LHC0088 Publish time 2025-12-29 23:14:57

New Year 2026: नए साल में पाना चाहते हैं हनुमान जी की कृपा, तो जरूर करें ये आसान उपाय

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New Year 2026: नए साल की शुरुआत सुंदरकांड या हनुमान चालीसा से करें



मोरारी बापू (प्रसिद्ध कथावाचक)। बात नए साल के अवसर की हो या किसी भी सामान्य दिन की, संकल्प करें कि हम किसी को सुधारेंगे नहीं, बल्कि स्वीकार करेंगे। जो जैसा है, उसे वैसा ही स्वीकार लो। हम होते कौन हैं किसी को सुधारने वाले? परमात्मा ने सभी को अपने तरह का अलग बनाया है। सुधारने की कोशिश करना या किसी में कमियाँ निकाल देना बहुत आसान है। मुश्किल है किसी को स्वीकार करना। प्रत्येक व्यक्ति को कमजोरियों के साथ लोगों को स्वीकार करें। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

अकसर पूछा जाता है कि नया साल कैसे मनाएं। मेरा कहना है कि प्रत्येक व्यक्ति स्वयं निर्णय करे कि उसे नया साल किस तरह से मनाना है। नए साल पर उत्सव किया जाना चाहिए, लेकिन वह सात्विक हो। मैं तो कहता हूं कि खूब जियो और खूब पियो। कथा को अमृत कहा गया है, सत्संग अमृत है। उसे पियो।

और जब मैं सत्संग की बात करता हूं तो मेरा मतलब सिर्फ राम की महिमा का गुणगान सुनना और सुनाना ही नहीं होता है, बल्कि जिस किसी में भी आपकी श्रद्धा हो। नए साल का स्वागत आप 31 दिसंबर की शाम सुंदरकांड का पाठ करके भी कर सकते हैं या फिर मध्यरात्रि में हनुमान चालीसा यज्ञ अथवा सत्संग से भी कर सकते हैं और सत्संग क्या है, यह मैंने आपको बता ही दिया है।

इस बार सत्य, प्रेम और करुणा के साथ करें नए साल का स्वागत। सार रूप में कहूं तो जहां तक मुमकिन हो, सच ही बोलना और सच भी प्रिय ही बोलना। सच के नाम पर कड़वी बातें नहीं की जानी चाहिए। अहंकार से सावधान रहना, धर्म ग्रंथों का पठन-पाठन और चिंतन मनन करना, जहां तक हो सके मौन रहना। मौन ऐसा कि जिसमें किसी परम तत्व की स्मृति बनी रहे।

नववर्ष पर हो सके तो ये चितंन करो, हमारे सुख व दुख, हमारे हित व अनहित, हमारे शुभ व अशुभ, हमारे आरोग्य व रोग का मूल कारण क्या है? उसकी जड़ें कहां हैं? रामचरितमानस मानस में कुछ मूल पदार्थ की पुष्टि की गई है। हम सभी के सुख दुख के चार कारण हैं। हम सभी काल, कर्म, स्वभाव और गुण से घिरे हैं। कभी हम काल के कारण सुखी व दुखी हैं, कभी हम हमारे कर्म के कारण सुखी व दुखी हैं।

कभी हमारे गुण तो कभी स्वभाव के कारण सुखी और दुखी हैं। हम काल के निशाने पर सदा हैं। काल हमारे हाथ में नहीं है, लेकिन जिन कर्म के द्वारा सुख-दुख आते हैं, वो कर्म तो हमारे हाथ में हैं। हम सत्संग और संवाद करके एक विवेक को जाग्रत करें, ताकि हमें ये समझ उपलब्ध हो कि कौन से कर्म करें, कौन से कर्म न करें।

प्रत्येक व्यक्ति अपने अपने तरीके से नया साल मनाता है। तरीका कोई भी हो मगर उसमें विवेक जरूर होना चाहिए। हम कुछ भी करें, वो मानव और मानवता दोनों के हित में होना चाहिए। मानव और मानवता की संरक्षा के लिए सत्य, प्रेम और करुणा का आश्रय लें। नए साल के अवसर पर एक साल में हमारा दिल जितना मैला हो जाता है, उसको धो डालें और फिर तरोताजा एक नई धड़कन, नई ऊर्जा प्राप्त करें।

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