अशोक परियोजना में दूसरे दिन भी रोड सेल ठप।
संवाद सहयोगी, पिपरवार। चतरा जिले के पिपरवार कोयलांचल क्षेत्र में उग्रवादी संगठन टीएसपीसी की एक कथित धमकी ने पूरे कोयला कारोबार की रफ्तार पर ब्रेक लगा दिया है। संगठन के सब-जोनल कमांडर देवा जी के नाम से जारी पर्चे ने व्यापारियों और ट्रांसपोर्टरों के बीच इस कदर दहशत पैदा कर दी है कि सीसीएल की महत्वपूर्ण अशोक परियोजना से होने वाला रोड सेल पूरी तरह ठप हो गया है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
पर्चे में दी गई चेतावनी में स्पष्ट कहा गया है कि संगठनसे बिना संपर्क किए कोयला उठाव करने वालों को गंभीर अंजाम भुगतने होंगे। इस सीधी धमकी के बाद खौफ का आलम यह है कि लगातार दूसरे दिन भी परियोजना क्षेत्र में सन्नाटा पसरा रहा और कोयला लोडिंग के लिए एक भीट्रक आगे नहीं आया।
कांटा घर पर ताला और आर्थिक चोट
रोड सेल के माध्यम से होने वाला कोयला उठाव बंद रहने के कारण अशोक परियोजना का कांटा घर दूसरे दिन भी बंद रहा। कांटा घर ठप होने से प्रतिदिन होने वाला सैकड़ों टन कोयले का डिस्पैच पूरी तरह रुक गया है, जिससे न केवल निजी कारोबारियों को भारी वित्तीय चपत लग रही है, बल्कि सीसीएल को भी राजस्व का बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है।
कोयला कारोबारियों और लिफ्टरों का साफ कहना है कि मौजूदा अनिश्चितता और खतरे के बीच काम जारी रखना जान जोखिम में डालने जैसा है। जब तक स्थानीय प्रशासन और सीसीएल प्रबंधन की ओर से सुरक्षा की कोई ठोस और पुख्ता गारंटी नहीं दी जाती, तब तक ट्रकों का परिचालन और कोयला उठाव शुरू करना संभव नहीं है।
सुरक्षा बलों की तैनाती के बावजूद नहीं टूटा डर
हालात की संवेदनशीलता को देखते हुए अशोक परियोजना के कांटा घर और संवेदनशील रास्तों पर सीसीएल के सुरक्षा कर्मियों के साथ-साथ सीआईएसएफ के जवानों को तैनात किया गया है। भारी सुरक्षा इंतजामों के बावजूद कारोबारियों और मजदूरों के मन से उग्रवादियों का डर खत्म नहीं हो रहा है।
क्षेत्र के लोगों का मानना है कि केवल जवानों की तैनाती काफी नहीं है, बल्कि अपराधियों और उग्रवादी तत्वों के खिलाफ ठोस कार्रवाई की जरूरत है। सूत्रों की मानें तो पुलिस और प्रशासन पूरे घटनाक्रम पर बारीक नजर रखे हुए है और पर्चे की सत्यता की जांच की जा रही है, लेकिन धरातल पर अभी भी अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे हैं।
आर्थिक गतिविधियों पर मंडराता खतरा
पिपरवार क्षेत्र की पूरी अर्थव्यवस्था कोयला कारोबार पर टिकी है। यदि यह गतिरोध जल्द दूर नहीं हुआ, तो इसका व्यापक असर स्थानीय मजदूरों की रोजी-रोटी और छोटी-बड़ी आर्थिक गतिविधियों पर पड़ना तय है। कोयला उठाव ठप रहने से ट्रकों की लंबी कतारें सड़कों पर खड़ी हैं और ट्रांसपोर्ट से जुड़े हजारों लोग काम शुरू होने के इंतजार में हैं।
फिलहाल गेंद प्रशासन और प्रबंधन के पाले में है कि वे किस तरह कारोबारियों का भरोसा जीतते हैं और इस महत्वपूर्ण परियोजना में फिर से काम सुचारू रूप से शुरू करवा पाते हैं।
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