एसिड हमले पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी, इस अपराध के आरोपियों पर हत्या के प्रयास में चलना चाहिए मुकदमा
/file/upload/2025/12/1530907484823602201.webpसुप्रीम कोर्ट।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को जबरन एसिड पिलाने की पीडि़ताओं के दर्द को समझते हुए ऐसा अपराध करने वालों पर सख्त टिप्पणियां कीं। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह सबसे क्रूर और बर्बर अपराध है। ऐसे लोग समाज में रहने लायक नहीं है और आरोपितों पर हत्या के प्रयास की धाराओं में मुकदमा चलना चाहिए। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
कोर्ट ने केंद्र से कहा जबरन एसिड पिलाए जाने के पीड़ितों को दिव्यांग जन अधिकार अधिनियम में एसिड हमला पीड़ितों की परिभाषा में शामिल किया जाना चाहिए। केंद्र सरकार ने इस संबंध में नीति तैयार करने के लिए छह सप्ताह का समय मांगा है। छह सप्ताह बाद फिर सुनवाई होगी।
ये आदेश गुरुवार को प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत और जोयमाल्या बाग्ची की पीठ ने एसिड हमले से संबंधित जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान कीं।
पीड़िता याचिकाकर्ता शाहीन मलिक से पहले कोर्ट ने उसके केस की स्थिति पूछी जिससे पता चला कि मामले में एक नाबालिग आरोपी था था जो सजा भुगतकर छूट चुका है बाकी के साथी आरोपियों पर रोहिणी कोर्ट में मुकदमा लंबित है। कोर्ट ने पीड़िता से कहा कि वह चाहे तो अपने केस के लिए पसंद का वकील चुन सकती है, उसकी फीस कोर्ट दिलाएगा।
लेकिन पीड़िता ने कहा कि उसका वकील पहले से मुफ्त में मुकदमा लड़ रहा है और वह ठीक है। कोर्ट ने मामले के जल्द निपटारे के आदेश दिये।
इसके अलावा कोर्ट ने सभी राज्यों को मामले में नोटिस जारी किया और उनके यहां एसिड हमले के लंबित मामलों का ब्योरा मांगा। पिछली सुनवाई पर सभी उच्च न्यायालयों से ऐसा ब्योरा देने को कहा था जिस पर लद्दाख और जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट ने बताया कि उनके यहां एसिड हमले के पांच मामले लंबित हैं। कोर्ट ने पांचो का ट्रायल जल्द पूरा करने को कहा है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि 28 वर्षीय पीड़िता को एसिड पिलाया गया था उसका वजन 20 किलो रह गया है और हिमोग्लोबिन तीन है। कहा जबरन तेजाब पिलाने के पीड़िताओं को दिव्यांग जन कानून में दिव्यांगों को मिलने वाले लाभ नहीं मिलते क्योंकि उन्हें कानून में दिव्यांग नहीं माना जाता।
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ऐसे लोगों को कानून में दिव्यांगों की परिभाषा में शामिल किया जाएगा। मौजूदा कानून में एसिड से बाहरी त्वचा जलने के मामले शामिल हैं। इसके लिए कानून में थोड़ा संशोधन करना पड़ेगा।
मेहता ने कहा कि सरकार एक नीति तैयार करेगी क्योंकि कई बार दिव्यांग श्रेणी में अपात्र लोग भी लाभ पा जाते हैं यहां तक कि सिविल सर्विस आदि में भी लाभ ले लेते हैं। याचिका पर बहस कर रही एक अन्य वकील ने कहा कि जबरन एसिड पिलाने के मामले ज्यादातर घरेलू हिंसा के होते हैं। जिनमें पति और घरवाले शामिल होते हैं। सुनवाई में ऐसी पीड़िताओं को मुआवजे की भी चर्चा हुई।
नालसा की मौजूदा मुआवजा योजना में पीड़िता को तीन लाख रुपये मुआवजा मिलता है लेकिन एसिड हमले की पीड़िता को लगातार इलाज की जरूरत होती है और कई बार पीड़िता खर्च उठाने में सक्षम नहीं होती।
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