स्वामी आगमानंद ने बताया साहित्य का सही अर्थ, कहा- डॉ रामजन्म मिश्र हैं साहित्य के पुरोधा
/file/upload/2025/12/1988536795809042063.webp“सारस्वत साधना के साधक डॉ रामजन्म मिश्र“ का विमोचन।
डिजिटल डेस्क, भागलपुर। भगवान राम के जीवन कई विद्वानों ने अपने-अपने ग्रंथों पर लिखा है। इसके बावजूद राम के संपूर्ण जीवन को उस ग्रंथ में नहीं समाया जा सकता है। जीवन की संपूर्ण लंबी यात्रा को किसी भी ग्रंथ में समाहित नहीं किया जा सकता है। ठीक उसी प्रकार डा. हरेराम त्रिपाठी चेतन ने डा. रामजन्म मिश्र को ग्रंथ में समाहित करने का प्रयास तो किया है, लेकिन इसके बावजूद उनका व्यक्तित्व उसमें समाहित नहीं हो सका। उक्त बातें श्री उत्तरतोताद्रि मठ विभीषणकुंड अयोध्या के उत्तराधिकारी और श्री शिवशक्ति योगपीठ नवगछिया के पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानुजार्य श्री रामचंद्राचार्य परमहंस स्वामी आगमानंद जी महाराज ने कही। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
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जिसमें दूसरे का हित हो वही साहित्य है : आगमानंद
स्वामी आगमानंद ने कहा कि साहित्य तो सारस्वत काल से सास्वत है। साहित्य में मानव, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी सहित सभी सजीव-निर्जीव समाहित है। साहित्य का मतलब दूसरे का हित करना होता है। डॉ रामजन्म मिश्र के जीवन पर आधारित ग्रंथ सभी के लिए प्रेरणादायी है। सभी मंचस्थ अतिथियों ने डॉ रामजन्म मिश्र के शतायु और स्वस्थ जीवन की कामना की। यहां बता दें कि झारखंड राज्य भाषा साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डा. रामजन्म मिश्र हैं। उन्होंने दजनों साहित्य की रचना की थी। साथ ही प्रकांड विद्वान साहित्यकार हैं। इस दौरान डा. रामजन्म मिश्र ने कई साहित्यकारों का संस्मरण सुनाया। उन्होंने कहा कि आज मेरे जीवन का सबसे गौरवशाली दिन है।
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साहित्यकारों के लिए प्रेरणाश्रोत है सारस्वत साधना के साधक डॉ रामजन्म मिश्र नामक ग्रंथ
झारखंड राज्य भाषा साहित्य अकादमी एवं डॉ रामजन्म मिश्र अभिनंदन ग्रंथ समिति (रांची) के संयुक्त प्रयास से प्रकाशित डा. हरेराम त्रिपाठी चेतन संपादिक पुस्तक “सारस्वत साधना के साधक डॉ रामजन्म मिश्र“ का विमोचन हुआ। मंगलम् रिसार्ट, लोदीपुर भागलपुर में आयोजित इस कार्यक्रम में दर्जनों संत, विद्वान, मनिषी, साहित्यकार व शिक्षक मौजूद थे। झारखंड राज्य भाषा साहित्य अकादमी के सचिव डा. सच्चिानंद ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। अध्यक्षता प्रो डॉ लक्ष्मीश्वर झा ने की।
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सारस्वत साधना के साधक डॉ रामजन्म मिश्र का पुस्तक का लोकर्पण जगद्गुरु रामानुजाचार्य श्री रामचंद्राचार्य परमहंस स्वामी आगमानंद जी महाराज, मानस कोकिला कृष्णा मिश्रा, पूर्व वीसी प्रो. डा. एके राय, पूर्व वीसी प्रो डा. क्षमेंद्र कुमार सिंह, पूर्व वीसी विभूति नारायण सिंह, प्रो. योगेन्द्र, प्रो. सत्यव्रत सिंह, प्रो. वीरेन्द्र कुमार सिंह, प्रो. सुनील कुमार चौधरी, प्रो. डा. आशा ओझा, प्रो डॉ नृपेन्द्र कुमार वर्मा, प्रो डॉ अंजनी कुमार राय, पंडित जीवनानंद स्वामी, पं शंभूनाथ शास्त्री \“वेदांती\“, कवि मुरारी मिश्र, डॉ प्रेमचंद पांडे, डॉ मृत्युंजय सिंह गंगा, प्रो आशा तिवारी, गीतकार राजकुमार, कुंदन बाबा, डा. सच्चिानंद, प्रो डॉ लक्ष्मीश्वर झा ने किया। संचालन दिलीप शास्त्री ने किया।ग्रंथ का प्रकाशन पुष्पांजलि प्रकाशन, दिल्ली से हुआ है, जिसमें 500 पृष्ठों में एवं लगभग 100 से अधिक रंगीन चित्रों के साथ शताधिक लेख-संस्मरण है।
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इसी मंच पर संस्कृत साहित्य डा. सुधीर नारायण ठाकुर संपादित प्रोढ़ मनोरमा का भी विमोचन किया गया।
आदर्श व्यवस्था में हुआ कार्यक्रम
इस लोकर्पण समारोह में कोई कमी ना रह जाए, इसके लिए डा. मृत्युंजय सिंह गंगा ने सभी व्यवस्था की थी। सुसज्जित मंच और आकर्षक प्रशाल में कार्यक्र्रम हुआ। उन्होंने सभी को निर्देश दे रखा था कि- गुरुदेव आ रहे हैं, आदर्श व्यवस्था होनी चाहिए। सभी के लिए भोजन की व्यवस्था की गई थी। इस दौरान चंचल सिंह व प्रिया सिंह और डॉ सपना सिंह का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
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समारोह में स्वामी अगामानंद महाराज को उनकी ही एक चित्र भेंट की गई।
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