PU का शोध- Traffic का शोर सिर्फ कान नहीं, दिल और दिमाग पर भी डाल रहा असर, चिंता और अवसाद का खतरा बढ़ा

Chikheang 2025-11-1 22:37:10 views 739
  

लगातार ट्रैफिक शोर में काम करना न केवल सुनने की क्षमता को नुकसान पहुंचाता है



मोहित पांडेय, चंडीगढ़। ट्रैफिक का शोर सिर्फ कान नहीं, दिल और दिमाग पर भी असर डाल रहा है। शोर प्रदूषण से सिरदर्द, नींद की कमी, चिड़चिड़ापन, हाई ब्लड प्रेशर और तनाव जैसी समस्याएं सामने आई हैं। सबसे ज्यादा असर ट्रैफिक पुलिसकर्मियों पर पड़ रहा है। दिनभर सड़क पर गाड़ियों के शोर के बीच ड्यूटी निभाना चंडीगढ़ के ट्रैफिक पुलिसकर्मियों के लिए अब सेहत पर भारी पड़ रहा है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीआई) और पंजाब यूनिवर्सिटी (पीयू) के एक शोध में निकल कर सामने आई है। शोध में पाया गया कि 80 प्रतिशत ट्रैफिक पुलिसकर्मी हर दिन के शोर प्रदूषण के कारण तनाव और स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं।

इस अध्ययन में 100 ट्रैफिक पुलिसकर्मियों और 100 कार्यालय में काम करने वाले पुलिसकर्मियों की तुलना की गई, जिसमें सामने आया कि 56 प्रतिशत ट्रैफिक कर्मियों को कानों में लगातार बजने (टिनिटस) की समस्या है, जबकि दफ्तर में काम करने वालों में यह संख्या मात्र 29 प्रतिशत पाई गई।

यह शोध पीजीआई के प्रोफेसर रविंद्र खैवाल और पीयू की और डाॅ. सुमन मोर की ओर से किया गया है। शोधकर्ताओं ने बताया कि शोर प्रदूषण से ट्रैफिक पुलिस कर्मचारियों में सबसे अधिक सिरदर्द, नींद की कमी, चिड़चिड़ापन, हाई ब्लड प्रेशर और तनाव जैसी समस्याएं सामने आई हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि लगातार ट्रैफिक शोर में काम करना न केवल सुनने की क्षमता को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि हृदय रोग और मानसिक स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर डालता है।
400 से अधिक पुलिसकर्मियों पर किया गया शोध

शोधकर्ताओं ने बताया कि चंडीगढ़ पुलिस विभाग के करीब 422 ट्रैफिक पुलिसकर्मी विभिन्न चौक और थानों में तैनात हैं, जिनमें से 200 कर्मियों (100 ट्रैफिक और 100 कार्यालयीन) को अध्ययन के लिए चुना गया। प्रो. खैवाल ने बताया कि ट्रैफिक कर्मियों में पांच प्रमुख नाॅन-ऑडिटरी प्रभाव पाए गए, सिरदर्द, नींद की कमी, चिड़चिड़ापन, हाई ब्लड प्रेशर और तनाव।

इनमें तनाव सबसे अधिक सामान्य लक्षण पाया गया, जो 80 प्रतिशत ट्रैफिक कर्मियों में देखा गया, जबकि सामान्य पुलिसकर्मियों में यह दर 60 प्रतिशत रही। विशेषज्ञों के अनुसार, शोर प्रदूषण से शरीर और मन पर होने वाले प्रभाव केवल कान तक सीमित नहीं रहते। ये तथाकथित नॉन-ऑडिटरी प्रभाव व्यक्ति की कार्यक्षमता, नींद, ध्यान और मानसिक संतुलन को प्रभावित करते हैं।
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