भुवनेश्वर में प्रदूषण। फोटो जागरण
जागरण संवाददाता, भुवनेश्वर। ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर की हवा एक बार फिर जानलेवा होती जा रही है। शुक्रवार अपराह्न 2 बजकर 56 मिनट पर खंडगिरि क्षेत्र में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआइ) 366 दर्ज किया गया, जो ‘अत्यंत खराब’ श्रेणी में आता है। शहर के अन्य इलाकों में भी हालात कुछ ऐसे ही रहे। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
रीजनल प्लांट सेंटर क्षेत्र में एक्यूआइ 329, लिंगराज मंदिर के पास 348, मास्टर कैंटीन चौक पर 326 और रवींद्र मंडप चौक पर 321 दर्ज किया गया। यदि समय रहते सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो भुवनेश्वर की हालत भी दिल्ली जैसी होने से इनकार नहीं किया जा सकता।
स्थिति यह रही कि दोपहर होते-होते राजधानी के वातावरण में मानो जहर घुल गया। चारों ओर धुएं-धुएं का आलम दिखा और कोहरा न होने के बावजूद दृश्यता 500 मीटर से भी कम रह गई।
वायु गुणवत्ता के अत्यंत खराब स्तर पर पहुंचने के बाद लोगों को बाहरी गतिविधियों से दूर रहने की सलाह दी गई।शहर के विभिन्न चौकों पर लगे डिजिटल बोर्डों पर बार-बार चेतावनी संदेश प्रदर्शित किए जाने से आम लोग भी चिंतित नजर आए।
सरकार ने नहीं उठाया कोई ठोस कदम
गौरतलब है कि यह समस्या एक-दो दिन की नहीं है।बीते करीब दो सप्ताह से भुवनेश्वर में वायु प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है, लेकिन इसे नियंत्रित करने के लिए अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से न तो स्थिति की कोई गंभीर समीक्षा की गई और न ही स्थानीय प्रशासन सक्रिय नजर आया। नतीजतन, लोगों की सेहत लगातार खतरे में पड़ती जा रही है।
जानकारी के मुताबिक, हर साल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा नगर निगम के कार्यकारी अधिकारी, वन विभाग के सचिव, राज्य परिवहन विभाग के आयुक्त व अध्यक्ष, आवास एवं शहरी विकास विभाग के सचिव और संबंधित जिलाधिकारी को स्थिति से अवगत कराया जाता है, लेकिन व्यवहारिक स्तर पर इसका असर कहीं नजर नहीं आता। न तो वाहनों की आवाजाही पर कोई सख्ती है और न ही नियमों का उल्लंघन कर हो रहे निर्माण कार्यों पर प्रभावी कार्रवाई।
वन मंत्री स्वयं विधानसभा में यह स्वीकार कर चुके हैं कि वर्ष के 12 महीनों में से नवंबर से फरवरी तक चार महीने भुवनेश्वर में वायु गुणवत्ता मध्यम से खराब स्तर पर रहती है। बावजूद इसके, जब अब हालात ‘अत्यंत खराब’ स्तर तक पहुंच चुके हैं, तब भी सरकारी स्तर पर ठोस पहल नहीं होने से शहरवासियों में असंतोष बढ़ता जा रहा है।
फेफड़ों को नुकसान
विशेषज्ञों के अनुसार, पार्टिकुलेट मैटर पीएम-2.5 का स्तर गंभीर श्रेणी में पहुंच रहा है। ये सूक्ष्म कण सीधे फेफड़ों में जाकर रक्त प्रवाह को प्रभावित करते हैं और हृदय रोग, श्वसन संबंधी बीमारियों, टीबी, दमा और फेफड़ों की अन्य गंभीर समस्याओं का खतरा बढ़ाते हैं। अनियंत्रित निर्माण कार्य और वाहनों की बढ़ती संख्या प्रदूषण को और बढ़ावा दे रही है।
चिंताजनक बात यह है कि निर्माण स्थलों पर धूल नियंत्रण के उपाय नहीं किए जा रहे हैं। इसके चलते प्रदूषित कण हवा में घुलकर लोगों की सांसों के साथ शरीर में प्रवेश कर रहे हैं। इसके बावजूद सरकार और प्रशासन मूकदर्शक बने हुए हैं। यदि समय रहते सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो भुवनेश्वर की हालत भी दिल्ली जैसी होने से इनकार नहीं किया जा सकता। |