झारखंड के हजारीबाग की मिट्टी में कुछ तो खास है। यहां की हवा में इतिहास की गंध घुली है और हर कण में बीते युगों की कहानी छिपी है। कहते हैं- समय बीत जाता है, लेकिन मिट्टी अपने अंदर सब कुछ सहेज कर रखती है। कुछ ही दिन पहले, हजारीबाग के शांत से गांव गोदखर में सुबह की शुरुआत आम दिनों जैसी थी। लोधा परिवार की धनवा देवी अपने नए घर की नींव खुदवाने में व्यस्त थीं। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत उन्हें यह घर मिल रहा था। लेकिन इस बार धरती के भीतर से सिर्फ ईंट-पत्थर नहीं, इतिहास खुद बाहर आ गया।
जब JCB ने मिट्टी की एक परत को हटाया, तो अचानक किसी पत्थर से टकराने की आवाज आई। मजदूरों ने जरा नजदीक जाकर देखा तो उन्हें पत्थर नहीं, एक आकृति दिखाई दी- किसी देव मूर्ति जैसी। लोगों ने सावधानी से मिट्टी हटाई, तो धीरे-धीरे उमा-महेश्वर की एक प्राचीन प्रतिमा सामने आ गई।
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गांव में मानो हड़कंप मच गया। कुछ ही घंटों में गांववाले वहां इकट्ठा हो गए, कोई मोबाइल से फोटो खींच रहा था, कोई बस देखे जा रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे सदियों की कहानी इस एक मूर्ति में जीवंत हो उठी हो।
जब स्थानीय पत्रकार मुरारी सिंह को खबर मिली, उन्होंने तुरंत इसकी तस्वीरें पुरातत्व विशेषज्ञ डॉ. नीरज मिश्रा तक पहुंचाईं। तस्वीरें देखकर ही डॉ. मिश्रा समझ गए कि यह कोई साधारण मूर्ति नहीं। उन्होंने बताया कि यह पाल वंश के काल की प्रतिमा है, जो शायद 9वीं से 10वीं शताब्दी की होगी। उस दौर में शिव और पार्वती की संयुक्त मूर्तियां बहुत आम थीं और यह उसी परंपरा की एक दुर्लभ झलक है।
मूर्ति मिलने के बाद गोदखर गांव में माहौल बदल गया। जिस घर की जमीन से यह निकली, उन्होंने इसे सम्मानपूर्वक अपने घर में रख दिया और पूजा शुरू कर दी।
कुछ लोगों ने कहा, “यह सिर्फ पत्थर नहीं, हमारे गांव की आस्था और पहचान है।” अब गांव में चर्चा है कि यहां एक छोटा मंदिर बनवाया जाए, ताकि सब आकर इस ऐतिहासिक मूर्ति के दर्शन कर सकें।
लेकिन कुछ लोग आशंकित भी हैं, कहीं ये मूर्ति किसी संग्रहालय में न ले जाई जाए। आखिर ये सिर्फ पुरातत्व का हिस्सा नहीं, गांव की भावनाओं से जुड़ी है।
गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि इससे पहले भी इस इलाके में खुदाई के दौरान छोटे-छोटे अवशेष मिले हैं। इससे साफ होता है कि कभी यहां कोई समृद्ध बस्ती रही होगी। यही वजह है कि पुरातत्व विशेषज्ञ इसे ऐतिहासिक दृष्टि से बेहद संभावनाशील क्षेत्र मानते हैं।
वैसे भी, हजारीबाग में पहले भी कई अनमोल खोजें हो चुकी हैं- छड़वा डैम के पास फैले प्राचीन अवशेष और बहोरनपुर में मिली बौद्ध मूर्तियां इस मिट्टी की सांस्कृतिक गहराई को साबित करती हैं। हजारीबाग सिर्फ सुंदर नहीं, बल्कि वह एक जीवित इतिहास की भूमि है, जो अब भी धीमे-धीमे अपनी कहानियां सुनाने लगी है।
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