Chikheang Publish time 2025-12-9 01:43:37

122 वर्ष बाद खुल रहा विश्व धरोहर Konark temple का गर्भगृह, एएसआई ने शुरू की रेत हटाने की ऐतिहासिक प्रक्रिया

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फाइल फोटो।


जागरण संवाददाता, भुवनेश्वर। यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल कोणार्क सूर्य मंदिर के संरक्षण इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय जुड़ गया है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने सोमवार को गर्भगृह में भरी रेत को हटाने की बहुप्रतीक्षित प्रक्रिया की शुरुआत कर दी।    13वीं शताब्दी में निर्मित यह अद्वितीय कृति भारतीय स्थापत्य और सूर्य उपासना की महान धरोहर मानी जाती है। इसके गर्भगृह को 1903 में ब्रिटिश प्रशासन ने संरचनात्मक कारणों से रेत और पत्थरों से भरकर सील कर दिया था।   
परंपरा और विज्ञान के मेल से अभियान की शुरुआत तब से लेकर अब तक पूरे 122 वर्षों तक यह बंद रहा। अभियान का शुभारंभ पारंपरिक विधि-विधानों के साथ किया गया। अनुष्ठान पूर्ण होने के बाद एएसआई की विशेषज्ञ टीम ने गर्भगृह के प्रथम मंडप के पश्चिमी हिस्से में 4 फुट × 4 फुट की सुरंग बनाकर रेत हटाने का कार्य आरंभ किया।    इसके साथ ही दीवार की मजबूती का आकलन करने के लिए 17 इंच की कोर ड्रिलिंग भी की गई। पूरी प्रक्रिया एएसआई अधीक्षक डीबी. गड़नायक और क्षेत्रीय निदेशक दिलीप खमारी की देखरेख में हुई। 10 विशेषज्ञों की टीम ने स्थल की संरचनात्मक स्थिति की बारीकी से जांच की।

तकनीकी जांच ने खोले गर्भगृह के अंदरूनी रहस्य

गर्भगृह की आंतरिक स्थिति जानने के लिए केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (CBRI), रुड़की ने लेजर स्कैनिंग, एंडोस्कोपिक जांच और रोबोटिक कैमरों का उपयोग किया।

सर्वेक्षण में सामने आया कि भीतर लगभग 17 फीट सघन रेत अब भी मौजूद है। वहीं, छत को सहारा देने वाले लोहे के बीम और विशाल पत्थर अस्थिर अवस्था में लटके पाए गए, जो संरचना की वर्तमान संवेदनशीलता को दर्शाते हैं।

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संरक्षण यात्रा का दशकभर लंबा सफर कोणार्क के संरक्षण पर वर्ष 2011 में एक अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित की गई थी। इसके बाद ओडिशा हाई कोर्ट ने मंदिर की स्थिति की निगरानी के लिए अमीकस क्यूरी की नियुक्ति की।    लंबे विमर्श और वैज्ञानिक अध्ययनों के बाद वर्ष 2020 में एएसआई की उच्चस्तरीय बैठक में रेत हटाने की मंजूरी प्रदान की गई। एएसआई अधीक्षण पुरातत्वविद् डीबी. गड़नायक ने बताया कि कोर ड्रिलिंग से दीवारों की मोटाई और संरचनात्मक क्षमता का पता चलेगा।

विश्व धरोहर की नई आशा

चल रही प्रक्रिया से कोणार्क सूर्य मंदिर के गर्भगृह की स्थिरता, क्षति की प्रकृति और भविष्य के संरक्षण उपायों पर निर्णायक जानकारी मिलने की उम्मीद है। यह कदम केवल वैज्ञानिक कार्यवाही ही नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक स्मृति और ऐतिहासिक गौरव को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक प्रयास भी है।
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