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मेरा कोई दोस्त नहीं...अगर बच्चा स्कूल से आकर रोने लगे, तो पेरेंट्स घबराएं नहीं, बस अपनाएं 8 तरीके

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जब दोस्त करें बच्चे को नजरअंदाज, तो पेरेंट्स ऐसे दें भावनात्मक सहारा



लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। बचपन की दोस्ती बच्चों की दुनिया का अहम हिस्सा होती है। जब बच्चे को उसके दोस्तों द्वारा इग्नोर किया जाता है, मजाक उड़ाया जाता है या ग्रुप से बाहर कर दिया जाता है, तो वह खुद को अकेला महसूस कर सकता है। ऐसे में बच्चे का आत्मविश्वास पर गहरा असर पड़ता है।विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

ऐसे में पेरेंट्स को चाहिए कि वे इस समय अपने बच्चे का भावनात्मक सहारा बनें, उसकी भावनाओं को समझें और उसे सिखाएं कि ऐसे एक्सपीरिएंस जीवन का हिस्सा हैं, लेकिन वो उसे परिभाषित नहीं करते। इस तरह के सेंसिटिव समय में माता-पिता द्वारा किया गया व्यवहार बच्चे को मजबूत और आत्मनिर्भर बना सकता है। ऐसे में पेरेंट्स को ये कुछ बेहद जरूरी कदम उठाने चाहिए।
बच्चे की बात को पूरी सहानुभूति से सुनें

बिना टोकें और बिना जज किए, बच्चे की पूरी बात ध्यान से सुनें। उसे यह एहसास दिलाएं कि उसकी भावनाएं मायने रखती हैं और आप उसे समझने के लिए वहां मौजूद हैं।
दूसरे बच्चे को जल्दी ही दोष देने से बचें

गुस्से में आकर उस दोस्त या अन्य बच्चों को बुरा कहने से बचें। इससे बच्चे के मन में नफरत पनप सकती है। पहले स्थिति को समझें।
बच्चे की भावनाओं को स्वीकार करें

उससे कहें कि गुस्सा, उदासी या अकेलापन महसूस करना बिल्कुल नॉर्मल है। उसकी हर भावना को मान्यता देना ज़रूरी है।
बच्चे को यह समझाएं कि यह टाइम परमनेंट नहीं है

उसे बताएं कि दोस्ती में उतार-चढ़ाव आते हैं और समय के साथ वह बेहतर लोगों से मिलेगा।
भावना को नॉर्मल ही रहने दें, तुरन्त ठीक न करें

बच्चे को रोने दें, खुद को खाली करने दें। हर भावना को तुरंत ठीक करने की कोशिश न करें, वरना वो दब जाएगी।
उसके आत्म-सम्मान को बढ़ाने वाले कामों में उसे लगाएं

उसे ऐसी एक्टिविटीज में शामिल करें जिनमें वह अच्छा है, जिससे उसमें फिर से आत्मविश्वास लौटे।
घर पर ही अपनेपन के छोटे-छोटे पल बनाएं

एक साथ खेलना, खाना बनाना या बात करना,ऐसे छोटे पल बच्चों को भावनात्मक सुरक्षा का एहसास दिलाते हैं।
धीरे-धीरे सोशल स्किल्स सिखाएं

बच्चे को बताएं कि अच्छे दोस्त कैसे बनते हैं, जैसे–दूसरों की बात सुनना, विनम्रता दिखाना और अपनी भावनाएं खुलकर साझा करना।

इन तरीकों से आप अपने बच्चे को न केवल एक कठिन समय से निकाल सकते हैं, बल्कि उसमें जीवन की चुनौतियों से निपटने की समझ और कॉन्फिडेंस भी विकसित कर सकते हैं।

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