वन्यजीव का भी भोजन निर्धारित है।

डाॅ. योगेश ने बताया कि चिड़ियाघर में वन्यजीवों का भोजन न केवल उनकी सेहत से जुड़ा होता है बल्कि उनके व्यवहार, मूड और सक्रियता पर भी असर डालता है। यही कारण है कि यहां हर जीव के लिए अलग और वैज्ञानिक तरीके से तय खान-पान की व्यवस्था की जाती है, जिससे वह प्राकृतिक जीवनशैली के अधिकतम करीब रह सके।
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