नेतृत्व बदला, रणनीति बदली लेकिन संगठन नहीं... बिहार कांग्रेस की लगातार गिरावट
/uploads/allimg/2025/12/7954722763951479597.webpबिहार कांग्रेस की लगातार गिरावट
राज्य ब्यूरो, पटना। बिहार विधानसभा चुनाव के ऐन पहले मार्च महीने में राजेश राम को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कमान सौंपी गई। साथ ही राज्य प्रभारी भी बदले गए। कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व को उम्मीद थी कि नए चेहरे और नई जिम्मेदारी के साथ बिहार में संगठन को चुनावी धार मिलेगी। लेकिन राजनीतिक विडंबना यह रही कि जिस समय राजेश राम ने संगठन की बागडोर संभाली, तब चुनाव सिर पर था और पार्टी के पास न तो प्रदेश कार्यकारिणी थी, न ही जिलों में मजबूत नेतृत्व का ढांचा। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
ऐसे हालात में राजेश राम के सामने दोहरी चुनौती थी, एक ओर संगठन को खड़ा करना और दूसरी ओर चुनावी तैयारी को दिशा देना। हालात इसलिए भी कठिन थे क्योंकि उन्हें खुद भी चुनावी मैदान में उतरना था। सीमित समय, कमजोर संगठन और जमीनी पकड़ की कमी ने कांग्रेस की रणनीति को कमजोर कर दिया। नतीजा सबके सामने है, कांग्रेस को करारी हार झेलनी पड़ी और पार्टी महज लगभग 10 प्रतिशत सीटों पर सिमट गई।
चुनावी पराजय के बाद उम्मीद थी कि संगठन के पुनर्गठन पर गंभीरता से काम होगा, लेकिन नौ महीने से अधिक समय बीत जाने के बावजूद प्रदेश कार्यकारिणी का गठन अब तक नहीं हो सका। हालांकि यह ठहराव सिर्फ राजेश राम की व्यक्तिगत विफलता नहीं कहा जा सकता। इससे पहले डॉ. अखिलेश प्रसाद सिंह और उनसे पहले डॉ. मदन मोहन झा लंबे समय तक प्रदेश अध्यक्ष रहे, लेकिन उनके कार्यकाल में भी कांग्रेस संगठन को स्थायी ढांचा नहीं मिल सका।
दरअसल, 2015 के बाद से बिहार कांग्रेस बिना विधिवत प्रदेश कार्यकारिणी के ही चल रही है। यह स्थिति बताती है कि समस्या व्यक्तियों से ज्यादा सिस्टम की है। केंद्रीय नेतृत्व की प्रयोगधर्मी राजनीति, बार-बार नेतृत्व परिवर्तन और संगठन निर्माण में उदासीनता ने बिहार में कांग्रेस को लगातार कमजोर किया है। जब तक पार्टी जमीन पर मजबूत संगठन, स्पष्ट जिम्मेदारियों और सक्रिय कार्यकर्ताओं की फौज खड़ी नहीं करती, तब तक चुनावी राजनीति में उसका पुनरुत्थान केवल एक राजनीतिक नारा ही बना रहेगा।
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