यूजीसी क्लर्क भर्ती परीक्षा में इम्पर्सनेशन पर चार को तीन साल की सजा, फिंगरप्रिंट से हुआ फर्जीवाड़े का खुलासा
/file/upload/2026/01/1980560981380056582.webpजागरण संवाददाता, नई दिल्ली। राउज एवेन्यू स्थित अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत ने यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (यूजीसी) की लोअर डिविजनल क्लर्क भर्ती परीक्षा में इम्पर्सनेशन (दूसरे से परीक्षा दिलवाने) का अपराध साबित होने पर चार आरोपितों को तीन वर्ष की सजा सुनाई है। अदालत ने कहा कि यह अपराध पूरी जानकारी और समझ के बावजूद किया गया और अभियुक्तों ने दोष स्वीकार करने के बजाय मुकदमे को लगभग नौ वर्ष तक खींचे रखा। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
फिंगरप्रिंट साइंस अत्यधिक विश्वसनीय
अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट मयंक गोयल ने कहा कि फारेंसिक साक्ष्य और विशेषज्ञ रिपोर्ट ने यह साबित कर दिया कि परीक्षा में धोखाधड़ी की गई थी। अदालत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट भी साफ कर चुका है कि फिंगरप्रिंट साइंस अत्यधिक विश्वसनीय है और गलत पहचान की संभावना लगभग न के बराबर होती है। अदालत ने माना कि धोखाधड़ी, आपराधिक साजिश और इम्पर्सनेशन के आरोप संदेह से परे साबित हो गए हैं। दोषियों की पहचान पप्पू कुमार, पवन कुमार, राजीव रंजन और ऋषि नाथ के रूप में हुई है।
...ताकि अवैध तरीके से नौकरी हासिल कर सकें
यह मामला वर्ष 2015 में सीबीआई की एंटी करप्शन शाखा द्वारा दर्ज किया गया था। जांच एजेंसी के अनुसार आरोपित यूजीसी में लोअर डिविजन क्लर्क की भर्ती के लिए आयोजित लिखित व टाइपिंग परीक्षा में खुद शामिल होने के बजाय अज्ञात लोगों को रुपये देकर अपनी जगह परीक्षा दिलवा रहे थे, ताकि अवैध तरीके से नौकरी हासिल कर सकें।
फिंगरप्रिंट्स से उनका मिलान नहीं हो रहा
सीबीआई ने वर्ष 2019 में दायर आरोपपत्र में बताया कि आरोपितों ने साजिश के तहत यूजीसी को धोखा दिया और गंभीर धोखाधड़ी की। मामला तब सामने आया जब चयन के बाद उनके कामकाज पर संदेह हुआ और दोबारा टाइपिंग टेस्ट कराया गया, जिसमें सभी असफल हो गए। इसके बाद उनके अंगूठे के निशान लिए गए और जांच में यह पाया गया कि परीक्षा के समय दर्ज किए गए फिंगरप्रिंट्स से उनका मिलान नहीं हो रहा था।
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