Chikheang Publish time 2025-12-13 23:08:02

बुंदेलखंड की जलवायु इस खेती के लिए अनुकूल, परंपरागत खेती छोड़ किसान ले रहे एक साथ दोहरा लाभ

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मूंगुस गांव में मछली संग सिंघाड़े की खेती करते किसान। जागरण



जागरण संवाददाता, बांदा। परंपरागत खेती के साथ किसान अब कुछ अलग तरीके से खेती कर अपनी आय बढ़ाने को लेकर आगे आ रहे हैं। खाली पड़े तालाबों में अब सिंघाड़े की खेती के साथ मछली पालन भी किया जा रहा है। सरकार ने खेत तालाब योजना के अलावा भी तालाबों को विकसित किया है। किसानों ने अब इन तालाबों से अपनी आय बढ़ाने का जरिया बनाना शुरू कर दिया है। वहीं सरकार एक ओर तालाब तो विकसित कर रही है तो दूसरी ओर सिंघाड़े की खेती व मछली पालन के लिए भी सब्सिडी दे रही है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें



मंडल के चारों जिलों में खेत तालाब योजना से करीब तीन हजार से ज्यादा तालाब बनाए गए हैं। इसके अलावा ग्राम पंचायतों में अमृत सरोवर व माडल तालाब विकसित किए गए हैं। इन तालाबों में अब किसान मछली पालन संग सिंघाड़े की खेती कर रहे हैं। जो दोहरे मुनाफे के रूप में लाभ ले रहे हैं। हालांकि अभी भी ज्यादातर तालाब खाली पड़े हैं, लेकिन जागरूक किसान अब दोहरे लाभ लेने की दिशा में कदम बढ़ाया है। तालाबों में सिंघाड़े की खेती संग मछली पालन करने से किसानों की आय तो बढ़ेगी ही भूगर्भ जल स्तर भी बढ़ेगा।


बुंदेलखंड की जलवायु अनुकूल, 120 दिन में तैयार होती फसल

बुंदेलखंड में सिंघाडे़े की खेती के लिए जलवायु अच्छी है। सिंघाड़े की खेती में यह रोपाई करने के 120–130 दिन में तैयार हो जाती है। बेलों को जुलाई के प्रथम सप्ताह से 15 अगस्त के पहले तक किया जा सकता है। अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में एवं अंतिम तोड़ाई 20 से 30 दिसम्बर की जाती है। सिंघाड़ा फसल में कुल चार बार तोड़ाई की जाती है।


प्रति हेक्टेयर एक लाख रुपये का लाभ

कृषि वैज्ञानिक डा. एस वी द्विवेदी ने बताते हैं कि बुंदेलखंड में सिंघाड़े के साथ मछली पालन भी किया जा सकता है। एक हेक्टेयर के तालाब में सिंघाडे की खेती में करीब 40 से 45 हजार रुपये का खर्च आता है। प्रति हेक्टेयर भूमि से 25-30 टन सिंघाड़े की पैदावार होती है। इस समय सिंघाडा 30 रुपये किलो के दर से बाजार में बिक रहा है। यदि थोक में दो हजार रुपये क्विंटल भी सिंघाड़ा बिकता है तो इसमें सब खर्च निकालने के बाद भी कम से कम करीब डेढ़ लाख रुपये का होता है, जिसमें एक लाख रुपये का मुनाफा होता है। मछली पालन से मिली आमदनी से दोहरा लाभ होता है।

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मछली के लिए भोजन का काम करतीं हैं लताएं

जिस तालाब में सिंघाडे की खेती की जाती है, उसमें मछली पालन करने से मछलियां ज्यादा जल्दी ग्रोथ करती हैं। इसमें सिंघाड़े और मछली पालन से मछलियों को भोजन प्राप्त होता है। सिंघाड़े की पत्तियां और शाखाएं समय-समय पर टूटती रहती हैं। यह मछलियों के भोजन का काम करती हैं। पौधों के वह भाग जिन्हें मछलियां नहीं खातीं, वह तालाब में खाद का काम करते हैं।





बुंदेलखंड की जलवायु सिंघाड़े की खेती के लिए अनुकूल है। किसानों ने इसकी खेती शुरू की है। सिंघाड़े वाले तालाबों में मछली पालन भी किया जा सकता है। कम लागत में दोगुणा आमदनी हो सकती है।
डा. एसवी द्विवेदी, कृषि वैज्ञानिक, कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय






बरसात में तालाब में सिंघाड़े की खेती करने के इच्छुक किसान नर्सरी के लिए स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र व जिला कृषि विभाग में संपर्क कर सकते हैं। विभाग सिंघाड़े व मछली पालन में सब्सिडी देती है।
डा. अभय यादव, उप निदेशक कृषि, चित्रकूट धाम मंडल


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