deltin33 Publish time 2025-12-12 17:08:04

काशी, खजुराहो और सांची के स्तूप समेत अन्य सांस्कृतिक धरोहर हुए जीवंत, राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय में लगी प्रदर्शनी

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राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय में घीका प्रदर्शनी में लगी पेंटिंग्स। फोटो- जागरण



जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। इतिहास के पन्नों को पलटने पर देश का अतीत राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय (एनजीएमए) में जीवंत हो उठा है। नेपाली कागज पर भारतीय स्याही से वर्ष 1958 में बनाई गई ग्रीस के प्रसिद्ध कलाकार निकोस घिका की दुर्लभ कलाकृतियां कला प्रेमियों को सीधे वाराणसी (बनारस) की उन संकरी गलियों और धार्मिक अनुष्ठानों के केंद्र में ले जाती है, जहां गंगा किनारे घाटों की सीढ़ियां, पीछे खड़े प्राचीन मंदिर और आसमान छूती मीनारें मौजूद हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

जो आधुनिकता के फ्रेम में लिपटी भारतीय आध्यात्मिकता की एक कालातीत तस्वीर पेश कर रही थी और बता रही थी कि बनारस का धार्मिक उत्साह कलाकारों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत था।

कला की दृष्टि से यह प्राचीनता का आधुनिक दस्तावेजीकरण है। घिका ने केवल दृश्यों को नहीं पकड़ा, बल्कि भारत की महान मूर्तिकला विरासत को भी अपनी कूची का विषय बनाया। तंजावुर की नृत्यांगनाओं से लेकर सांची स्तूप की अप्सराओं और खजुराहो के कंदारिया महादेव मंदिर की आकृतियों को उन्होंने आधुनिक रेखाओं में कैद कर उनकी ऊर्जा को अमर को अमर किया।

बेनाकी संग्रहालय, एथेंस और ग्रीस दूतावास के सहयोग से भारत-ग्रीक सांस्कृतिक आदान-प्रदान को प्रदर्शनी के माध्यम से एक कथा के रूप में प्रस्तुत किया गया।

कलाकारों की आंखें साधारण दृश्यों में असाधारण सुंदरता खोज लेती हैं। यह घिका की कलाकृतियों में देखने को मिलेगा। जहां एक ओर उन्होंने बनारस के घाटों को जीवंत किया, वहीं दूसरी ओर उन्होंने ग्रामीण महिलाओं की सुंदरता का भी वर्णन किया।
घिका ने अपनी प्रदर्शनी में वर्ष 1959 में ग्रामीण भारतीय महिलाओं को \“\“तलवारों की तरह सीधा चलने वाली, देवियों जैसी\“\“ बताया है।

अमरण्थीन बैंगनी साड़ियों में सजी इन महिलाओं का यह वर्णन आज भी भारतीय नारी के गौरव और गरिमा को बखूबी दर्शाता है। उनकी कलाकृतियों में \“\“टेराकोटा, बुलंदी बाग से राम की आकृतियां, कौशांबी के चेहरे और \“\“ढोल बजाती लड़की\“\“ जैसी आकृतियों का वर्णन है, जो भारतीय इतिहास के विभिन्न कालखंडों जो मौर्य काल की झलक पेश करती है।

उनकी पुरातात्विक और भारत से लगाव इतना गहरा था कि उन्होंने औरंगाबाद और पटना संग्रहालय के नोट्स बनाए। यहां तक कि 1969 में ग्रीस में रहते हुए भी उन्होंने अजंता गुफा की \“\“उपदेश देते बुद्ध\“\“ प्रतिमा को अपनी कूची से नया आयाम दिया। इस अवसर पर राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय के निदेशक ने कहा कि यह भारत और ग्रीक के संबंधों को मजबूत करने के उद्देश्य से आयोजित किया गया है।
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