MP News: राजगढ़ में अनोखी परंपरा, रावण और कुंभकरण की होती है पूजा, सुख-समृद्धि की करते हैं कामना_deltin51

LHC0088 2025-10-2 04:06:37 views 1264
  राजगढ़ में अनोखी परंपरा रावण और कुंभकरण की होती है पूजा (फोटो सोर्स- जेएनएन)





डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। जहां एक और विजय दशमी के मौके पर पूरे देश में बुराई के प्रतीक के रूप में रावण के पुतले का दहन किया जाता है वहीं दूसरी और राजगढ़ में नेशनल हाइवे किनारे रावण व कुंभकरण की मूर्तियां की पूजन की जाती है।न सिर्फ पूजन की जाती है, बल्कि उनसे सुख-समृिद्ध की कामना भी की जाती है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

आगरा-मुंबई नेशनल हाइवे पर ब्यावरा-पचोर के बीच में भाटखेड़ी गांव के बाहर सड़क किनारे रावण व कुंभकरण की मूर्तियां बनी हुई है।एक खेत में वर्षों से यह स्थापित है।ऐसे में जहां सभी दूर रावण के पुतलों को जलाया जाता है वहीं दूसरी और यहां पर आज दोपहर में ग्रामीणों द्वारा इनकी पूजन-अर्चना की जाएगी।


निकाला जाता है जुलूस

गांव के मुखिया ग्रामीणों के साथ जुलूस के रूप में पूजन-सामग्री लेकर ढोल-नंगाडों के बीच यहां पर उल्लासपूर्ण माहौल में पहुंचेंगे।जहां न सिर्फ भाटखेड़ी बल्कि आसपास के गांवों के लोग भी एकित्रत होंगे।विधि-विधान के साथ उनकी पूजन-अर्चना की जाएगी।

ऐसी मान्यता है कि गांव व क्षेत्र की खुशहाली, सुख-समृद्धि व अच्छी पैदावर की कामना के लिए यहां पर पूजन की जाती है।ग्रामीणों का मानना है कि इनकी हर साल पूजन करने से पूरे क्षेत्र में सुख-शांति बनी रहती है।किसान व ग्रामीण परेशानियों से मुक्त रहते हैं।

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ग्रामीण रावण और कुंभकरण को राक्षस नहीं, बल्कि इष्ट देवता मानते हैं और सुख, शांति और समृद्धि के लिए उनकी पूजा करते हैं।ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त रावण की प्रतिमा के आगे सिर झुकाकर मनोकामना मांगता है, उसकी मनोकामना पूरी होती
ट्रक चालक भी करते हैं पूजन, मानते हैं मन्नत

ग्रामीणों के अलावा हाइवे से ट्रक लेकर निकलने वाले ट्रक चालक भी यहां रूककर पूजन-अर्चना करते हैं व प्रसाद चढाते हैं।ट्रक चालक विजय दशमी के अलावा भी यहां से निकने के दौरान रूककर प्रसाद चढाते हैं व खुशहाली की कामना करते हैं।उनसे प्रार्थना करते हैं कि हमारी यात्रा सफल रहे।बिना किसी बाधा-परेशानी के निर्धारित गंतव्य तक पहुंच सके।


150 साल पुरानी मूर्तियां स्थापित, पूजन जारी

स्थानीयजनों की मानें तो यह परंपरा गांव के पूर्वजों से चली आ रही है और पीढ़ी दर पीढ़ी निभाई जा रही है।पिछले करीब 150 साल से यह मूर्तियां इस स्थान पर स्थापित है।और तब ही से पूजन-अर्चना जारी है।पहले बुजुर्ग लोग उनकी पूजन करते थे और अब नई पीढ़ी उस परंपरा को आगे बढ़ा रही है।धूप व वर्षा के चलते मूर्तियों का रंग-रोगन खराब होने की स्थति में इसी गांव के लोगों द्वारा उनको ठीक करवाया जाता है, ताकि मूर्तियां वास्तविक स्वरूप में नजर आ सके।



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