उत्तराखंड, हिमाचल, और जम्मू-कश्मीर की पहाड़ियां बर्फबारी को तरस गईं
अशोक केडियाल, देहरादून । दिसंबर का दूसरा पखवाड़ा बीतने को है, लेकिन उत्तराखंड सहित हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर की पहाड़ियां अब तक बर्फबारी को तरस रही हैं। आमतौर पर इस अवधि में ऊंचाई वाले इलाकों में बर्फ की सफेद चादर बिछ जाती है, लेकिन इस बार मौसम का मिजाज पूरी तरह बदला हुआ नजर आ रहा है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
वेस्टर्न डिस्टर्बेंस (पश्चिमी विक्षोभ) के कमजोर और निष्क्रिय रहने से न तो वर्षा हो रही है और न ही बर्फबारी हुई। इस बार एक नवंबर से 15 दिसंबर तक कुल 45 दिनों में वर्षा और बर्फबारी नहीं हुई, जबकि इससे पहले वर्ष 2009 में मानसून की वर्षा के बाद 30 दिसंबर को पहला हिमपात हुआ था।
इस बार मैदानी क्षेत्रों में भी सर्दी का असर कम दिख रहा है। दिल्ली, चंडीगढ़, जम्मू और देहरादून जैसे उत्तर भारत के प्रमुख शहरों में अधिकतम तापमान सामान्य से ऊपर चल रहा है और कई जगहों पर यह 24 से 25 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच रहा है। जबकि दिसंबर के इन्हीं दिनों में इन शहरों में कोल्ड डे कंडीशन (पहाड़ों में छह व मैदानी क्षेत्र में 16 डिग्री सेल्सियस से कम) देखने को मिलती थी। दिन के समय तेज धूप निकलने से लोग गर्म कपड़े उतारकर धूप सेंकते नजर आ रहे हैं।
मौमस विशेषज्ञ बिक्रम सिंह का कहना है कि आने वाले दिनों में यदि कोई मजबूत पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय नहीं हुआ, तो पहाड़ों में बर्फबारी और मैदानी इलाकों में कड़ाके की ठंड का इंतजार और लंबा हो सकता है। ऐसे में पर्यटन के लिहाज से पहाड़ों में इस बार बर्फ नहीं, बल्कि सुहावनी धूप पर्यटकों का स्वागत कर रही है। मौसम विज्ञान केंद्र देहरादून के निदेशक डा सीएस तोमर के अनुसार ग्लोबल वॉर्मिंग, मौसम चक्र में बदलाव और पश्चिमी विक्षोभ की सक्रियता में कमी इसके प्रमुख कारण हैं। पोस्ट मानसून कई बार दिसंबर अंतिम में सक्रिय होता हे।
उत्तर भारत का फसल चक्र प्रभावित
पोस्ट मानसून पीरियड इस बार सूखा रहने से उत्तर भारत का फसल चक्र प्रभावित होने लगा है। नवंबर- दिसंबर में अपेक्षित वर्षा न होने का सीधा असर रबी फसलों पर दिख रहा है। तराई क्षेत्रों में गेहूं, सरसों और गन्ने की बुआई के बाद खेतों में नमी की कमी बनी हुई है। जिसके बढ़ने की आशंका है। पहाड़ी क्षेत्रों में भी स्थिति चिंताजनक है। मोटा अनाज, मटर, हरी सब्जियों और प्याज की पनीरी के लिए नियमित सिंचाई जरूरी हो गई है। बर्फबारी न होने से सेब उत्पादक भी चिंतित हैं, क्योंकि सेब की अच्छी पैदावार के लिए दिसंबर की बर्फबारी उपयोगी मानी जाती है। मौसम में बदलाव नहीं हुआ तो आगे चलकर उत्पादन पर असर पड़ सकता है।
55 दिन से नहीं हुई उत्तराखंड में वर्षा
उत्तराखंड में आखिरी बार 22 अक्टूबर, 2025 को करीब सात घंटे वर्षा हुई। इस दौरान देहरादून में 22.5 व चंपावत में 19.6 मिमी वर्षा रिकार्ड की गई। इसके बाद एक-दो बार केवल चमोली, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी व पिथौरागढ़ के ऊंचाई वाले क्षेत्र में हल्की से मध्यम वर्षा हुई। अन्य क्षेत्र में लगभग सूखा बना हुआ है।
चारधाम, हर्षिल, औली में बर्फबारी का इंतजार
दिसंबर के दूसरा पखवाड़ा शुरू हो गया है लेकिन अभी तक प्रमुख चारधाम की चोटियां, हर्षिल, औली, गोरसों, चोपता, कुमाऊं की मुनस्यारी, धारचूला, मिलम, जोहार घाटी, पंचाचूली और नंदा देवी में ताजा हिमपात नहीं हुआ है। कुछ चोटियां तो बर्फविहीन दिखने भी लगी हैं।
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