1971 में जब ढाका में भारत के सामने घुटने टेक रहा था पाकिस्तान, अय्याशी और नशे में डूबा हुआ था जनरल याह्या खान!
16 दिसंबर 1971- ढाका का रेसकोर्स मैदान। दोपहर की तपिश के बीच एक छोटी-सी मेज पर पाकिस्तानी सेना के पूर्वी कमान प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल ए.ए.के. “टाइगर“ नियाजी कांपते हाथों से झुके बैठे हैं। सामने रखे कागज पर है \“इंस्ट्रुमेंट ऑफसरेंडर- यानी आत्मसमर्पण पत्र। उनके ठीक सामने बैठे हैं भारतीय सेना के विजयी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोरा, साथ में बांग्लादेश की मुक्तिबाहिनी के प्रमुख। नियाजी के पीछे खड़ी है हार का बोझ लिए हुए पाकिस्तानी सेना, जिसमें 90,000 से ज्यादा सैनिक, जिन्हें अब युद्धबंदी बनना है। यह दूसरे विश्व युद्ध के बाद इतिहास का सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण है।ढाका के आसमान में भारतीय झंडे लहरा रहे हैं, जमीन पर दब चुका है पाकिस्तान का घमंड। और इस घड़ी में, रावलपिंडी में बैठा उनका सेनानायक- जनरल याह्या खान कथित तौर पर शराब के नशे में डूबा हुआ है। रात की रंगीन महफिल खत्म हुए कुछ ही घंटे हुए हैं। उसी रात उसकी करीबी मानी जाने वाली महिला “जनरल रानी” उसके घर से निकली थी। पार्टी की गूंज अब भी सत्ता के गलियारों में थी, जबकि आधा मुल्क हाथ से फिसल गया था।
ढहती हुई साम्राज्य की दीवारें
संबंधित खबरें
Amritsar: पति ने पत्नी को दोस्त के साथ होटल में रंगे हाथों पकड़ा! स्कूटी में लगाया GPS ट्रैकर, शादी को हो गए 15 साल अपडेटेड Dec 16, 2025 पर 8:54 PM
Goa Nightclub Fire: दिल्ली कोर्ट में पेश हुए लूथरा ब्रदर्स, गोवा पुलिस को मिली 48 घंटे की ट्रांजिट रिमांड अपडेटेड Dec 16, 2025 पर 8:42 PM
दिल्ली के बाद गुरुग्राम के बच्चों के लिए भी बड़ा फैसला, बढ़ते AQI के बीच हाइब्रिड होंगे 5वीं तक के क्लास अपडेटेड Dec 16, 2025 पर 8:15 PM
93,000 सैनिक बंदी, आधा देश अलग। आने वाले सालों में पाकिस्तान खुद से एक सवाल बार-बार पूछेगा- हम हारे कैसे?
जब इस हार की जांच के लिए जस्टिस हमूदुर रहमान के नेतृत्व में आयोग बना, तो जो तथ्य सामने आए, उन्होंने पूरे राष्ट्र को हिला दिया। रिपोर्ट में लिखा गया- पाकिस्तान युद्ध में पराजित नहीं हुआ, वो अपनी ही नैतिक सड़न में खुद बर्बाद हो गया।
रिपोर्ट ने साफ-साफ कहा, “सेना के वरिष्ठ अधिकारियों में जिस नैतिक पतन की शुरुआत मार्शल लॉ के दौर से हुई, उसने इन्हें अनुशासन, नेतृत्व और जिम्मेदारी से दूर कर दिया। शराब, औरतों और भ्रष्टाचार में डूबे इन अफसरों ने खुद को सैनिक समझना ही छोड़ दिया था।”
“जनरल रानी“ से “मेलोडी क्वीन“ तक
जनरल याह्या खान, वही तानाशाह जिसने 1969 में सत्ता हथिया ली थी और खुद को पाकिस्तान का रक्षक बताता था। पर 1971 तक उसका रावलपिंडी वाला घर शराब, संगीत और महिलाओं की रातों में बदल चुका था।
वहां उसकी सबसे प्रभावशाली साथी थी- अकलीम अख्तर, जिसे पूरे देश में “जनरल रानी” कहा जाता था। कहते हैं, सत्ता के हर दरवाज़े की चाबी उसके पास थी- ठेके से लेकर प्रमोशन तक, हर सौदा उसके ही इशारों पर होता था।
इसी बीच, पाकिस्तान की ‘मेलोडी क्वीन’ नूरजहां भी सत्ता की इन रातों का हिस्सा बन चुकी थीं। युद्ध के दिनों में जब ढाका में सैनिक आदेशों के लिए बेताब थे, तब लाहौर में याह्या खान के घर से उनकी हंसी और गीतों की गूंज सुनाई देती थी। एक तरफ जवान मर रहे थे, दूसरी तरफ ‘म्युज़िक नाइट्स’ चल रही थीं। यह दृश्य पाकिस्तान की सामूहिक स्मृति में आज तक धधकता है।
सैन्य और नैतिक पतन का प्रतीक नियाजी
ढाका में आत्मसमर्पण करने वाले लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी, हमूदुर रहमान आयोग की जांच में नैतिक और सैन्य पतन के प्रतीक बनकर उभरे।
रिपोर्ट में लिखा था कि नियाजी “यौन अनैतिकता” और रिश्वतखोरी के आरोपों में इतने बदनाम थे कि सैनिक उनके आदेशों का सम्मान खो बैठे थे।
आरोप तो यह भी था कि वे एक वेश्यालय यानी कोठा चलाने वाली के संपर्क में थे, जो उनके लिए रिश्वत वसूलती थी।
फौज में चर्चा थी, “जब कमांडर खुद औरतों के पीछे भागता है, तो सैनिकों को कौन रोकेगा?” यही वाक्य आयोग के निष्कर्ष का सबसे सटीक बयान था- नेतृत्व के टॉप लेवल से शुरू हुई सड़न ने पूरी सेना को निगल लिया।
नैतिक पतन, जिसने एक देश के किए दो टुकड़े
हमूदुर रहमान आयोग ने आखिरकार जो कहा, वो पाकिस्तान के इतिहास का सबसे कठोर कबूलनामा था- “यह हार हमारी बंदूक की नहीं, हमारे चरित्र की थी।”
दरअसल, आयोग का यह नतीजा न सिर्फ सेना की बल्कि पूरे शासन तंत्र की परतें खोल गया। याह्या खान सत्ता में शराब की महक लेकर आया और शर्मनाक पतन के साथ गया।
आग चल कर ये रिपोर्ट दफन कर दी गई, गुनहगारों को कोई सजा नहीं मिली। याह्या खान नजरबंद रहा, नियाजी चुपचाप मर गया। लेकिन वो हकीकत, जिसे हमूदुर रहमान आयोग ने उजागर किया था, वो दस्तावेज आज भी पाकिस्तान के विवेक पर सवाल बनकर खड़ा है।
53 साल बाद भी पाकिस्तान के सिर में वही पुराना दर्द है- क्योंकि 1971 का हैंगओवर अब तक उतरा नहीं। एक देश जिसने अपने नेताओं को जवाबदेह नहीं ठहराया, वो अपने अतीत की उसी गलती को दोहराता आया है।
16 दिसंबर का हर सूरज इस बात की याद दिलाता है कि किसी भी राष्ट्र की असली हार तब होती है, जब उसके नेता जश्न मना रहे हों और उसका देश जल रहा हो।
अब दुश्मनों की खैर नहीं! भारतीय सेना को मिला खतरनाक ‘फ्लाइंग टैंक’...अमेरिका से आया आखिरी बैच
Pages:
[1]