Chikheang Publish time 2025-12-10 13:37:19

फेल ऑपरेशन पर फैसला: चीरा लगाने की बजाय फाड़ दिया पूरा पेट, अब डॉक्टर को देना होगा 16.51 लाख का हर्जाना

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जिला उपभोक्ता संरक्षण व प्रतितोष आयोग। फाइल फोटो



संवाद सूत्र, मुंगेर। जिला उपभोक्ता संरक्षण व प्रतितोष आयोग ने 2019 के एक मामले में शहर के एक प्रतिष्ठित चिकित्सक सह सर्जन को 16.51 लाख रुपये वादी को भुगतना करने का आदेश दिया है। यह मामला एक किशोर के एपेंडिक्स की असफल सर्जरी से जुड़ा हुआ है। इस मामले में पीड़ित पक्ष ने 28 नवंबर 2019 को वाद दायर किया था। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

इस मामले में आयोग ने सर्जन को पीड़ित पक्ष को 16.51 लाख रुपये की राशि भुगतान करने का आदेश दिया है तथा कहा है कि यदि निर्धारित अवधि में यह राशि भुगतान नहीं की जाती है तो संबंधित सर्जन को नौ प्रतिशत की दर से ब्याज का भुगतान करना होगा। इस मामले में मानवाधिकार कार्यकर्ता ओमप्रकाश पोद्दार ने कहा कि जनहित में ऐसे चिकित्सक के निबंधन को रद करने की सिफारिश की जानी चाहिए।
क्या है मामला?

जमालपुर सदर बाजार धर्मशाला रोड निवासी समर शेखर को एक अगस्त 2019 को अचानक पेट में काफी दर्द होने लगा। इस पर स्वजन उसे नीलम सिनेमा के निकट स्थित एक प्रसिद्ध सर्जन के यहां ले गए। जहां सर्जन ने कुछ जांच कर मरीज को अपेंडिसाइटिस होने की बात कही और तत्काल लेप्रोस्कोपिक विधि से सर्जरी का सुझाव दिया। अगले दिन दो अगस्त 2009 को लेप्रोस्कोपिक विधि से सर्जरी किया गया, जो असफल रहा।

इसके बाद डॉक्टर ने अभिभावक की बिना सहमति से पूरे पेट में चीड़ा लगा दिया। इसके बाद भी मरीज को पांच दिनों में पीड़ा कम नहीं हुई तो डॉक्टर ने मरीज को घर ले जाने का सलाह दी। स्वजन के काफी दबाव देने के बाद डॉक्टर ने अस्पताल का खर्च लेकर मरीज को छह अगस्त 2019 को रेफर किया।

जहां से उसे भागलपुर के एक निजी अस्पताल ले जाया गया, पर वहां यह कहकर उसका इलाज करने से इंकार कर दिया गया कि बच्चे का ऑपरेशन इस प्रकार किया गया है कि उसे मृत्यु के करीब पहुंचा दिया गया है। इसके बाद एमएमआरआई कोलकाता में बच्चे का ऑपरेशन कर उसकी जांच बचाई गई। इस प्रकार बच्चे के इलाज में आठ लाख से अधिक की रशि खर्च हो गई।
अपेंडिक्स परफोरेशन के कारण खोला पेट

आयोग को दिए अपने लिखित जबाब में कहा कि अपेंडिक्स परफोरेशन होने के अभास होने पर मरीज का पेट खोल दिया। इसके अलावा आंतों पर फ्रिवीनस फ्लेक जमा हुआ था तथा अपेंडिक्स के आसपास पस जैसा फ्लूइड जमा था। ऐसा पाने के बाद जहां तक संभव था अपेंडिक्स काट कर निकाल दिया गया।

वहीं चिकित्सक ने यह स्वीकार किया कि कोलकाता में जो इलाज हुआ, उसमें आंत में जो छेद था, उसे बंद कर दिया और अपेंडिक्स के स्टम्प का फिर से ऑपरेशन कर शेष बचे अपेंडिक्स को बहार कर दिया गया।
आयोग ने मामले को बताया अमानवीय

इस मामले की सुनवाई करते हुए आयोग के अध्यक्ष रमण कुमार सिन्हा ने कहा कि आपरेशन करने से पहले सर्जन को चाहिए कि वह आवश्यक जांच के बाद ही ऑपरेशन करते। आभास के आधार पर ऑपरेशन कराना यह दर्शाता है कि डॉक्टर ऑपरेशन नहीं, बल्कि प्रयोग कर रहे थे।

अपेंडिक्स के ऑपरेशन में पेट के नीचे दाहिने ओर छोटा चीरा लगाकर अपेंडिक्स को निकाल लिया जाता है, बल्कि यहां छोटा चीरा लगाने के बजाय गले से लेकर पेट के अंतिम छोर तक शरीर को चीड़ दिया गया। यह अमानवीय प्रतीत होता है।
आयोग ने दिया निर्देश

इस मामले में आयोग ने संबंधित डॉक्टर को वादी को चिकित्सा में किए खर्च 8.50 हजार का छह प्रतिशत ब्याज के साथ भुगतान वाद दायर करने की तिथि से प्रदान करने। मानसिक तथा शारीरिक कष्ट के लिए दो लाख रुपये, वाद खर्च के रूप में 50 हजार रुपये, अवयस्क बच्चे के शरीर को पोस्टमार्टम की तरह चीर कर विकृत करने के एवज में प्रतिकर के रूप में पांच लाख रुपये का भुगतान करने तथा आदेश की तिथि से 60 दिनों के अंदर भुगतान नहीं करने की स्थिति में पूरी राशि पर नौ प्रतिशत ब्याज के साथ भुगतान करने का निर्देश दिया।
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