cy520520 Publish time 2025-12-10 15:07:25

Black Rice Farming से बदली किस्मत: उच्च पैदावार और भारी मुनाफे से खेती बनी फायदे का सौदा, काला धान से मधुमेह और हृदय रोग से भी बचाव

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बिहार में काला धान की खेती कई जिलों में



डिजिटल डेस्क, पटना। बिहार के कई जिलों में खेती का परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। लंबे समय तक पारंपरिक धान और गेहूं की पैदावार पर निर्भर रहने वाले किसान अब आधुनिक किस्मों और उन्नत तकनीक से खेती कर अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत कर रहे हैं। इसी क्रम में ‘काला धान’ या काला अमरूद की नई प्रजाति ने किसानों के बीच नई उम्मीदें जगा दी हैं। जहां पहले किसान मौसम की मार और सीमित आय के कारण खेती को घाटे का धंधा समझने लगे थे, वहीं अब काला धान ने उन्हें बेहद कम समय में भरपूर लाभ देने का रास्ता दिखाया है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

नवीन खेती के इस मॉडल की शुरुआत जिलों के विभिन्न गांवों में हो चुकी है। कई किसानों ने पहली बार काला अमरूद और काला गेहूं की फसल लेकर बाजार में शानदार बिक्री दर्ज की है।

खेती की इस नई तकनीक को अपनाने वाले किसानों का कहना है कि कम लागत, कम पानी और कम श्रम के बावजूद काला धान की पैदावार पारंपरिक फसलों से कहीं बेहतर है। यही वजह है कि इस फसल में किसानों की दिलचस्पी तेजी से बढ़ रही है।

किसानों के अनुभव बताते हैं कि काला धान की फसल में पोषक तत्वों की मात्रा अधिक होती है और बाजार में इसकी मांग लगातार बढ़ रही है।

स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोगों में यह धान बेहद लोकप्रिय होता जा रहा है क्योंकि इसमें एंटीऑक्सीडेंट, आयरन, फाइबर और कई सक्रिय पोषक तत्व मौजूद होते हैं।

वैज्ञानिक भी मानते हैं कि काला धान मधुमेह और हृदय रोग से बचाव में सहायक हो सकता है। यही कारण है कि सुपरमार्केट और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर काला धान और उससे बने उत्पादों की कीमत आम धान के मुकाबले कई गुना अधिक है।

किसानों के अनुसार काला धान की प्रति बीघा पैदावार पारंपरिक धान के बराबर होती है, लेकिन बाजार मूल्य साधारण धान से तीन से चार गुना ज्यादा मिलता है।

वहीं काला गेहूं का आटा तो बाजार में और महंगा बिक रहा है। इससे किसानों की सालाना आमदनी में उल्लेखनीय बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है।

किसानों ने बताया कि पहले जहां साधारण गेहूं का आटा 30–35 रुपये प्रति किलो बिकता था, वहीं काला गेहूं का आटा बाजार में 80–100 रुपये प्रति किलो तक आसानी से बिक जाता है।

फसल की सफलता के पीछे कृषि वैज्ञानिकों की महत्वपूर्ण भूमिका है। विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों ने वर्षों की मेहनत के बाद काला अमरूद और काला गेहूं की उन्नत किस्म तैयार की है।

कई जगह किसानों को वैज्ञानिकों द्वारा प्रशिक्षण दिया गया है, कैसे खेत तैयार करें, पौधों की रोपाई कैसे करें और फसल को रोगों से कैसे बचाएं। प्रशिक्षण पाने के बाद किसानों ने इस फसल को अपने खेत में लगाया और पहली ही बार में अच्छे परिणाम मिले।

इस फसल को अपनाने वाले किसानों में से कुछ बुजुर्ग किसान ऐसे भी हैं, जिन्होंने जीवन भर पारंपरिक खेती ही की थी। नई तकनीक से जुड़ने में शुरुआती संकोच था, लेकिन जब परिणाम सामने आए, तो उनका उत्साह दोगुना हो गया।

काला धान की फसल काटते समय किसानों के चेहरे पर जो उम्मीद और संतोष दिखाई दिया, उसने इस बात को साबित कर दिया कि खेत फिर से किसान की खुशहाली का आधार बन सकते हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले वर्षों में काला धान और काला अमरूद की मांग और बढ़ेगी। जैविक और पौष्टिक खाद्य पदार्थों की मांग पहले से ही तेजी से बढ़ रही है।

ऐसे में यदि सरकार किसानों को उचित बाजार, बीज उपलब्धता और तकनीकी सहयोग प्रदान करे, तो यह फसल बिहार की कृषि अर्थव्यवस्था को नए आयाम दे सकती है।

एक ओर जहां आधुनिक खेती किसानों के जीवन में नई रोशनी लेकर आ रही है, वहीं दूसरी ओर यह संदेश भी दे रही है कि नए प्रयोग ही कृषि को भविष्य में टिकाऊ और लाभकारी बना सकते हैं।

काला धान की बढ़ती लोकप्रियता इस बदलाव का मजबूत संकेत है कि अब किसान केवल उत्पादक नहीं, बल्कि स्मार्ट एग्री-उद्यमी बनते जा रहे हैं।
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