LHC0088 • 2025-11-11 01:37:12 • views 1181
सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस \“\“बढ़ती और परेशान करने वाली प्रवृत्ति\“\“ पर असंतोष व्यक्त किया, जिसमें वादी और वकील अपने पक्ष में अदालती फैसला न आने की स्थिति में जजों के खिलाफ अपमानजनक और घिनौने आरोप लगाते हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
कोर्ट ने एक मामले में अवमानना की कार्यवाही को रद करते हुए कहा कि \“\“कानून की गरिमा किसी को दंडित करने में नहीं, बल्कि अपनी गलती स्वीकार करने वाले को क्षमा करने में निहित है।\“\“
पीठ ने लिया मामले को खत्म करने का फैसला
चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने वादी एन. पेड्डी राजू और दो वकीलों के खिलाफ अवमानना कार्यवाही को रद करते हुए यह टिप्पणी की। वकीलों को चेतावनी दी गई कि इस तरह का आचरण न्यायिक प्रणाली की अखंडता को कमजोर करता है और इसकी \“\“कड़ी निंदा\“\“ की जानी चाहिए। पीठ ने मामले को समाप्त करने का निर्णय लिया क्योंकि तेलंगाना हाईकोर्ट के जज ने दोषी वादी और वकीलों द्वारा मांगी गई क्षमा याचना स्वीकार कर ली।
चीफ जस्टिस ने इस बात पर जताई चिंता
चीफ जस्टिस गवई ने अपने आदेश में इस बात पर चिंता जताते हुए कहा, \“\“हाल के दिनों में हमने देखा है कि जब जज अनुकूल आदेश पारित नहीं करते हैं, तो उनके खिलाफ अपमानजनक और निंदनीय आरोप लगाने का चलन बढ़ रहा है। इस तरह की प्रथा की कड़ी निंदा की जानी चाहिए।\“\“
पीठ ने कहा कि कोर्ट के अधिकारी होने के नाते वकीलों का कर्तव्य है कि वे न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता बनाए रखें। उन्हें इस कोर्ट या किसी भी हाईकोर्ट के जजों के खिलाफ अपमानजनक और निंदनीय आरोपों वाली याचिकाओं पर अपने हस्ताक्षर करने से पहले सावधानी बरतनी चाहिए।
\“\“कानून की गरिमा किसी को दंडित करने में नहीं, बल्कि अपनी गलती स्वीकार करने वाले को क्षमा करने में निहित है।\“\“ चूंकि हाईकोर्ट के जज, जिनके खिलाफ आरोप लगाए गए थे, ने माफी स्वीकार कर ली है, अतएव इस पृष्ठभूमि में वह आगे कोई कार्यवाही नहीं करेगी।
क्या है मामला?
गौरतलब है कि अवमानना का मामला तब शुरू किया गया जब सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि एन. पेड्डी राजू और उनके वकीलों ने एक मामले को दूसरे हाईकोर्ट में स्थानांतरित करने की मांग करते हुए तेलंगाना हाईकोर्ट की जज जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य के खिलाफ निराधार और अपमानजनक आरोप लगाए थे।
यह मामला राजू द्वारा दायर एक स्थानांतरण याचिका से संबंधित है, जिसमें तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी के खिलाफ एससी/एसटी अधिनियम के तहत एक आपराधिक मामले को खारिज करने वाले हाईकोर्ट की जज के खिलाफ पक्षपात और अनुचित व्यवहार का आरोप लगाया गया था।
पीठ ने कहा कि इस तरह की टिप्पणियों से न केवल न्यायपालिका में जनता का विश्वास कम होता है, बल्कि अदालतों की गरिमा भी धूमिल होती है। इस प्रथा की कड़ी निंदा की जानी चाहिए।
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