हरियाणा: मृत कर्मचारी की विधवा के रोके पैसे पर HC सख्त, निगम को ब्याज सहित लौटाने पड़े 1.70 लाख रुपये
/file/upload/2025/12/1488146782632162563.webpबिना चार्जशीट और बिना विभागीय जांच कर्मचारी से नुकसान की वसूली पूरी तरह अवैध: हाई कोर्ट (फाइल फोटो)
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। कानून और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों की अनदेखी कर सरकारी कर्मचारी के वेतन व सेवानिवृत्ति लाभों से की गई कटौती पर कड़ा रुख अपनाते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि बिना चार्जशीट जारी किए और बिना विभागीय जांच कराए किसी भी कर्मचारी से कथित नुकसान की वसूली पूरी तरह अवैध और मनमानी है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
अदालत ने दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम को आदेश दिया है कि वह मृत कर्मचारी की पत्नी को रोकी गई एक लाख 70 हजार 68 रुपये की राशि 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित जारी करें, साथ ही पहले से रोकी गई ग्रेच्युटी की राशि पर भी ब्याज दिया जाए।
यह फैसला जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ ने रेनू शर्मा की याचिका पर सुनाया। याची ने अपने दिवंगत पति सुभाष चंद्र शर्मा की ओर से न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। मामले के अनुसार, सुभाष चंद्र शर्मा दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम में जूनियर इंजीनियर (इलेक्ट्रिकल) के पद पर कार्यरत थे और 28 फरवरी 2017 को सेवानिवृत्त हुए थे।
सेवानिवृत्ति के बाद बिजली निगम ने ट्रांसफार्मरों में तेल की कथित कमी और कुछ पुर्जों के गायब होने का आरोप लगाते हुए कुल सात लाख 12 हजार 658 रुपये की राशि काट ली।
इसमें एक लाख 70 हजार 68 रुपये वेतन से और पांच लाख 42 हजार 590 रुपये सेवानिवृत्ति लाभों से वसूले गए।
यह पूरी कार्रवाई बिना किसी चार्जशीट और बिना विभागीय जांच के की गई। अदालत ने रिकार्ड का हवाला देते हुए विशेष रूप से रेखांकित किया कि स्वयं निगम के अधीन एक्सईएन (सब-अर्बन डिवीजन, सिरसा) द्वारा की गई विस्तृत जांच में यह स्पष्ट निष्कर्ष निकाला गया था कि कथित नुकसान के लिए कर्मचारी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। इसके बावजूद निगम द्वारा वसूली करना न्यायालय के अनुसार “स्पष्ट रूप से गैरकानूनी और मनमानी” था।
जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ ने टिप्पणी की कि सेवानिवृत्ति के बाद या बिना चार्जशीट जारी किए किसी कर्मचारी के ग्रेच्युटी या अन्य वैधानिक लाभ रोके नहीं जा सकते। अदालत ने पूर्व में दिए गए डिवीजन बेंच के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि चार्जशीट जारी करना विभागीय कार्रवाई की अनिवार्य शर्त है और इसके अभाव में की गई किसी भी प्रकार की कटौती कानूनन टिक नहीं सकती।
अदालत ने यह भी माना कि याचिकाकर्ता को शेष बकाया राशि की जानकारी बाद में सरकारी पत्रों के माध्यम से मिली, इसलिए देरी को अनुचित माना गया। अंतत: हाई कोर्ट ने निगम को निर्देश दिया कि एक लाख 70 हजार 68 रुपये की बकाया राशि पर सेवानिवृत्ति की तारीख के दो माह बाद से 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दिया जाए, जबकि पहले से जारी की गई पांच लाख 42 हजार 590 रुपये की राशि पर भी 28 फरवरी 2017 से 25 जुलाई 2025 तक ब्याज का भुगतान किया जाए। कोर्ट ने साफ कर दिया कि कानून की प्रक्रिया को दरकिनार कर कर्मचारियों के वैधानिक अधिकारों में कटौती किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं होगी।
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