बिष्टुपुर स्थित होटल रमाडा में आयोजित प्रेसवार्ता में जानकारी देते अतिथि।
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर। सपनों की राह कभी सीधी नहीं होती, लेकिन जिनके भीतर अपने मन की आवाज सुनने का साहस होता है, वे तमाम बाधाओं के बीच भी अपनी मंजिल गढ़ लेते हैं। जमशेदपुर लिटरेचर फेस्टिवल में कुछ ऐसी ही कहानियां सामने आईं, जिन्होंने श्रोताओं को न केवल प्रेरित किया, बल्कि यह भी सिखाया कि कला और साहित्य केवल अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि जीवन का संघर्ष और आत्मा की पुकार भी हैं।
इस मंच पर देश के चर्चित लोकगायक राहगीर, पद्मश्री से सम्मानित गोंड कलाकार भज्जू श्याम और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित लेखक डॉ. दामोदर खड़से ने अपने अनुभव साझा किए। तीनों की यात्राएं अलग थीं, लेकिन उनका साझा सूत्र था- संघर्ष, संवेदनशीलता और सृजन के प्रति अटूट विश्वास।
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और किस तरह गिटार ने बदल दी जीवन की दिशा राजस्थान के गीतकार और लोकगायक राहगीर (सुनील कुमार गुर्जर) ने बताया कि वे पेशे से इंजीनियर थे और एक सुरक्षित, सम्मानजनक नौकरी कर रहे थे। लेकिन उनका मन कविता और संगीत में रमता था। वर्ष 2015 में उन्होंने कविताएं लिखनी शुरू कीं। उन्होंने कहा कि एक दोस्त ने उन्हें गिटार भेजा और यही वह मोड़ था, जिसने उनके जीवन की दिशा बदल दी। जब उन्होंने नौकरी छोड़कर संगीत को अपनाने का फैसला किया, तो परिवार में कड़ा विरोध हुआ। उनसे कहा गया कि सुरक्षित भविष्य छोड़कर अनिश्चित राह पर जाना पागलपन है। राहगीर ने शांत लेकिन दृढ़ स्वर में जवाब दिया-“मेरा जीवन है, मुझे जीने दो।”
पांच वर्षों तक संघर्षों से भरा रहा जीवन 2016 से 2021 तक का दौर संघर्षों से भरा रहा। कई बार उन्हें लगा कि शायद फैसला गलत था। कोरोना काल में तो उन्होंने दोबारा नौकरी खोजने की भी कोशिश की। लेकिन किस्मत ने एक साधारण पल को असाधारण बना दिया। हिमाचल प्रदेश में बस का इंतजार करते हुए उन्होंने यूं ही गुनगुनाया- “बस आने में देर है…”। यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और यहीं से उनके संगीत को नई पहचान मिली।
लोगों का प्यार सबसे बड़ी कहानी राहगीर ने बताया कि उन्होंने कभी अपने गीतों के लिए तयशुदा मेहनताना नहीं मांगा। लोगों का प्यार और भावनात्मक जुड़ाव ही उनकी सबसे बड़ी कमाई है। आज उनका फोक म्यूजिक देशभर में सुना जाता है और वे शॉर्ट फिल्म लेखन पर भी काम कर रहे हैं। उनके अनुसार, इंटरनेट मीडिया ने उनके जीवन को नई दिशा दी।
पेंटिंग से बदली गांव की पहचान : पद्मश्री भज्जू श्याम
भोपाल से आए पद्मश्री सम्मानित गोंड कलाकार भज्जू श्याम पहली बार जमशेदपुर पहुंचे। उन्होंने कहा कि गोंड पेंटिंग केवल चित्रकला नहीं, बल्कि कहानियों की दृश्य भाषा है। पाटनगढ़ गांव से निकलकर उन्होंने अपनी कला के माध्यम से पूरी दुनिया को अपनी संस्कृति से परिचित कराया।
भज्जू श्याम ने बताया कि वे अब तक 16 किताबें लिख चुके हैं। लंदन यात्रा के दौरान मिले अनुभवों को भी उन्होंने अपनी पेंटिंग में उतारा। उनका मानना है कि अगर नई पीढ़ी अपनी जड़ों से जुड़कर सीखेगी, तभी पारंपरिक कलाएं जीवित रह पाएंगी।
सिस्टम, समाज और संघर्ष की कथा : डॉ. खड़से
साहित्य अकादमी सम्मानित लेखक डॉ. दामोदर खड़से ने कहा कि साहित्य का उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज को आईना दिखाना भी है। उन्होंने अपनी पहली पुस्तक ‘काला सूरज’ का जिक्र किया, जो पत्रकारों के जीवन पर आधारित है। इसमें दिखाया गया है कि कैसे आदर्शों से भरा युवा पत्रकार सिस्टम की जटिलताओं में टूटने लगता है।
उनका उपन्यास ‘भगदड़’ गांव से शहर आने वाले व्यक्ति के संघर्ष को दर्शाता है, जबकि हालिया कृति ‘बादल रात’ महिलाओं की प्रगति, संघर्ष और आत्मनिर्भरता की कहानी कहती है। डॉ. खड़से के अनुसार, साहित्य वही सार्थक है जो समाज की सच्चाइयों से संवाद करे। |