Chikheang Publish time 2025-12-13 03:07:29

राहुल गांधी ने उठाया प्रदूषण का मुद्दा, सरकार बोली चर्चा के लिए तैयार; नेता विपक्ष ने दिए ये सुझाव

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नेता विपक्ष ने दिया सुझाव- प्रधानमंत्री प्रस्तुत करें व्यापक और निर्णायक राष्ट्रीय योजना (फाइल फोटो)



जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। लोकसभा में शुक्रवार को पक्ष-विपक्ष में उस समय सहमति देखने को मिली, जब नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने वायु प्रदूषण को राष्ट्रीय आपदा बताते हुए इस पर विस्तृत चर्चा की मांग की। सत्ता पक्ष ने भी बिना किसी टकराव के गंभीरता से लेते हुए विस्तृत विमर्श के लिए सहमति जताई। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

राहुल ने शून्यकाल के दौरान कहा कि दिल्ली सहित देश के अधिकांश बड़े शहर जहरीली हवा की चपेट में हैं। लाखों बच्चे फेफड़ों की बीमारियों से जूझ रहे हैं। कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं। बुजुर्गों को सांस लेने में दिक्कत हो रही है। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह कोई वैचारिक या राजनीतिक मुद्दा नहीं है, बल्कि देश के भविष्य और करोड़ों नागरिकों की सेहत से जुड़ा सवाल है।

राहुल ने कहा कि इस चुनौती पर राजनीति से ऊपर उठकर चर्चा होनी चाहिए। आरोप-प्रत्यारोप से आगे बढ़ते हुए समाधान के लिए ठोस कदम उठाए जाएं। उन्होंने सुझाव दिया कि प्रधानमंत्री मोदी देश के हर बड़े शहर के लिए अगले पांच-दस वर्षों का एक वैज्ञानिक, व्यवस्थित और क्रियान्वयन योग्य रोडमैप पेश करें। भले ही प्रदूषण तुरंत खत्म न हो, लेकिन दिशा स्पष्ट हो और आने वाले वर्षों में इसके दुष्प्रभाव को कम किया जा सके।
कांग्रेस देगी सरकार को सहयोग

उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस इस चुनौती से निपटने के लिए पूरा सहयोग देगी।सरकार की ओर से संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने सकारात्मक रुख अपनाते हुए कहा कि सरकार प्रदूषण पर चर्चा के लिए पूरी तरह तैयार है और कार्यमंत्रणा समिति समय तय कर सकती है।

उन्होंने माना कि वायु प्रदूषण एक राष्ट्रीय और बहुआयामी समस्या है, जिसके समाधान के लिए सभी पक्षों का सहयोग अनिवार्य है। रिजिजू ने विपक्ष के सुझावों का स्वागत करते हुए कहा कि सरकार किसी भी रचनात्मक सलाह को अपनाने को तैयार है, क्योंकि यह चुनौती केवल सरकार की नहीं, बल्कि पूरे देश की है।

जाहिर है, राजनीतिक ध्रुवीकरण के दौर में जहां विमर्श अक्सर टकराव में बदल जाते हैं, वहां सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े गंभीर प्रश्न पर पक्ष-विपक्ष की सहमति सकारात्मक मिसाल के रूप में सामने आई। ऐसे विमर्श से न केवल संसद की कार्यशैली में बदलाव आ सकती है, बल्कि दीर्घकालिक राष्ट्रीय नीति बनाने की दिशा में भी उपयोगी साबित हो सकती है।

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