चंडीगढ़ पीजीआई ने किया शोध, सिर्फ सात दिन की दवा नवजात को संक्रमण से दिलाएगी मुक्ति

deltin33 2025-10-17 17:38:00 views 1194
  

अस्पताल में बच्चों को भर्ती कराने की अवधि घटी और इलाज का खर्च भी कम पड़ा।



मोहित पांडे, चंडीगढ़। पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीआई) के डाॅक्टरों ने एक बड़ा शोध किया है, जिससे नवजात शिशुओं के इलाज का तरीका बदल सकता है। इस शोध के अनुसार, सिर्फ सात दिन तक दी जाने वाली एंटीबायोटिक दवा नवजात के गंभीर रक्त संक्रमण में भी लंबे कोर्स जितनी ही प्रभावी हैं। यह अध्ययन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल ‘लैंसेट क्लिनिकल मेडिसिन’ में प्रकाशित हुआ है। इसका नेतृत्व पीजीआई नवजात गहन चिकित्सा इकाई के डाॅ. सौरभ दत्ता ने किया है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

शोध के मुताबिक, पहले जहां नवजात संक्रमणों के लिए 10 से 14 दिन तक एंटीबायोटिक दी जाती थी, वहीं अब सात दिन का कोर्स भी पर्याप्त पाया गया है। अध्ययन में यह भी देखा गया कि जब बच्चे की रक्त जांच (बायोमार्कर) सामान्य हो जाती है, तब दवा रोकना पूरी तरह सुरक्षित और प्रभावी तरीका है। इस पद्धति से बच्चों पर दवा का असर और साइड इफेक्ट्स कम हुए, अस्पताल में भर्ती अवधि घटी और इलाज का खर्च भी कम पड़ा।

मुख्य शोधकर्ता डाॅ. सौरभ दत्ता ने बताया कि हमारे नतीजे बताते हैं कि कई नवजात संक्रमणों में छोटी अवधि की एंटीबायोटिक थेरेपी ही पर्याप्त है। इससे बच्चों को अनावश्यक दवा देने से बचाया जा सकता है और एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस जैसी बड़ी समस्या को भी नियंत्रित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि यह शोध भारत जैसे देशों में, जहां नवजात संक्रमण और दवाओं का दुरुपयोग दोनों ही बड़ी चुनौतियां हैं, एक नई दिशा दिखाता है।
देश-विदेश में हुए अध्ययनों का सिस्टमेटिक रिव्यू और मेटा-विश्लेषण पर आधारित है शोध

पीजीआई की टीम ने देश-विदेश में हुए कई अध्ययनों का सिस्टमेटिक रिव्यू और मेटा-विश्लेषण किया। इन अध्ययनों के आंकड़ों को एक साथ जोड़कर यह परखा गया कि कम और लंबी अवधि की एंटीबायोटिक थेरेपी में क्या अंतर है। शोध में नवीन सांख्यिकीय तकनीकों और बायोमार्कर आधारित मूल्यांकन पद्धतियों का उपयोग किया गया, जिससे परिणाम अधिक विश्वसनीय बने।
देश के मायने महत्वपूर्ण

भारत में हर साल हजारों नवजात बच्चे संक्रमण का शिकार होते हैं और उनमें से अधिकतर को लंबी अवधि तक एंटीबायोटिक दी जाती है। यह न सिर्फ बच्चों के शरीर पर असर डालती है, बल्कि एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस जैसी गंभीर समस्या को भी बढ़ाती है। यह शोध बताता है कि अगर अस्पतालों में कम अवधि की एंटीबायोटिक नीति अपनाई जाए।
शोध में सामने आए पहलु

- दवाओं का अनावश्यक उपयोग घटेगा,
- अस्पताल-जनित संक्रमणों में कमी आएगी
- और इलाज का खर्च कम होगा।
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