\“स्ट्रोक एवं एआई-2025\“ सम्मेलन में डाॅ. बिप्लब दास (मध्य में), साथ में डाॅ. पी विजया व डाॅ. धीरज खुराना। सौ. आयोजक
जागरण संवाददाता, दक्षिणी दिल्ली। दिल की बीमारी की तरह अब Stroke भी तेजी से लोगों को अपनी चपेट में ले रहा है, लेकिन इस बीमारी को लेकर जागरूकता की भारी कमी लोगों को जिंदगीभर की दिव्यांगता के साथ जीने को मजबूर कर रही है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
पहले बुजुर्गों तक सीमित मानी जाने वाली यह बीमारी अब युवाओं में भी खतरनाक गति से फैल रही है। भारतीय परिदृश्य में उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, हर तीन में एक व्यक्ति स्ट्रोक के जोखिम में है।
स्ट्रोक के इलाज में अब Artificial Intelligence (AI) उम्मीद की नई किरण बनकर उभरा है। एआइ की मदद से न केवल स्ट्रोक का तेजी से और सटीक डायग्नोस किया जा सकता है, बल्कि इसके वर्गीकरण और सही उपचार पद्धति तय करने में भी मदद मिल रही है।
आधुनिक उपचार तकनीकों के साथ एआइ को जोड़ने पर स्ट्रोक के मरीजों को लगभग पूरी तरह स्वस्थ किया जा सकता है। यह जानकारी इंडिया हैबिटेट सेंटर में शनिवार से शुरू हुए ‘स्ट्रोक एवं एआइ-2025’ सम्मेलन में न्यूरोलॉजिस्ट व आयोजन सचिव डॉ. बिप्लब दास ने दी।
उन्होंने कहा कि एआइ में वह क्षमता है जो स्ट्रोक की पहचान, वर्गीकरण और इलाज की पूरी प्रक्रिया को बदल सकती है, खासकर तब जब इसे आधुनिक न्यूरो-इंटरवेंशन तकनीकों से जोड़ा जाए। डाॅ. दास के अनुसार, सम्मेलन का उद्देश्य ऐसे सहयोग विकसित करना है, जिससे एआइ आधारित इनोवेशन रोजमर्रा की क्लिनिकल प्रैक्टिस का हिस्सा बन सकें।
प्रिडिक्टिव एल्गोरिद्म, ऑटोमेटेड इमेज इंटरप्रिटेशन, वर्कफ्लो ऑप्टिमाइजेशन और पर्सनलाइज्ड रिहैबिलिटेशन जैसे AI Tools इलाज की गति बढ़ाने के साथ-साथ डायग्नोसिस को अधिक सटीक बना सकते हैं। इससे स्ट्रोक से होने वाली मौत और दिव्यांगता में उल्लेखनीय कमी लाई जा सकती है।
इस मौके पर इंडियन स्ट्रोक एसोसिएशन की अध्यक्ष डाॅ. पी. विजया ने कहा कि यदि भारत अभी से स्ट्रक्चर्ड ट्रेनिंग, डिजिटल नेटवर्क और तेज रिस्पांस सिस्टम में निवेश करता है, तो देश एआई आधारित स्ट्रोक प्रबंधन में वैश्विक लीडर बन सकता है।
यह भी पढ़ें- दिल्ली में बंद पड़ीं 250 मोहल्ला क्लीनिकों का भी होगा इस्तेमाल, बेघरों के लिए योजना बना रही रेखा सरकार |