deltin33 Publish time 2025-12-11 22:01:14

Bhasm Aarti: उज्जैन में महाकाल को क्यों चढ़ाई जाती है भस्म? पढ़ें इस आरती की अनोखी मान्यता

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Bhasm Aarti: भस्म आरती का महत्व



धर्म डेस्क, नई दिल्ली। मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इस मंदिर की सबसे बड़ी और विशिष्ट पहचान यहां होने वाली भस्म आरती है। यह आरती केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह जीवन के एक गहरे सत्य मृत्यु का प्रतीक है। महाकाल मंदिर ही एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है, जहां शिव का यह अनूठा शृंगार किया जाता है। भस्म भगवान शिव को अर्पित की जाती है, जो उन्हें अत्यंत प्रिय है। आइए महाकाल (Mahakaleshwar Temple Ujjain) की भस्म आरती से जुड़ी प्रमुख बातों को जानते हैं, जो इस प्रकार हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

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भस्म चढ़ाने का रहस्य और मान्यता (Sacred Ash Significance)

[*]जीवन का अंतिम सत्य - भस्म आरती का मूल संदेश वैराग्य और मृत्यु का सत्य है। शिव को काल का नियंत्रक कहा जाता है।
[*]मान्यता - भस्म यह दर्शाती है कि संसार की हर चीज नश्वर है और अंत में राख में मिल जानी है। शिव स्वयं भस्म धारण करके यह संदेश देते हैं कि भौतिक सुख-सुविधाएं क्षण भर नष्ट हो जाती हैं, जबकि आत्मा अमर है। उनके भस्म धारण करने का मतलब है कि उन्होंने मृत्यु पर विजय पा ली है, इसलिए उन्हें महाकाल भी कहा जाता है।
[*]निराकार स्वरूप - यह आरती ब्रह्ममुहूर्त में होती है, जब बाबा महाकाल अपने निराकार स्वरूप में होते हैं। इस स्वरूप के दर्शन से शांति और मोक्ष मिलता है।
[*]नकारात्मकता का नाश - मान्यता है कि इस आरती के दर्शन से सभी नकारात्मक ऊर्जा, बुरी शक्तियां और काली नजर खत्म हो जाती हैं, और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
[*]मोक्ष की प्राप्ति - यह आरती जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्ति दिलाकर मोक्ष की ओर प्रेरित करती है।
[*]पवित्र भस्म - लंबे समय पहले महाकाल के शृंगार के लिए भस्म श्मशान घाट की राख से लाई जाती थी। यह प्रक्रिया पंचतत्वों में विलीन हुए देह की राख को शिव को समर्पित करने की वैराग्य परंपरा थी। लेकिन अब गाय के गोबर और चंदन से बनी भस्म का उपयोग किया जाता है।
[*]रोगों का नाश - भस्म को शुद्ध माना जाता है और यह नकारात्मक ऊर्जा को दूर करती है। साथ ही यह वैराग्य और त्याग का भी प्रतीक है।

भस्म आरती से जुड़े नियम और रहस्य (Bhasm Aarti Ritual)

[*]समय - यह सुबह 4 बजे मंगला आरती के रूप में होती है।
[*]घूंघट का विधान - आरती के दौरान महिलाओं को घूंघट करना जरूरी होता है, क्योंकि माना जाता है कि इस समय भगवान निराकार रूप में होते हैं और उनके इस स्वरूप के दर्शन की अनुमति नहीं होती है।
[*]पुजारी के वस्त्र - पुजारी भी केवल धोती पहनकर आरती करते हैं, अन्य वस्त्र धारण नहीं किए जाते।
[*]पवित्र भस्म - भक्त इस भस्म को प्रसाद के रूप में ले जाते हैं और इसे घर के पूजा स्थान पर रखते हैं, जो शुभ माना जाता है।


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