deltin33 Publish time 2025-12-30 00:27:28

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का भावी इंजीनियरों को मंत्र, करुणा से जुड़ी तकनीक ही बनाएगी विकसित भारत, मानवता है सफलता का पैमाना

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एनआईटी केे पंद्रहवें दीक्षांत समारोह में छात्रों को संबोधित करतीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू


जासं, जमशेदपुर। तकनीकी चकाचौंध के इस दौर में मानवीय संवेदनाओं को सर्वोपरि बताते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सोमवार को एनआइटी जमशेदपुर के 15वें दीक्षा समारोह में भावी इंजीनियरों को जीवन और राष्ट्र निर्माण का मूल मंत्र दिया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि ऊंची इमारतों, बड़े आर्थिक पैकेज और अत्याधुनिक मशीनों से ही विकसित राष्ट्र का निर्माण नहीं होता।    सच्चा विकास तभी संभव है, जब तकनीक का लाभ समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे। राष्ट्रपति ने कहा कि आज दुनिया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ऑटोमेशन और नई तकनीकों की ओर तेजी से बढ़ रही है, लेकिन यदि इन नवाचारों में करुणा और संवेदना नहीं होगी तो विज्ञान विनाश का कारण भी बन सकता है।    उन्होंने चेताया कि बिना मानवीय दृष्टिकोण के किया गया आविष्कार केवल मशीन खड़ी कर सकता है, जबकि संवेदना से जुड़ा नवाचार समाज के लिए वरदान बनता है। राष्ट्रपति ने एनआइटी जमशेदपुर के ऐतिहासिक और भौगोलिक महत्व का उल्लेख करते हुए छात्रों को सफलता की नई परिभाषा समझाई।   
प्रतिष्ठित कंपनियों में नौकरी से नहीं मापा जाना चाहिए सफलता उन्होंने कहा कि सफलता को केवल बड़े पैकेज, ऊंचे पद या प्रतिष्ठित कंपनियों में नौकरी से नहीं मापा जाना चाहिए। असली सफलता यह है कि आपके ज्ञान, कौशल और नवाचार से कितने लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव आया।    समारोह के दौरान एक हल्के-फुल्के लेकिन गहरे संदेश वाला क्षण भी देखने को मिला। जब स्वर्ण पदक विजेताओं के लिए तालियां अपेक्षाकृत कम बजीं, तो राष्ट्रपति ने मुस्कराते हुए कहा, देना है तो लेना है। आज आप दूसरों के लिए ताली बजाएंगे, तभी कल आपके लिए भी तालियां बजेंगी।   
शिक्षा, उद्योग और राष्ट्र निर्माण के लिए टीमवर्क जरूरी यह टिप्पणी केवल हास्य नहीं, बल्कि टीमवर्क, सहयोग और सामूहिक सफलता का संदेश थी, जो शिक्षा, उद्योग और राष्ट्र निर्माण तीनों के लिए अनिवार्य है।

राष्ट्रपति ने साइबर अपराध, ई-कचरा और तकनीक के दुरुपयोग जैसी चुनौतियों का उल्लेख करते हुए कहा कि तकनीक का इस्तेमाल विनाश के लिए नहीं, बल्कि विकास और मानव कल्याण के लिए होना चाहिए। उन्होंने अंत्योदय की भावना को रेखांकित करते हुए कहा कि विकसित भारत का सपना तभी साकार होगा, जब समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को भी सम्मानजनक और सुरक्षित जीवन मिले।

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जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य, स्वच्छ ऊर्जा के लिए दें योगदान शिक्षण संस्थानों की भूमिका पर राष्ट्रपति ने कहा कि किसी संस्थान की प्रतिष्ठा केवल उसकी रैंकिंग या प्लेसमेंट आंकड़ों से तय नहीं होनी चाहिए। असली कसौटी यह है कि वह संस्थान देश की समस्याओं- जैसे जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य, स्वच्छ ऊर्जा और सामाजिक असमानता के समाधान में कितना योगदान दे रहा है।    उन्होंने वर्ष 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लक्ष्य में रिसर्च, इनोवेशन, स्टार्टअप्स और मल्टी-स्टेकहोल्डर अप्रोच को बेहद अहम बताया। दीक्षा समारोह में परंपरा और आधुनिकता का अनूठा संगम भी देखने को मिला।   
अध्यात्म और संस्कृति के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए सम्मान अध्यात्म और संस्कृति के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए स्वामी गोविंद देव गिरि जी महाराज को डॉक्टर ऑफ लिटरेचर (डी-लिट) और उद्योग जगत में उल्लेखनीय योगदान के लिए आरएसबी ग्रुप के चेयरमैन आरके बेहरा को डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी (डी-फिल) की मानद उपाधि प्रदान की गई।    राष्ट्रपति ने एनआइटी जमशेदपुर में स्थापित सेंटर फॉर इनोवेशन एंड इनक्यूबेशन काउंसिल (सीसीआइसी) की भी सराहना की। उन्होंने कहा कि आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र के बीच स्थित होने के कारण एनआइटी के पास इंडस्ट्री और एकेडमिक्स के सहयोग का बड़ा अवसर है।    भारत के दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम होने का उल्लेख करते हुए उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे नौकरी खोजने वाले नहीं, बल्कि नौकरी देने वाले बनें और स्थानीय समस्याओं के समाधान के लिए स्टार्टअप्स विकसित करें।

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