क्यों जरूरी है मौसम और प्रकृति के अनुसार दिनचर्या? (Picture Courtesy: Freepik)
ब्रह्मानंद मिश्र, नई दिल्ली। निष्क्रिय जीवनशैली के चलते होने वाली बीमारियों को लेकर आधुनिक और पारंपरिक चिकित्सा पद्धति में सैद्धांतिक समझ अलग-अलग है। आप किसी से पूछें कि डायबिटीज क्यों और कैसे हो जाती है, तो इसका एक जवाब नहीं होगा। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
दरअसल, किसी को तनाव के कारण हो रहा है, किसी को शारीरिक निष्क्रियता से, तो कोई खराब खानपान के कारण इसका शिकार हो रहा है। यहां तक कि सब कुछ सही होने के बावजूद डायबिटीज क्यों होता है, पता नहीं चलता।
संपूर्ण सेहत की बात क्यों नहीं
आयुष चिकित्सा या यूनानी का सिद्धांत संपूर्ण सेहत की बात करता है। व्यक्ति का मिजाज यानी प्रकृति ही व्यक्ति को संतुलित और सेहतमंद रखने के लिए जिम्मेदार होती है। संतुलन बिगड़ता है तो बीमारी होती है। इससे बचाव के लिए एक ही उपाय है- संतुलित जीवनशैली उम्र, मौसम और जेंडर के हिसाब से खानपान, व्यायाम और दिनचर्या के महत्व को समझना चाहिए। शरीर में पर्याप्त पानी होना चाहिए।
सक्रियता जरूरी है, क्योंकि शिथिलता अनेक बीमारियों को जन्म देती है। पारंपरिक चिकित्सा आराम और मानसिक सेहत को भी महत्वपूर्ण मानती है। पर्याप्त नींद आवश्यक है, क्योंकि यह प्रभावित हुई तो कई लाइलाज़ बीमारियां हो सकती हैं। ये सभी चीजें नई और अलग नहीं हैं। ये हमारी दिनचर्या का ही हिस्सा हैं।
मौसम के अनुरूप दिनचर्या
किस मौसम में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं, यह समझना जरूरी है। सर्दियों में शरीर ठंडा होता है और आप अलग से ठंडी चीजों का सेवन करेंगे तो वह हमें बीमार ही बनाएगी। इस मौसम में रक्त से जुड़ी बीमारियां अधिक होने की आशंका रहती है। देश में स्वास्थ्य सेवाओं की एक सीमा है, हर किसी को उपचार उपलब्ध कराना आसान नहीं है।
इसलिए बेहतर यही होगा कि हम बीमार होने से बचें। लोग सेहत को लेकर जागरूक बनें। हार्मोस संतुलन को समझें आज मेटाबोलिक डिसआर्डर की समस्या तेजी से बढ़ रही है। जैसे- हाइपोथायराडिज्म को लें, तो यह शरीर ठंडा हो जाने के कारण होती है। अगर आप शारीरिक तौर पर सक्रिय रहेंगे तो हाइपोथायराडिज्म जैसी अनेक समस्याओं से बचे रहेंगे। शरीर में हार्मोन से संतुलन और उत्सर्जन के लिए एक खास तापमान और शरीर को एक्टिव रखने की जरूरत होती है।
जब हम उस स्थिति में नहीं होते, तो हार्मोन संतुलन बिगड़ता है और बीमारी की आशंका बढ़ती है। इसका माडर्न मेडिसिन में यही उपाय है कि आप दवा के रूप में हार्मोन लेते रहें। वहीं आयुष पद्धति सही जीवनशैली के प्रेरित करती है, ताकि हार्मोन लेने की जरूरत ही न पड़े। कोई भी दवा जीवनशैली में बदलाव के बिना काम नहीं करती।
डायबिटीज के मरीज को एक-दो साल में दवा की डोज बढ़ानी होती है या मेडिसिन बदल दी जाती है। अभी इंसुलिन पांच यूनिट ले रहे हैं, तो कुछ साल बाद वह 10 यूनिट हो जाएगी। अगर जीवनशैली में बदलाव करें, तो इसकी जरूरत से बचे रहेंगे। यूनानी चिकित्सा आपको ऐसी परेशानियों से बचाती है।
महत्वपूर्ण बातें
शरीर में ऊष्मा बढ़ाएं
पहले हम पैदल चलते थे, फिर साइकिल और बाइक आ गई तो चलना बंद हो गया। घरों में एप्लायंसेज आ गए, तो हाथों से काम करना। यानी सक्रियता से जो शरीर में गर्मी उत्पन्न होनी चाहिए, वह अब नहीं हो रही है। इससे डायबिटीज, हाइपरथायराडिज्म जैसी परेशानियां बढ़ रही हैं।
उतना खाएं, जितना पचा पाएं
फल, सब्जियां, घरों में पिसे अनाज खाने का चलन कम हो गया। आज मैदे की रोटी, जंक फूड ले रहे हैं। काम कम और कैलोरी अधिक ले रहे हैं। आहार को उम्र के अनुरूप लें, शारीरिक गतिविधि करें। बुजुर्ग हैं तो योग कीजिए, प्रौढ़ हैं तो तेज चलिए, युवा है तो दौड़िए । खेलने के लिए बच्चों को बाहर भेजिए और उन्हें सेहत वाले आहार दीजिए।
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