जब नंदा देवी पर खोई US की न्यूक्लियर डिवाइस, 60 साल पुरानी कहानी जान दंग रह जाएंगे

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न्यूयॉर्क टाइम्स की हाल की एक रिपोर्ट में कोल्ड बॉर के दौर के एक बेहद सीक्रेट ऑपरेशन का खुलासा फिर से हुआ है। अमेरिका ने 1960 के दशक में भारत के साथ मिलकर चीन के परमाणु परीक्षणों और मिसाइल फायरिंग की जासूसी करने के लिए हिमालय में न्यूक्लियर-पावर्ड मॉनिटरिंग डिवाइस लगाए थे। भारत की सबसे ऊंची हिमालयी चोटियों में से एक नंदा देवी पर लगाया गया ये न्यूक्लियर-पावर्ड मॉनिटरिंग डिवाइस अचानक गायब हो गया था। 50 से भी ज़्यादा साल बीत जाने और नंदा देवी पर कई तलाशी अभियानों के बाद आज तक कोई नहीं जानता कि उन कैप्सूल के साथ क्या हुआ।





दरअसल, 1964 में चीन ने अपना पहला न्यूक्लियर टेस्ट किया था। चीन के हाथ परमाणु शक्ति देख अमेरिका अलर्ट हो गया। इसके बाद अमेरिका ने भारत के साथ मिलकर एक सीक्रेट मिशन की योजना बनाई। 1962 के युद्ध और चीन से देश की सुरक्षा को देखते हुए भारत भी अमेरिका का साथ देने को राजी हो गया।  





चीन के परमाणु परीक्षण के बाद शुरू हुआ सीक्रेट मिशन





1964 में चीन ने शिनजियांग में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया। इससे अमेरिका और भारत दोनों की चिंता बढ़ गई। चीन के अंदर खुफिया जानकारी जुटाने में दिक्कत होने के कारण CIA ने एक अलग तरह की योजना बनाई। इसका मकसद हिमालय की ऊंची चोटियों पर एक निगरानी स्टेशन लगाकर चीन की मिसाइल गतिविधियों पर नजर रखना था। इसके लिए नंदा देवी को चुना गया, जो भारत की चीन सीमा के पास स्थित 25,645 फीट ऊंची चोटी है। इस मिशन में एक खास उपकरण लगाया जाना था, जिसमें प्लूटोनियम से चलने वाला पोर्टेबल परमाणु जनरेटर शामिल था। इसमें इतना प्लूटोनियम था, जो नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बम में इस्तेमाल हुए प्लूटोनियम का लगभग एक तिहाई था। यह उपकरण कई सालों तक बिना देखरेख के काम करने के लिए बनाया गया था।





इस मिशन को एक वैज्ञानिक अभियान का रूप दिया गया। इसमें अमेरिकी पर्वतारोहियों के साथ भारतीय खुफिया एजेंसियों से जुड़े पर्वतारोहियों को भी शामिल किया गया, ताकि किसी को असली मकसद पर शक न हो।




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‘अगर असंभव नहीं, तो बेहद मुश्किल’





इस मिशन के शुरू होने से पहले ही भारतीय सेना के कप्तान और जाने-माने पर्वतारोही एम.एस. कोहली ने इसे लेकर गंभीर चिंता जताई थी। न्यूयॉर्क टाइम्स को दिए गए इंटरव्यू में कोहली ने याद करते हुए कहा, “मैंने साफ कहा था कि यह काम अगर पूरी तरह असंभव नहीं है, तो बेहद मुश्किल जरूर है।” इन चेतावनियों के बावजूद मिशन सितंबर 1965 में शुरू कर दिया गया। उस समय सर्दियों के तूफान आने वाले थे, इसलिए टीम को समय के खिलाफ दौड़ लगानी पड़ी।





बर्फीले तूफान के कारण मिशन छोड़ना पड़ा





16 अक्टूबर 1965 को जब टीम दक्षिण-पश्चिमी रास्ते से शिखर की ओर बढ़ रही थी, तभी वे अचानक एक भयानक बर्फीले तूफान में फंस गए। पहाड़ पर मौजूद भारतीय खुफिया अधिकारी सोनम वांग्याल ने बाद में याद करते हुए कहा, “हम 99 प्रतिशत मर चुके थे। हमारे पास न खाना था, न पानी और हम पूरी तरह थक चुके थे।” तूफान इतना तेज था कि कुछ भी साफ दिखाई नहीं दे रहा था। बेस कैंप से एम.एस. कोहली ने हालात को देखते हुए पर्वतारोहियों को तुरंत पीछे लौटने का आदेश दिया, ताकि उनकी जान बच सके। उन्होंने कहा कि उपकरण को वहीं सुरक्षित छोड़ दिया जाए और नीचे न लाया जाए। इसके बाद पर्वतारोहियों ने उस परमाणु जनरेटर को एक बर्फ की चट्टान से बांध दिया और नीचे उतर आए। इसके बाद वह परमाणु उपकरण कभी दोबारा नहीं मिला।





डिवाइस रहस्यमय तरीके से गायब हो गया





1966 में जब टीम दोबारा उस उपकरण को ढूंढने के लिए वापस गई, तो जहां परमाणु जनरेटर को रखा गया था, वहां की पूरी बर्फ की परत गायब थी। माना गया कि यह हिस्सा किसी हिमस्खलन में बह गया होगा। रेडिएशन डिटेक्टर, इंफ्रारेड सेंसर और मेटल स्कैनर की मदद से कई बार खोज की गई, लेकिन उपकरण का कोई पता नहीं चल सका। बाद में अमेरिकी पर्वतारोही जिम मैककार्थी ने कहा कि प्लूटोनियम से चलने वाले उस डिवाइस से निकलने वाली गर्मी ने आसपास की बर्फ को पिघला दिया होगा। इसकी वजह से वह धीरे-धीरे ग्लेशियर के अंदर और गहराई में चला गया होगा। उन्होंने कहा, “वह चीज़ बहुत ज्यादा गर्म थी।”





रेडिएशन, सेहत का खतरा और ‘डर्टी बम’ की चिंता





इस परमाणु उपकरण के गायब होने से भारत में लंबे समय से चिंता बनी हुई है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर नंदा देवी के ग्लेशियर से निकलने वाला पानी गंगा नदी में मिला भी, तो प्रदूषण पानी की बड़ी मात्रा में घुल जाएगा। फिर भी पहाड़ों के पास बहने वाली नदियों और धाराओं के आसपास रहने वाले लोगों के लिए डर पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। प्लूटोनियम बहुत जहरीला होता है। अगर यह सांस के जरिए शरीर में चला जाए या गलती से खा लिया जाए, तो इससे कैंसर जैसी गंभीर बीमारी हो सकती है। अमेरिकी पर्वतारोही जिम मैककार्थी को बाद में टेस्टिकुलर कैंसर हो गया था। उनका मानना था कि यह बीमारी मिशन के दौरान रेडिएशन के संपर्क में आने की वजह से हुई। उन्होंने कहा था कि उनके परिवार में पहले कभी कैंसर का कोई मामला नहीं रहा।





एक और बड़ी चिंता यह भी है कि अगर यह प्लूटोनियम गलत लोगों के हाथ लग गया, तो इसका इस्तेमाल “डर्टी बम” बनाने में किया जा सकता है। डर्टी बम ऐसा हथियार होता है, जिसका मकसद बड़ा धमाका करना नहीं, बल्कि रेडियोएक्टिव पदार्थ फैलाकर इलाके को दूषित करना होता है।





लैंडस्लाइड, जलवायु परिवर्तन और बाकी रह गए सवाल





2021 में नंदा देवी के पास हुए एक भीषण भूस्खलन में 200 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी। इसके बाद फिर से यह चर्चा शुरू हो गई कि कहीं लापता परमाणु जनरेटर से निकलने वाली गर्मी का इसमें कोई रोल तो नहीं था। हालांकि वैज्ञानिक इस तरह की घटनाओं के लिए जलवायु परिवर्तन को एक बड़ा कारण मानते हैं, लेकिन स्थानीय लोगों और कुछ पूर्व अधिकारियों के मन में अभी भी शक बना हुआ है। उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि इस डिवाइस को एक बार और हमेशा के लिए बाहर निकाला जाना चाहिए, ताकि लोगों का डर खत्म हो सके। वहीं सांसद निशिकांत दुबे ने इस मामले में सीधे अमेरिका की जिम्मेदारी बताते हुए कहा कि जिस देश का यह उपकरण है, उसे ही आगे आकर इसे निकालना चाहिए।
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