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जलवायु परिवर्तन से कश्मीर में बड़े बदलाव, पिछ ...


कश्मीर तरसेगा अपने हिस्से की बर्फ के लिए? 5 सालों में 23% कम बर्फ मिली

जम्मू। यह बुरी खबर हो सकती है कि कश्मीर भविष्य में अपने हिस्से की बर्फ के लिए तरसेगा क्योंकि कश्मीर में बर्फ तेजी से कम हो रही है। इंडियन मेटियोरोलाजिकल डिपार्टमेंट के सैटेलाइट-बेस्ड असेसमेंट से पता चलता है कि कश्मीर में पिछले पांच सालों में बर्फ 23 परसेंट कम हुई है। यह ट्रेंड घाटी के सर्दियों के पैटर्न में एक बड़े बदलाव का संकेत देता है।




सर्दियों की शुरुआत में होने वाली बर्फबारी, जो कभी गुलमर्ग, सोनमर्ग, गुरेज, शोपियां की पहाड़ियों और पीर पंजाल की ढलानों पर एक भरोसेमंद बात थी, में तेजी से कमी आई है। आईएमडी के रिकार्ड बताते हैं कि 2019 और 2024 के बीच नवंबर में होने वाली बर्फबारी 40-45 परसेंट और दिसंबर में होने वाली बर्फबारी लगभग 28 परसेंट कम हुई है। इस ट्रेंड के साथ तापमान भी बढ़ रहा है, जिसमें मिनिमम और मैक्सिमम दोनों रीडिंग लगातार ऊपर की ओर जा रही हैं, और सर्दियों की शुरुआत में गर्म मौसम आम होता जा रहा है।




आईएमडी इस बदलाव का कारण कमजोर वेस्टर्न डिस्टर्बेंस और चल रहे वार्मिंग ट्रेंड को मानता है। आईएमडी के अधिकारी बताते हैं कि हमारा डेटा साफ दिखाता है कि कश्मीर में तेज बर्फबारी कम हो रही है। तापमान अक्सर नार्मल से 1-2 डिग्री ज्यादा होता है, और बर्फबारी में देरी हो रही है।
इसका असर जमीन पर पहले से ही दिख रहा है। बागवानों का कहना है कि सूखी मिट्टी और देर से बर्फ गिरने से सेब के पेड़ों को नुकसान हो रहा है। पुलवामा के एक बागवान गुलाम नबी बताते थे कि “बर्फ मिट्टी के लिए बहुत जरूरी है। इसके बिना, जमीन सूख जाती है और कीड़े बढ़ जाते हैं। शोपियां के एक किसान के मुताबिक, “अगर जनवरी भी सूखा रहा, तो हमारे बागों को पूरे साल नुकसान होगा। हम समय पर बर्फबारी पर निर्भर हैं।




टूरिज्म, जो कश्मीर की सर्दियों की इकानमी का एक बड़ा हिस्सा है, वह भी कमजोर है। होटल वालों का कहना है कि जब दिसंबर में बर्फ नहीं पड़ती, तो गुलमर्ग में सर्दियों की शुरुआत में टूरिस्ट आने में तेजी से कमी आती है, जिससे स्की स्लोप सफेद के बजाय भूरे हो जाते हैं।
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि बर्फ के घटते कवर के लंबे समय के असर गंभीर हो सकते हैं। बर्फ पिघलने से झरने के पानी का बहाव कम होना, मिट्टी की नमी कम होना, और खेती पर बढ़ता दबाव, खासकर कश्मीर के सेब उगाने वाले इलाकों में। इंडिपेंडेंट मौसम विज्ञानी फैजान आरिफ के बकौल, कश्मीर में बर्फ का घटता कवर पिछले दो दशकों में, खासकर पिछले पांच से छह सालों में, सर्दियों के व्यवहार में साफ बदलाव दिखाता है। वे कहते थे कि इन सर्दियों के दौरान बर्फबारी की गतिविधि लगातार कमजोर रही है, खासकर पहाड़ियों और पहाड़ों पर जहां आमतौर पर बर्फ का एक स्थिर ढेर बना रहता है। कई सर्दियों में लंबे समय तक सूखा रहा, जिसमें सिर्फ थोड़ी देर के लिए बर्फबारी हुई जो जमाव को बनाए रखने के लिए काफी नहीं थी।




आरिफ बताते थे कि कम और कमजोर वेस्टर्न डिस्टर्बेंस, सामान्य से ज्यादा तापमान के साथ मिलकर, बर्फबारी की क्षमता को कम कर दिया है और पिघलने की रफ्तार बढ़ा दी है। उनका कहना था कि कमजोर बर्फबारी, लगातार बारिश की कमी, और ज्यादा तापमान के मिले-जुले असर ने धीरे-धीरे मौसमी बर्फ कवर को कम कर दिया है। यह ट्रेंड गर्मियों और पतझड़ के महीनों में ग्लेशियर की स्थिरता और पानी की उपलब्धता के लिए गंभीर चिंताएं पैदा करता है।





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Deshbandhu Desk



Jammu Kashmir









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