cy520520 Publish time 2025-12-7 15:38:20

12वीं तक की पढ़ाई के 22 लाख! प्राइवेट स्कूल ने कैसे तोड़ी मिडिल क्लास की कमर, वायरल हो रही CA की पोस्ट

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भारत में स्कूली फीस ने तोड़ी मिडिल क्लास की करम। (प्रतीकात्मक)



डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारत में मिडिल क्लास परिवरों के लिए शिक्षा हमेशा पहली प्राथमिकता रही है। लेकिन 2025 में इसके चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। चर्टर्ड अकाउंटेंट और टीचर मीनल गोयल की एक लिंक्डइन पोस्ट ने देश भर में शिक्षा की बढ़ती लागत पर नई बहस छेड़ दी है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

मीनल गोयल के लिंक्डइन पोस्ट के अनुसार, एक बच्चे को पहली से बाहरवीं कक्षा तक पढ़ाने का खर्च अब तकरीबन 22 लाख तक पहुंच गया है।
मीनल के अनुसार, 1 से 12वीं क्लास के खर्च का गणित

मीनल गोयल ने 2025 के आंकड़ों के आधार पर एक विस्तृत खर्च रिपोर्ट साझा की है। उनके अनुसार, एक “ठीक-ठाक“ (Decent) स्कूल में पढ़ाई का खर्च कुछ इस तरह है।

[*]प्राइमरी स्कूल (कक्षा 1–5): 5.75 लाख रुपए
[*]मिडिल स्कूल (कक्षा 6–8): 5.9 लाख रुपए
[*]हाई स्कूल (कक्षा 9–12): 9.2 लाख रुपए
[*]कुल खर्च: 20 से 22 लाख रुपए


मीनल गोयल ने लिखा, “किताबें, ड्रेस, ट्यूशन, ट्रांसपोर्ट, गैजेट्स और कोचिंग, इसन सब कुछ जोड़कर यह आंकड़ा आता है। प्रीमियम स्कूलों में तो यह खर्च दोगुना भी हो सकता है। 2025 में भारत में स्कूली शिक्षा की वास्तविक लागत वाकई डरावनी है। स्थिति इतनी विकट है कि कई अभिभावक अब अपने बच्चों को स्कूल भेजने से कतराने लगे हैं।“


आसमान छूती फीस और रेगुलेशन की कमी

नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस की 2024 की रिपोर्ट गोयल के दावों की पुष्टि करती है। पिछले एक दशक में शहरी प्राइवेट स्कूलों की फीस में 169% की वृद्धि हुई है, जो वेतन वृद्धि और महंगाई दर से कहीं अधिक है।

दिल्ली, बेंगलुरु और हैदराबाद जैसे महानगरों में फीस में सबसे ज्यादा उछाल देखा गया है। लोकलसर्कल्स के 2025 के सर्वे के अनुसार, 81% अभिभावकों ने 10% या उससे अधिक की फीस वृद्धि का सामना किया, जबकि 22% ने तो 30% से अधिक की बढ़ोतरी झेली। हालांकि दिल्ली में फीस नियंत्रण के नियम हैं, लेकिन कई स्कूल अन्य शुल्क के नाम पर नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं।
कर्ज के साये में देश का भविष्य

आज भारतीय परिवार विकसित देशों जितनी फीस चुका रहे हैं, लेकिन गुणवत्ता के स्तर पर अब भी सवालिया निशान हैं। गोयल ने एक ऐसे दंपती का जिक्र किया है, जिन्होंने भारी मन से अपने बच्चे को स्कूल न भेजने का फैसला लिया। उन्होंने बताया कि यह शिक्षा में विश्वास की कमी नहीं बल्कि सिर्फ इसलिए था क्योंकि वे इसका भुगतान नहीं कर सकते थे।

आज का मध्यमवर्ग अपने बच्चों की शिक्षा के लिए या तो लोन ले रहा है या अपनी बुनियादी जरूरतों में कटौती कर रहे हैं।

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