अब भारत एक पारंपरिक शक्ति से विश्व शक्ति बन चुका है। फाइल फोटो।
विवेक सिंह, जम्मू। सशस्त्र सेनाओं ने हिम्मत व दिलेेरी दिखा पुराने हथियारों से वर्ष 1971 के युद्ध में पाकिस्तान की कमर तोड़ी थी। बेहतर रणनीतिक तैयारी, प्रभावी नेतृत्व व देशवासियों के भारी समर्थन से सेना ने 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों का घुटनों पर ला इतिहास रचा था। अब 55 सालों में जमीन के साथ साइबर व स्पेस में युद्ध की तैयारी से देश की सैन्य ताकत आसमान छू रही है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
अब पाकिस्तान ने आंख दिखाई तो सेना उसे पूरी तरह से मिट्टी में मिल देगी। आपरेशन सिंदृर के दौरान पाकिस्तान को कड़ा सबक सिखा चुके भारतीय सैनिकों ने मंगलवार को विजय दिवस पर वर्ष 1971 के बलिदानियों का नमन कर उनसे यह प्रेरणा ली। वर्ष 1971 में भारतीय सेना पुराने हथियारों के साथ लड़ते हुए दुश्मन पर भारी पड़ी थी। अाज हमारे सैनिक बेहतर प्रशिक्षण, उन्नत तकनीक, आधुनिक हथियारों व ड्रोन से लैस है।
अब सेना कई गुणा ताकतवर है
जम्मू कश्मीर, लद्दाख में अच्छी सड़कों, रियल टाइम संचार, सेटेलाइट स्पोर्ट, सर्वेलांस नेटवर्क से हुए हैं अब सेना कई गुणा ताकतवर है। सशस्त्र सेनाओं की सामरिक क्षमता में भी अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। सैनिकों का मनोबल सातवें आसमान पर है। सेना की उत्तरी कमान ने विजय दिवस पर बलिदानियों को याद कर देश की सुरक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने का प्रण लिया। विजय दिवस पर जम्मू से लेकर सियाचिन ग्लेशियर तक सैनिकों ने 1971 के बलदानियों के योगदान को याद कर उनसे प्रेरणा ली।
वर्ष 1971 में भारत के पुराने सेंटरियन टैंकों, मिग-21, हंटर, कैनबरा विमानों से युद्ध लड़ा था। इस युद्ध में पैदल सैनिकों के उच्च मनोबल ने दुश्मन का हौसला तोड़ा था। उस समय सेना के पास हथियारों की कमी थी। ऐसे में बांग्लादेश को आजाद करवाने के लिए सशस्त्र सेनाओं ने करीब चार महीने तक तैयारी कर अपने पुराने टैंकों, वाहनों, साजो सामान को युद्ध के लिए तैयार किया था।
आज सशस्त्र सेनाएं किसी भी समय पर युद्ध लड़ने को तैयार
आज देश की सशस्त्र सेनाएं किसी भी समय पर युद्ध लड़ने को तैयार हैं। कई गुणा उन्नत व तकनीक आधारित सशस्त्र सेनाएं जमीन के साथ आसमान व सागर में ताकतवर है। युद्ध लड़ने के लिए अब महिलाएं भी सशस्त्र सेनाओं में शामिल होकर मैदान में हैं। अब भारत एक पारंपरिक शक्ति से विश्व शक्ति बन चुका है।
वर्ष 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में ललयाली की लड़ाई में वीर चक्र हासिल करने वाले सेना के सेवानिवृत कर्नल विरेंद्र साही का कहना है कि 55 साल पहले के युद्ध में सेना की हिम्मत व दिलेरी जीत का कारण थी। हमारे हथियार, टैंक, तोपों पुरानी थी। इनसे ही हमने वर्ष 1965 की लड़ाई भी लड़ी थी। लेकिन 1971 में युद्ध जीतने के लिए बेहतर रणनीति तैयारी काम आई थी। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी चाहती थी कि हम जल्द हमला कर दें।
जनरल मानेकशा ने स्पष्ट किया था कि गर्मी में पूर्वी बांग्लादेश में हमारे टैंक पानी में फंस जाएंगे, ऐसे में सर्दी आने का इंतजार किया जाए ताकि कमियों को दूर करना संभव हो। हम मिले चार पांच महीनों में युद्ध की तैयारी हुई। देश की मजबूत इच्छाशक्ति व सेना की सही तैयारी ने दुश्मन को 13 दिनों में ही घुटनों पर ला दिया।
हमारी सैन्य शक्ति जमीन से आसमान तक पहुंची
कर्नल साही का कहना है कि 55 सालों में हमारी सैन्य शक्ति जमीन से आसमान तक पहुंच गई है। हमारे पास अब बेहतर परमाणु शस्त्रागार, लंबी दूरी की अग्नि, पृथ्वी जैसी मिसाइलें, पनडुब्बी-प्रक्षेपित प्रणालियां सुखोई एसयू-30, चिनूक हेलीकाप्टर और उन्नत निगरानी विमान हैं।
अब देश में टैंक, तोपें, फाइटर विमान व हेलीकाप्टर बन रहे हैं। भारतीय सेना आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस व उन्नत ड्रोन तकनीकों से लैस है। पाकिस्तान अब हमसे युद्ध लड़ने की हिम्मत नही कर सकता है। आपरेशन सिंदूर के दौरान हमारे सटीक प्रहारों से उसके मनोबल को तोड़ दिया था। पाकिस्तान ने सीधे युद्ध के लिए फिर हिम्मत की तो वह खत्म हो जाएगा।
पूर्वी बंगाल में मुंह की खाने वाले पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर व लद्दाख में मोर्चा खाेला तो हमारी सेनाएं उसके इलाके में घुस गई थी। वर्ष 1971में जम्मू क्षेत्र के सांबा में बसंतर व ललयाली इलाकों में भारतीय सेना ने दुश्मन को मारा था। सैनिकों ने दर्जनों टैंक तबाह कर पाकिस्तान के काफी हिस्से को अपने कब्जे में ले लिया था।
हमारे जवानों ने पाक की हर साजिश को नाकाम किया
सोलह दिसंबर को सेकेंड लेफ्टिनेंट अरूण खेत्रपाल ने शक्करगढ़ में लड़ी गई बसंतर की लड़ाई के दौरान दुश्मन के दस टैंक तबाह कर वीरगति पाई थी। वहीं छंब सेक्टर में ललयाली की लड़ाई में भारतीय सेना के वीरों ने अखनूर को जीत राजौरी, पुंछ को कब्जे में लेने की पाकिस्तानी सेना की साजिश नाकाम कर दी थी।
इस युद्ध के नायक कर्नल साही का कहना है कि दुश्मन अखनूर को काटना चाहता था। लेकिन ललयाली की लड़ाई के कारण वह 178 किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा नही कर पाया व उसे मार खानी पड़ी। इससे उसकी बांग्लादेश को जाने दो व राजौरी पुंछ जिलों को को हड़प लो की साजिश नाकाम हो गई थी। |