deltin33 Publish time 2025-12-30 17:27:32

1.21 लाख लाभार्थियों ने नहीं कराया एक भी रिफिल, पंजाब में उज्ज्वला योजना की स्थिति चिंताजनक; हीटर और इंडक्शन पर लौटे लोग

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पंजाब में प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना की स्थिति चिंताजनक है (फाइल फोटो)



रोहित कुमार, चंडीगढ़। पंजाब में ऊर्जा की पसंद बदल रही है। जहां सरकार गैस को स्वच्छ विकल्प बनाना चाहती है, वहीं उपभोक्ता जेब के हिसाब से बिजली को चुन रहे हैं। जब तक रसोई का खर्च काबू में नहीं आएगा, तब तक उज्ज्वला योजना की लौ कमजोर ही बनी रहेगी। यही तस्वीर ताजा सरकारी आंकड़े में सामने आई है, जिसने प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना की जमीनी स्थिति पर सवाल खड़े कर दिए हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में दिए गए आंकड़ों के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2024-25 में राज्य में 1.21 लाख लाभार्थियों ने एक बार भी एलपीजी सिलेंडर रिफिल नहीं कराया, जबकि 99 हजार लोगों ने सिर्फ एक बार सिलेंडर भरवाया। यह बताता है कि लाखों परिवार गैस कनेक्शन होने के बावजूद उसका उपयोग नहीं कर रहे हैं।

यह प्रवृत्ति नई नहीं है। वर्ष 2023-24 में 93,622 लाभार्थियों ने एक भी रिफिल नहीं कराया, जबकि 1.04 लाख लोगों ने सिर्फ एक बार सिलिंडर भरवाया। इसी तरह वर्ष 2022-23 में 90,233 लाभार्थियों ने सिलेंडर नहीं भरवाया और 88,406 लाभार्थियों ने सिर्फ एक बार ही रिफिल कराया।

सरकार ने एलपीजी को किफायती बनाने के लिए मई 2022 में 14.2 किलो सिलेंडर पर 200 रुपये की सब्सिडी शुरू की थी, जिसे अक्टूबर 2023 में बढ़ाकर 300 रुपये किया गया और यह सहायता 2025-26 तक जारी रखने का फैसला लिया गया है। इसके बावजूद रिफिल कराने वालों की संख्या लगातार घट रही है।

इसके उलट राज्य में बिजली की उपलब्धता बेहतर हुई है और कई वर्गों को सस्ती या मुफ्त बिजली मिल रही है। इसी वजह से गरीब और मध्यम वर्ग के परिवार इंडक्शन कुकर, इलेक्ट्रिक हीटर जैसे विकल्पों की ओर बढ़ रहे हैं, जिनमें मासिक खर्च कम और भुगतान आसान पड़ता है।

रिसर्च एंड डेवलपमेंट इनिशिएटिव (आरडीआई) के थर्ड पार्टी मूल्यांकन में उज्ज्वला योजना के स्वास्थ्य संबंधी सकारात्मक प्रभाव सामने आए थे, लेकिन मौजूदा ट्रेंड से साफ है कि आर्थिक मजबूरी अब ऊर्जा की पसंद तय कर रही है। प्रदेश में उज्ज्वला लाभार्थियों की संख्या 2024-25 में 13,59,256, 2023-24 में 13,59,705 और 2022-23 में 12,83,976 रही है।

यानी कनेक्शन बढ़े, लेकिन इस्तेमाल घटा। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर गैस और बिजली के खर्च में यह अंतर बना रहा तो उज्ज्वला योजना केवल कागजों की योजना बनकर रह जाएगी। सरकार के सामने अब चुनौती सिर्फ कनेक्शन देना नहीं, बल्कि उसे नियमित उपयोग में लाना है।
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