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नोएडा में जज्बे और हौसलों से मरीज ने हीमोफीलिया-ए बीमारी को हराया, चाइल्ड PGI में हुआ सफल इलाज

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चाइल्ड पीजीआई में भर्ती सुमित ने हौंसलों से हीमोफीलिया-ए बीमारी को हराने के बाद बहनों के साथ। जागरण



जागरण संवाददाता, नोएडा। जंग जीतने की खातिर बहुत सहना पड़ता है, बीमारी से भी मुस्कराकर लड़ना पड़ता है, तुम सीखो जंग जीतने का हुनर, हमनें तो जज़्बे और हौसलों से बीमारी को हराया है। नई दिल्ली के बदरपुर में रहने वाले 19 वर्षीय सुमित ने हीमोफीलिया-ए जैसी गंभीर बीमारी को संघर्ष और मजबूत हौंसलों से हरा दिया है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

दो दिसंबर रक्तस्रावी सदमे की गंभीर स्थिति में बहनों ने अपने भाई को सेक्टर-30 स्थित चाइल्ड पीजीआई में भर्ती कराया था। वरिष्ठ चिकित्सकों की निगरानी में मरीज का इलाज हुआ। स्वास्थ्य बेहतर होने पर चिकित्सकों ने मरीज को अस्पताल से डिस्चार्ज कर घर भेज दिया है।

मूलरूप से उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में रहने वाली पूजा अपने भाई-बहन और मानसिक रूप से बीमार मां के साथ दिल्ली में रहती हैं। उन्होंने बताया कि नवंबर 2025 में छोटे भाई सुमित को बार-बार आंतरिक रक्तस्राव आ रहा था। मल में खून आने के कारण वह परेशान रहने लगा था।

निचले गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल रक्तस्राव के बारे में डर और शर्मिंदगी के कारण वह किसी को कुछ नहीं बता पा रहा था। लक्षणों की गंभीरता को छिपाने में प्रयास कर रहा था। हीमोटोलाजी विभाग की हेड डा. नीता राधाकृष्णन ने बताया कि हीमोफीलिया-ए गंभीर बीमारी है।

मरीज सुमित 2023 में दिल्ली की एक टर्शियरी केयर सेंटर गया था। जहां गंभीर आंतरिक रक्तस्राव और अंगों में सूजन के बाद उसे हीमोफीलिया-ए का पता चला। उसे अंगों में सूजन और अन्य दिक्कतें होती थीं। दो दिसंबर को चाइल्ड पीजीआई में बहनों के साथ आने पर चिकित्सकों ने जांच की।

रिपोर्ट देखकर फैक्टर रिप्लेसमेंट थेरेपी शुरू की। इससे पहले टीम ने अत्यधिक रक्तस्त्राव का कारण पता किया। जांच में आया कि उसे इनहिबिटर पाजिटिव हीमोफीलिया है, जिसका पहले पता नहीं चला था। इसके बाद उसे बाईपासिंग गहन चिकित्सा की दवाइयां दी गईं। नतीजा ये रहा कि उसकी हालत में सुधार हुआ।

इस बीच उसने रोगी कल्याण योजनाओं की मदद से इलाज जारी रखा। वह हीमोफीलिया सहायता समूह का हिस्सा बन गया जिससे लगातार देखभाल करने में कोई दिक्कत नहीं आई। यही नहीं, पीडियाट्रिक गैस्ट्रोएंटरोलाजी विभाग और पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग भी इलाज में शामिल थे। गैस्ट्रोएंटरोलाजी विभाग की टीम ने ब्लीडिंग की जगह का पता लगाने के लिए एंडोस्कोपी की।

टीम ने ब्लड बैंक से इमरजेंसी ब्लड यूनिट्स का इंतजाम किया। रक्तदाताओं के नेटवर्क से संपर्क किया गया। परिवार के सदस्यों ने भी खून दिया। विशेष बात है कि अस्पताल में बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन करवा रहे बच्चों के माता-पिता ने भी मरीज सुमित को खून दिया। इलाज के दौरान मुश्किलों के बावजूद उसकी बहनों ने मेडिकल टीम पर अटूट विश्वास किया।

नतीजा ये रहा कि सुमित की हालत में लगातार सुधार हुआ। रक्तस्राव भी बंद हो गया। जांच रिपोर्ट में स्थ्ज्ञिति सामान्य आने पर चिकित्सकों ने पिछले दिनों उसे डिस्चार्ज कर दिया। फिलहाल स्वजन ने अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक और अन्य लोगों का आभार व्यक्त किया है।
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