बच्चों को मेंटली कमजोर बना रही है जरूरत से ज्यादा सख्ती (Picture Courtesy: Freepik)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। एक हालिया स्टडी में सामने आया है कि जरूरत से ज्यादा सख्त परवरिश, जिसे ‘टाइगर पेरेंटिंग’ (Tiger Parenting) कहा जाता है, बच्चों की मानसिक सेहत पर बुरा असर डाल सकती है। इस तरह की परवरिश में बच्चों से बिना सवाल किए ऑर्डर फॉलो करने की उम्मीद की जाती है, गलती पर सजा दी जाती है और उनकी भावनाओं को ज्यादा महत्व नहीं मिलता। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
नेपाल की त्रिभुवन यूनिवर्सिटी की नई रिसर्च बताती है कि ऐसे माहौल में पलने वाले बच्चों में डिप्रेशन, एंग्जायटी और तनाव का खतरा काफी बढ़ जाता है। जी हां, ऐसी सख्त पेरेंटिंग बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर काफी असर डालती है।
क्या कहती है स्टडी?
टाइगर पेरेंटिंग का मतलब है बहुत सख्त डिसिप्लिन, हाई एक्सपेक्टेशन और ‘जो कहा जाए वही करो’ वाला रवैया। आमतौर पर ऐसे माता-पिता बच्चों के अच्छे भविष्य के लिए दबाव बनाते हैं, लेकिन यह दबाव धीरे-धीरे बच्चों के मन पर भारी पड़ने लगता है। स्टडी के मुताबिक, यह परवरिश बच्चों को भावनात्मक रूप से कमजोर बना सकती है, क्योंकि उन्हें अपनी बात कहने या गलती से सीखने का मौका कम मिलता है।
इस स्टडी में 10 से 18 साल के 583 स्कूली बच्चों से बातचीत की गई। बच्चों से उनके माता-पिता के व्यवहार और अपनी मानसिक स्थिति के बारे में सवाल पूछे गए। स्टडी की प्रमुख लेखिका डॉ. अंजली भट्ट के अनुसार, जिन बच्चों ने अपने माता-पिता को ‘ऑथोरिटेरियन’ यानी बहुत सख्त बताया, उनमें डिप्रेशन, एंग्जायटी और तनाव के लक्षण ज्यादा देखे गए। वहीं, जिन बच्चों के माता-पिता कॉर्पोरेटिव थे, उनसे बात करते थे और समझदारी से नियम बनाते थे, उनमें मानसिक समस्याएं कम पाई गईं।
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बच्चे खुद को अकेला महसूस करने लगते हैं
स्टडी में यह भी सामने आया कि सख्त माता-पिता के बच्चों में आत्मसम्मान थोड़ा ज्यादा हो सकता है, लेकिन यह फायदा उनके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले नकारात्मक असर के सामने छोटा साबित होता है। लगातार दबाव और डर के माहौल में रहने से बच्चे खुद को अकेला और असहाय महसूस करने लगते हैं, जिससे उनकी भावनात्मक सेहत बिगड़ सकती है।
स्कूल में बुलीइंग भी बिगाड़ सकती है मेंटल हेल्थ
रिसर्च में एक और अहम बात सामने आई। स्कूल में बुलीइंग यानी डराना-धमकाना बच्चों की मानसिक सेहत पर बहुत गहरा असर डालता है। जिन बच्चों ने बुली होने की बात कही, उनमें डिप्रेशन और एंग्जायटी की संभावना दो से ढाई गुना ज्यादा थी। इससे साफ है कि बच्चों का सामाजिक माहौल, खासकर स्कूल का अनुभव, भी उनकी मानसिक स्थिति को प्रभावित करता है।
डीएनए पर भी दिखता है असर
इतना ही नहीं, कुछ रिसर्च यह भी बताते हैं कि सख्त पैरेंटिंग का असर बच्चों के डीएनए स्तर तक दिख सकता है। ब्रिटेन की एक स्टडी में पाया गया कि बहुत सख्त परवरिश से बच्चों के जीन में ऐसे बदलाव हो सकते हैं, जो तनाव से निपटने की क्षमता को कम कर देते हैं। यह पैटर्न डिप्रेशन से जूझ रहे वयस्कों में भी देखा गया है।
नियमों के साथ समझ भी जरूरी
विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों के लिए नियम जरूरी हैं, लेकिन नियमों के साथ संवाद और समझ भी उतनी ही जरूरी है। जब माता-पिता बच्चों को नियमों का कारण बताते हैं, उनकी बात सुनते हैं और कॉर्पोरेटिव व्यवहार अपनाते हैं, तो बच्चों का आत्मविश्वास और मानसिक स्वास्थ्य दोनों बेहतर रहते हैं। साफ है कि सख्ती और प्यार के बीच संतुलन ही बच्चों की खुशहाल और हेल्दी पेरेंटिंग की चाबी है।
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