सूअर के अंग से बचेगी जान। (जागरण)
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर। देश में हर साल करीब दो लाख मरीजों को किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ती है, लेकिन सिर्फ 15 हजार मरीजों को ही किडनी मिल पाती है। शेष एक लाख 85 हजार मरीज अंग न मिलने के कारण जीवन और मौत के बीच संघर्ष करते रहते हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
यह जानकारी शनिवार को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) द्वारा आयोजित सम्मेलन से पूर्व पत्रकारों से बातचीत में फोर्टिस हॉस्पिटल, कोलकाता के अतिरिक्त निदेशक, नेफ्रोलॉजी एवं किडनी ट्रांसप्लांट फिजिशियन डॉ. रितेश काउंटिया ने दी।
उन्होंने कहा कि अनियंत्रित मधुमेह और उच्च रक्तचाप किडनी खराब होने के सबसे बड़े कारण हैं। यदि समय रहते इन पर नियंत्रण न किया जाए तो इसका सीधा असर किडनी पर पड़ता है और धीरे-धीरे मरीज को डायलिसिस या ट्रांसप्लांट की आवश्यकता पड़ जाती है।
उन्होंने बताया कि हर 10 में से एक व्यक्ति किडनी रोग से पीड़ित है। वहीं, 33 प्रतिशत मधुमेह और 20 प्रतिशत हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों में किडनी खराब होने का खतरा अधिक रहता है। सम्मेलन में आईएमए अध्यक्ष डॉ. जीसी माझी, सचिव डॉ. सौरभ चौधरी सहित अन्य चिकित्सक उपस्थित थे।
समय पर पहचान से बच सकती है किडनी
डॉ. काउंटिया ने कहा कि अगर बीमारी की पहचान शुरुआती चरण में हो जाए तो फोर्थ पिलर ट्रीटमेंट के माध्यम से किडनी को खराब होने से काफी हद तक बचाया जा सकता है। हालांकि, किडनी ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया अब पहले की तुलना में आसान हुई है, लेकिन अंगों की भारी कमी अब भी सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है।
उन्होंने यह भी चेताया कि बिना चिकित्सकीय सलाह के पेन किलर और एंटीबायोटिक का सेवन भी किडनी को गंभीर नुकसान पहुंचा रहा है। इस तरह के रोगी भी लगातार सामने आ रहे हैं।
सूअर के अंग से इंसान को जीवन देने की तैयारी
अंगों की कमी की समस्या को देखते हुए अमेरिका (यूएस) में सूअर के अंगों को इंसान के शरीर में प्रत्यारोपित करने पर शोध चल रहा है।
डॉ. काउंटिया के अनुसार, सूअर की किडनी, दिल और फेफड़े सहित अन्य अंगों को मानव शरीर के अनुकूल बनाने में कुछ मामलों में सफलता भी मिली है। यदि यह शोध पूरी तरह सफल होता है, तो भविष्य में अंगों की कमी की समस्या काफी हद तक खत्म हो सकती है और हजारों लोगों की जान बचाई जा सकेगी।
2040 तक कैंसर बनेगा मौत का सबसे बड़ा कारण
इस मौके पर फोर्टिस हॉस्पिटल, कोलकाता के मेडिकल आंकोलाजिस्ट डॉ. देबप्रिय मंडल ने कहा कि वर्ष 2040 तक देश में सबसे अधिक मौतें कैंसर के कारण होंगी। उन्होंने लोगों से अपील की कि 30 वर्ष की उम्र के बाद नियमित कैंसर जांच जरूर कराएं।
यदि कैंसर की पहचान शुरुआती चरण में हो जाए तो 90 से 95 प्रतिशत मरीज पूरी तरह ठीक हो सकते हैं, जबकि समय रहते पहचान होने पर शत-प्रतिशत इलाज भी संभव है। जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती जाती है, इलाज की सफलता दर घटती जाती है और मरीज की तकलीफें बढ़ती हैं।
उन्होंने कहा कि बीते पांच वर्षों में कैंसर इलाज में क्रांतिकारी बदलाव आया है और अब इलाज के कई नए विकल्प उपलब्ध हैं।
पुरुषों में हेड-नेक, महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर अधिक
डॉ. देबप्रिय मंडल के अनुसार, पुरुषों में हेड एंड नेक कैंसर, जबकि महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के मामले अधिक सामने आ रहे हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि आस्ट्रेलिया में यूट्रस कैंसर पर वैक्सीन और जांच के जरिए काफी हद तक नियंत्रण पा लिया गया है, जो भारत के लिए भी प्रेरणादायक है। |