2025 में संसद की कार्यवाही: लोकसभा-राज्यसभा ने विधायी कार्य पर 30% से भी कम समय किया खर्च, रिपोर्ट में खुलासा
/file/upload/2026/01/311736678222632363.webpलोकसभा-राज्यसभा ने विधायी कार्य पर 30 % से भी कम समय व्यय किया
पीटीआई, नई दिल्ली। विधायी थिंक टैंक PRS लेजिस्लेटिव रिसर्च की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, 2025 में लोकसभा और राज्यसभा ने अपने कुल कार्य समय का 30 प्रतिशत से भी कम हिस्सा विधायी कार्यों पर व्यतीत किया। इसमें विधेयकों पर चर्चा और उन्हें पारित करने का समय शामिल है।विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
रिपोर्ट में यह भी उजागर किया गया कि प्रश्नकाल निर्धारित समय से काफी कम चला, जो संसदीय जवाबदेही के लिए महत्वपूर्ण है।
पीआरएसकी विश्लेषण रिपोर्ट में कहा गया है कि दोनों सदनों ने वर्ष भर में कुल 62 दिन कार्य किया। लोकसभा ने अपने निर्धारित समय का 80 प्रतिशत और राज्यसभा ने 83 प्रतिशत उपयोग किया।
हालांकि, विधायी कार्यों पर फोकस बेहद कम रहा। प्रश्नकाल लोकसभा में सुबह 11 से 12 बजे और राज्यसभा में दोपहर 12 से 1 बजे तक निर्धारित है, लेकिन यह पूर्ण अवधि तक नहीं चला।
2025 में संसद ने कुल 31 विधेयक पारित किए
वर्ष 2025 में संसद ने कुल 31 विधेयक पारित किए। इनमें प्रमुख रूप से वक्फ संपत्तियों के नियमों में संशोधन करने वाला वक्फ (संशोधन) विधेयक, आयकर कानूनों को सरल बनाने वाला विधेयक, ऑनलाइन पैसे कमाने वाले गेम्स और संबंधित सेवाओं पर प्रतिबंध लगाने वाला कानून शामिल है। इसके अलावा, परमाणु ऊर्जा क्षेत्र को निजी खिलाड़ियों के लिए खोलने वाला शांतिविधेयक और बीमा क्षेत्र में 100 फीसदीFDI की अनुमति देने वाला विधेयक भी पारित हुए।
मनरेगा में बड़े बदलाव
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA), 2005 को प्रतिस्थापित करते हुए विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड अजीविका मिशन (ग्रामीण) (VB-G RAM G) विधेयक पारित किया गया।
इस नए कानून के तहत ग्रामीण परिवारों को प्रति वर्ष 125 दिन का रोजगार गारंटी दिया गया है (पहले 100 दिन)। केंद्र और राज्यों के बीच फंड शेयरिंग अब 60:40 अनुपात में होगा (पूर्वोत्तर और पहाड़ी राज्यों के लिए 90:10)। कृषि सीजन में कार्यों पर 60 दिन तक की रोक का भी प्रावधान है।
18वीं लोकसभा के कार्यकाल में अब तक 42 विधेयक पेश किए गए हैं
18वीं लोकसभा के कार्यकाल में अब तक 42 विधेयक पेश किए गए हैं, जिनमें से 26 प्रतिशत (11 विधेयक) को विस्तृत जांच के लिए संसदीय समितियों को भेजा गया।
केवल एक विधेयक को विभागीय स्थायी समिति के पास भेजा गया। इनमें एक राष्ट्र एक चुनाव से संबंधित दो विधेयक और हिरासत में लिए गए मंत्रियों की अयोग्यता से जुड़े तीन विधेयक शामिल हैं, जिनकी संयुक्त समितियों द्वारा जांच चल रही है।
पीआरएसरिपोर्ट के अनुसार, कम विधायी समय और समिति जांच की कमी से कानून बनाने की प्रक्रिया पर सवाल उठ रहे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि इससे संसद की जवाबदेही और गहन चर्चा प्रभावित हो रही है। वर्ष के अंत में यह रिपोर्ट संसदीय कार्यप्रणाली पर बहस को नई दिशा दे सकती है।
Pages:
[1]