cy520520 Publish time 2025-12-29 13:26:24

झारखंड में इस साल फरवरी-मार्च तक रहेगी ठंड, मौसम वैज्ञानिक ने बताए कारण

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मौसम वैज्ञानिक अभिषेक आनंद। फाइल फोटो



जागरण संवाददाता, रांची। अबकी बार ठंड का असर पहले शुरू हुआ है और फरवरी के अंत और मार्च के प्रथम सप्ताह तक जारी रहेगा। आमतौर पर ऐसा नहीं होता है, लेकिन पर्यावरणीय बदलाव ने मौसम में उतार-चढ़ाव कर दिया है। यह चक्र चलता रहता है और पांच से छह वर्ष में दोहराता है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

यही कारण है कि इस वर्ष सक्रिय मानसून के कारण उम्मीद से कहीं अधिक वर्षा हुई और इसका असर यह हुआ कि ठंड ने समय से पूर्व दस्तक दे दी। उक्त बातें मौसम विज्ञान केंद्र रांची के वरीय वैज्ञानिक अभिषेक आनंद ने दैनिक जागरण के संवाददाता कुमार गौरव से विशेष बातचीत के क्रम में कही।

उन्होंने कहा कि इस वर्ष मौसम में हुए बदलाव ने पूर्व में ही संकेत दे दिए थे, क्योंकि बंगाल की खाड़ी में पश्चिमी विक्षोभ के पांच बार से अधिक बार सक्रिय होने का लाभ यह हुआ कि जमकर वर्षापात हुए।

वहीं, प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में सक्रिय ला-नीना स्थिति बनने के कारण भी इस वर्ष ठंड का असर लगातार बढ़ रहा है, इसका असर फरवरी 2026 के अंत तक बना रहेगा जबकि मार्च मध्य से असर कम होने लगेगा। पेश है बातचीत के अंश...

सवाल : अबकी बार ठंड सारे रिकार्ड तोड़ रही है, क्या कहेंगे?

वैज्ञानिक : ला-नीना के सक्रिय होने का ही परिणाम है कि ठंड का असर बढ़ा है और यह अभी और बढ़ेगा। जनवरी और फरवरी माह में भी इसके व्यापक असर देखने को मिलेंगे।

सवाल : मौसम में लगातार हो रहे बदलाव के मुख्य कारक क्या हैं?

वैज्ञानिक : बेशक, कम हो रही हरियाली इसके मुख्य कारक हैं। हमारा यह पूरा क्षेत्र पठारी है और तेज धूप होने पर गर्मी और सर्दी दोनों समानुपात में असर दिखाएगी। इसके अलावा, प्रदूषण इसके मुख्य कारकों में से एक है।

सवाल : सिमटती हरियाली किस तरह अपना असर डालती है?

वैज्ञानिक : सिमटती हरियाली किस तरह अपना असर दिखाती है। यही कारण है कि उत्तर पश्चिमी झारखंड का पूरा क्षेत्र पठारी है और यहां के मौसम में शुष्कता बनी रहती है। सिमट रही हरियाली और कांक्रीट के जंगल ने मौसम में बदलाव को गति दी है।

सवाल : मौसमीय चक्र का क्या तात्पर्य है?

वैज्ञानिक : आमतौर पर लोग चार मौसम को जानते हैं लेकिन बात जब मौसमीय चक्र की होती है तो हमें यह जानना अनिवार्य हो जाता है कि वायुमंडल में होने वाले उन नियमित, बार-बार होने वाले बदलावों (जैसे तापमान, हवा, वर्षा) को कहते हैं, जो सूर्य, पृथ्वी के घूर्णन और झुकाव, जल चक्र और वायुमंडलीय दबाव जैसे कारकों के कारण होते हैं, जिससे बसंत, गर्मी, पतझड़ और सर्दी जैसी ऋतुएं एक क्रम में आती हैं और पृथ्वी पर जीवन को प्रभावित करती हैं, जिसमें पृथ्वी का सूर्य के चारों ओर घूमना (परिक्रमण) मुख्य कारण है।

सवाल : इसका कितना असर पड़ेगा?

वैज्ञानिक : आप यहां के पुराने निवासियों से बात करें, वो बताएंगे कि रांची का मौसम कैसा रहता था। यहां के तापमान में बड़ा उलटफेर नहीं हुआ है, बस प्राकृतिक रुप से हम अबकी बार मजबूत हुए हैं। यही कारण है कि हमें मौसमीय परिर्वतन की बानगी देखने को मिल रही है।

सवाल : झारखंड में ला-नीना का कितना असर देखने को मिलेगा?

वैज्ञानिक : ला-नीना के कारण ही इस बार ठंड का असर दिसंबर माह से पूर्व शुरू हो गया है। मध्य और पूर्वी भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से 0.5 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक ठंडा हो जाता है। सामान्य से अधिक मजबूत पूर्वी हवाएं (ट्रेड विंड्स) प्रशांत महासागर के पश्चिमी हिस्से की ओर चलती हैं।

ये हवाएं प्रशांत महासागर के पश्चिमी भाग में गर्म पानी जमा करती हैं और पूर्वी भाग (दक्षिण अमेरिका की ओर) में गहरे ठंडे पानी को सतह पर ले आती हैं। महासागर की सतह के तापमान में इस बदलाव से वायुमंडलीय दबाव पैटर्न में भी बदलाव आता है। दिसंबर माह में ला-नीना का असर बढ़ेगा, जिस कारण उत्तर पश्चिमी क्षेत्र से ठंडी हवा बहनी शुरू हो जाएगी और तापमान गिरेगा।

सवाल : क्या पर्यावरण में बदलाव का असर भी कारक है?

वैज्ञानिक : बेशक, पर्यावरण विशेषकर प्रकृति के साथ हो रहे छेड़छाड़ ने मौसम में परिवर्तन लाया है। लोग स्वार्थवश प्लास्टिक को इस्तेमाल में लाते हैं जो कि प्रकृति के लिए घातक है। आमतौर पर लोग ठंड के मौसम में प्लास्टिक जलाने से भी गुरेज नहीं करते।
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