Chikheang Publish time 2025-12-29 22:57:18

IGI Airport पर बनेगा दिल्ली का पहला कार्गो Special Economic Zone, 5000 करोड़ से बन रहा ग्लोबल लॉजिस्टिक हब

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गौतम कुमार मिश्रा, नई दिल्ली। दिल्ली के पहले Special Economic Zone को IGI Airport पर विकसित किया जा रहा है। कार्गो सिटी परियोजना के तहत विकसित हो रहा यह विशेष आर्थिक क्षेत्र भारत को वैश्विक लाॅजिस्टिक्स हब बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

यह परियोजना न केवल निर्यात को बढ़ावा देगी, बल्कि मेक इन इंडिया पहल को मजबूती प्रदान कर भारतीय उत्पादों की दुनिया के बाजारों तक तेजी से पहुंचा बनाएगी। जीएमआर एयरपोर्ट्स की अनुशंगी कंपनी कार्गो एंड लाॅजिस्टिक्स लिमिटेड द्वारा विकसित की जा रही यह कार्गो सिटी कुल 50.5 एकड़ क्षेत्र में फैली होगी।
पांच हजार करोड़ की लागत

इस पूरी परियोजना पर करीब 5,000 करोड़ रुपये की लागत आएगी। वर्तमान में परियोजना तेजी से आगे बढ़ रही है। सितंबर 2025 में डायल के साथ कंसेसन एग्रीमेंट साइन हुआ। नवंबर में बैंक से 750 करोड़ रुपये का लोन लिया गया, जो परियोजना के एक हिस्से को फंड करेगा। परियोजना का विकास कई चरणों में होगा। पहले चरण का फोकस मुख्य इंफ्रास्ट्रक्चर पर है। पहला चरण वर्ष 2028 की पहली तिमाही तक पूरा होने की उम्मीद है।
इंफ्रास्ट्रक्चर से बनेगा पूरा इकोसिस्टम

इस परियोजना की सबसे बड़ी खासियत इसका इंटीग्रेटेड डिजाइन है। यहां मल्टी-लेवल वेयरहाउस, एक्सप्रेस कार्गो फैसिलिटी, बाॅन्डेड वेयरहाउसिंग, कोल्ड चेन स्टोरेज और ई-काॅमर्स जोन जैसी आधुनिक सुविधाएं होंगी। ट्रक पार्किंग, ऑफिस स्पेस, बैंकिंग और ड्राइवर सुविधाओं के साथ यह एक पूरा इकोसिस्टम बनेगा।

विशेष आर्थिक क्षेत्र की मल्टीमाॅडल कनेक्टिविटी होगी। यह क्षेत्र रोड, रेल और हवाई मार्ग से कार्गो की आवाजाही में तेजी सुनिश्चित करेगा। आईजीआई पर प्रस्तावित ऑटोमेटेड पीपल मूवर (एपीएम) सिस्टम कार्गो सिटी को टर्मिनलों और एयरोसिटी से जोड़ेगा। ग्रीन एनर्जी और ऑटोमेशन का उपयोग इसे सस्टेनेबल बनाएगा।
विशेष आर्थिक क्षेत्र में क्या होगा आकर्षण

विशेष आर्थिक के तहत ड्यूटी-फ्री इंपोर्ट, टैक्स छूट और सरलीकृत प्रक्रियाएं कारोबारियों को आकर्षित करेंगी। मेक इन इंडिया से इस परियोजना का सीधा जुड़ाव है। यह पहल भारतीय विनिर्माण को ग्लोबल सप्लाई चेन से जोड़ने का माध्यम बनेगी।

फार्मास्यूटिकल्स, पेरिशेबल गुड्स जैसे फल-सब्जियां, इलेक्ट्राॅनिक्स, गारमेंट्स और इंजीनियरिंग प्रोडक्ट्स जैसे हाई-वैल्यू आइटम्स यहां से तेजी से एक्सपोर्ट होंगे। किसानों को पेरिशेबल गुड्स के बेहतर दाम मिलेंगे, जबकि फार्मा सेक्टर की ग्लोबल सप्लाई मजबूत होगी।

कोल्ड चेन सुविधाएं वैक्सीन और फ्रेश प्रोड्यूस की सप्लाई चेन को मजबूत करेंगी, जबकि ई-कामर्स जोन ऑनलाइन ट्रेड को बूस्ट देगा। नेशनल लाॅजिस्टिक्स पाॅलिसी और प्रधानमंत्री गति शक्ति योजना से जुड़कर यह परियोजना लाॅजिस्टिक्स लागत 20-30 प्रतिशत कम करेगी, जिससे भारतीय उत्पाद वैश्विक बाजार में अधिक प्रतिस्पर्धी बनेंगे। 2030 तक भारत के निर्यात लक्ष्य को हासिल करने में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
परियोजना का रणनीतिक महत्व

परियोजना का महत्व रणनीतिक भी है। दिल्ली एयरपोर्ट पहले से ही देश का सबसे व्यस्त कार्गो हब है, जो सालाना एक मिलियन टन से अधिक कार्गो हैंडल करता है। कार्गो सिटी से क्षमता बढ़कर 3 मिलियन टन तक पहुंच सकती है, जो एशिया में दिल्ली को प्रमुख हब बनाएगी।

ई-काॅमर्स बूम और पोस्ट-पैंडेमिक सप्लाई चेन की जरूरतों को देखते हुए यह समय की मांग है। इससे पूरे एनसीआर क्षेत्र में लाॅजिस्टिक्स क्लस्टर बनेगा, जो नोएडा के जेवर एयरपोर्ट जैसे अन्य प्रोजेक्ट्स से पूरक होगा।

लाभों की बात करें तो सबसे बड़ा फायदा रोजगार सृजन है। यहां हजारों प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष नौकरियां पैदा होंगी। इस परियोजना का आर्थिक विकास में योगदान होगा। निर्यात बढ़ने से विदेशी मुद्रा भंडार मजबूत होगा, जीडीपी ग्रोथ को बूस्ट मिलेगा।
परियोजना का अभी क्या है हाल

आईजीआई एयरपोर्ट संचानल एजेंसी डायल का कहना है कि कार्गो हब बनाने के लिए तीन स्तर की सहायक संरचना जरूरी है। टियर 1 यानी कार्गो टर्मिनल, टियर 2 यानी थर्ड पार्टी लाॅजिस्टिक्स सेवाएं और टियर 3 यानी स्पेशल इकोनाॅमिक जोन।

दिल्ली एयरपोर्ट ने पहले ही टियर 1 की 1.8 मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष क्षमता और टियर 2 की 0.5 मिलियन वर्ग फुट क्षमता विकसित कर ली है। अब हम देश का पहला कार्गो एसईजेड लाने की दिशा में काम कर रहे हैं, जो दुबई, सिंगापुर, हांगकांग और इंचियोन जैसे वैश्विक हबों में पहले से मौजूद है।

यह टियर 3 इंफ्रास्ट्रक्चर दिल्ली एयरपोर्ट को वैश्विक एविएशन हब बनाने में पूरा समाधान देगा। इसी सोच के साथ हम कार्गो सिटी बना रहे हैं। आने वाली संरचना को कार्गो एसईजेड के रूप में कल्पित किया गया है, जो इलेक्ट्राॅनिक रिपेयर और रिफर्बिशमेंट , किटिंग, लेबलिंग, पैकेजिंग जैसी वैल्यू-एडेड गतिविधियों के लिए बहुत उपयुक्त होगी।

यह पारंपरिक मैन्युफैक्चरिंग एसईजेड से अलग है, जहां हैवी मैन्युफैक्चरिंग या असेंबली लाइन जैसी गतिविधियां होती हैं। डायल का कहना है कि एयरपोर्ट पर एसईजेड का विकास कुछ जरूरी मंजूरियों पर निर्भर है, जिनके लिए आवेदन किया गया है और जिनका इंतजार है।

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