यमुनानगर में 214 दिन खराब रही हवा
जागरण संवाददाता, यमुनानगर। हवा-पानी जैसी बुनियादी जरूरतों के मामले में यमुनानगर के लिए वर्ष 2025 कुछ खास बेहतर नहीं रहा। सालभर में ज्यादातर दिन शहर वायु प्रदूषण की चपेट में रहा, जिससे आमजन को सांस व स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ा। औद्योगिक गतिविधियां, बढ़ते ट्रैफिक व अन्य कारणों से प्रदूषण का स्तर लगातार चिंता बढ़ाता रहा। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
28 हजार से अधिक शिकायतें दर्ज
दूषित पानी की सप्लाई को लेकर भी लोगों में असंतोष दिखा। जलापूर्ति से जुड़ी समस्याओं की विभाग के पास 28 हजार से अधिक शिकायतें दर्ज की गईं, जो व्यवस्था की कमजोरियों को उजागर करती हैं। भूजल स्तर के मामले में भी हालात गंभीर रहे। व्यासपुर खंड में जरूरत से ज्यादा भूजल दोहन ने अधिकारियों की नींद उड़ा दी, वहीं अन्य क्षेत्रों में भी जलस्तर गिरने की स्थिति बनी रही।
शहर में हरियाली पर चली कुल्हाड़ी ने पर्यावरण संरक्षण के लिए काम कर रही स्वयंसेवी संस्थाओं को आहत किया। हालांकि, राहत की बात यह रही कि जिले में एग्रो वेस्ट से ब्रिकिट्स व पैलेट बनाने वाली यूनिट्स ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में सकारात्मक योगदान दिया, जिससे प्रदूषण कम करने की उम्मीद जगी।
वायु की स्थिति: साल भर प्रदूषण की मार, ज्यादातर दिन बिगड़ी रही वायु गुणवत्ता
यमुनानगर में वर्ष 2025 के दौरान वायु प्रदूषण की स्थिति अधिकांश दिनों में खराब बनी रही। फैक्ट्रियों की चिमनियों से निकलने वाला काला व जहरीला धुआं, सड़कों पर सरपट दौड़ते वाहन व जगह-जगह जलाया जा रहा कूड़ा प्रदूषण बढ़ाने के कारण रहे। प्रदूषण के चलते आमजन को सांस संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ा, वहीं पर्यावरण पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।आंकड़ों के अनुसार जुलाई, अगस्त व सितंबर में अत्यधिक बारिश तथा मार्च में मौसम अपेक्षाकृत सामान्य रहने के कारण यमुनानगर में 122 दिनों तक वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) संतोषजनक दर्ज किया गया।
इसके विपरीत जनवरी, फरवरी और अक्टूबर, नवंबर, दिसंबर में वायु में नमी अधिक रहने तथा मार्च, अप्रैल व मई में फसलों की कटाई, ढुलाई और अन्य गतिविधियों के चलते 214 दिनों तक प्रदूषण की स्थिति खराब बनी रही। इसके अलावा 29 दिनों में हालात बेहद खराब श्रेणी में पहुंचे, जिससे लोगों की चिंता और बढ़ गई। हालांकि, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों ने स्थिति सुधारने के दावे किए, लेकिन धरातल पर खास बदलाव नजर नहीं आया।
जल-गुणवत्ता: 28529 शिकायतें आईं, 796 पानी के नमूने जांच में फेल
यमुनानगर में वर्ष 2025 के दौरान खराब पानी की सप्लाई को लेकर लोगों की परेशानी बनी रही। पूरे साल में जलापूर्ति से संबंधित 28 हजार से ज्यादा शिकायतें दर्ज की गईं। जलापूर्ति एवं अभियांत्रिकी विभाग के अधिकारियों का दावा है कि इनमें से करीब 98 प्रतिशत शिकायतों का समय रहते निपटारा कर दिया गया। इसके बावजूद दूषित पानी की समस्या पूरी तरह समाप्त नहीं हो सकी। विभाग की ओर से वर्ष 2025 में कुल 7,474 पानी के नमूनों की जांच कराई गई, जिनमें से करीब पांच प्रतिशत यानी 358 सैंपल फेल पाए गए। स्वास्थ्य विभाग ने भी पानी की गुणवत्ता पर नजर रखते हुए 16,815 सैंपलों की जांच की, जिनमें 438 सैंपल मानकों पर खरे नहीं उतरे।
फेल सैंपलों से यह साफ है कि कुछ क्षेत्रों में अब भी लोगों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। दूषित पानी की शिकायतों के समाधान के लिए जलापूर्ति एवं अभियांत्रिकी विभाग की ओर से राज्य स्तर पर शिकायत निवारण केंद्र स्थापित किया गया है। इसके अलावा सब-डिवीजन स्तर पर फिजिकल मोड में भी शिकायतें दर्ज कर उनकी जांच की जाती है। वर्ष 2025 में कुल 28,529 शिकायतें दर्ज हुईं।
भूजल-स्थितिः व्यासपुर खंड में भूजल दोहन बढ़ा, रेड जोन का खतरा गहराया
यमुनानगर जिले के व्यासपुर खंड में भूजल का दोहन वाटर रिचार्ज की तुलना में कहीं अधिक हो रहा है, जो गंभीर चिंता का विषय बनता जा रहा है। अगर समय रहते इस स्थिति को नियंत्रित नहीं किया गया तो आने वाले वर्षों में व्यासपुर खंड के रेड जोन में शामिल होने की पूरी आशंका है। विशेषज्ञों का मानना है कि अनियंत्रित नलकूपों, अधिक सिंचाई और वर्षा जल संचयन की कमी के कारण हालात लगातार बिगड़ रहे हैं।
इसके अलावा रादौर खंड में भी भूजल स्तर में साल-दर-साल गिरावट दर्ज की जा रही है। आंकड़ों के अनुसार, जगाधरी खंड में भूजल स्तर करीब साढ़े 14 मीटर पर है, जबकि सरस्वती खंड में 15 मीटर, रादौर खंड में 18 मीटर, साढौरा खंड में 11 मीटर, छछरौली खंड में नौ मीटर, व्यासपुर खंड में सबसे अधिक 25 मीटर तथा प्रतापनगर खंड में 15 मीटर पर पानी का स्तर दर्ज किया गया है। यह आंकड़े स्पष्ट रूप से बताते हैं कि व्यासपुर खंड की स्थिति अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक गंभीर है। जानकारों के अनुसार जिले में हर साल औसतन एक से डेढ़ फीट तक भूजल स्तर नीचे खिसक रहा है।
सिंचाई विभाग के एक्सईएन रवि मित्तल ने बताया कि अटल भूजल योजना के लागू होने से कुछ क्षेत्रों में पानी के स्तर में सुधार देखने को मिल रहा है। वर्षा जल संचयन, माइक्रो इरिगेशन और जल संरक्षण को बढ़ावा देकर भूजल स्तर सुधारने के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन इसके लिए आमजन की भागीदारी भी बेहद जरूरी है।
नई पहलः एग्रो वेस्ट से ब्रिकिट्स व पैलेट बनाकर पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा-
यमुनानगर में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक सराहनीय पहल देखने को मिल रही है। जिले में छह ऐसी यूनिट्स संचालित हैं, जहां खेतों से एकत्रित एग्रो वेस्ट से ब्रिकिट्स और पैलेट्स तैयार किए जा रहे हैं। इनका उपयोग फैक्ट्रियों में ईंधन के रूप में किया जा रहा है, जिससे प्रदूषण कम करने में मदद मिल रही है। इस पहल से दोहरा लाभ हो रहा है। एक ओर खेतों में एग्रो वेस्ट जलाने से होने वाले वायु प्रदूषण में कमी आई है, वहीं दूसरी ओर कोयले की खपत घटने से पर्यावरण पर सकारात्मक असर पड़ा है। इसके साथ ही किसानों को अपने एग्रो वेस्ट का उचित मूल्य मिलने से उनकी आमदनी में भी वृद्धि हुई है।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी प्रदीप सिंह के अनुसार यमुनानगर में प्रतिदिन एग्रो वेस्ट से करीब 531 मीट्रिक टन ब्रिकिट्स और पैलेट्स का उत्पादन हो रहा है। इसके लिए कच्चा माल हरियाणा के अलावा आसपास के राज्यों से भी खरीदा जाता है। फैक्टरी संचालक कच्चे माल को पहले स्टोर करते हैं और उद्योगों की जरूरत के अनुसार लगातार उत्पादन करते रहते हैं। उन्होंने बताया कि ऐसी यूनिट्स को बढ़ावा देने के लिए सरकार की ओर से प्रोत्साहन भी दिया जा रहा है।
सामूहिक प्रयास: शहर को हराभरा बनाने में हरियाणा एनवायरमेंट सोसायटी की अहम भूमिका
यमुनानगर शहर को हराभरा और स्वच्छ बनाने में हरियाणा एनवायरमेंट सोसायटी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। शहर का शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र हो, जहां सोसायटी की ओर से पौधरोपण न किया गया हो। इस पर्यावरणीय अभियान को पिछले 35 वर्षों से एमएलएन कॉलेज से सेवानिवृत्त प्रोफेसर एस.एल. सैनी निरंतर आगे बढ़ा रहे हैं। प्रो. सैनी के अनुसार पौधरोपण को जनआंदोलन का रूप देने के लिए आम लोगों की सहभागिता ली जाती है। जन्मदिन, विवाह वर्षगांठ और अन्य विशेष अवसरों पर लोगों को पौधे लगाने के लिए प्रेरित किया जाता है। इसके साथ ही लगाए गए पौधों की एक वर्ष तक देखभाल की जिम्मेदारी भी संबंधित व्यक्ति को सौंपी जाती है, जिससे पौधों के जीवित रहने की संभावना बढ़ जाती है।
उन्होंने बताया कि अब तक हजारों की संख्या में पौधे शहर के विभिन्न हिस्सों में रोपे जा चुके हैं। पार्कों, सड़कों के किनारे, शैक्षणिक संस्थानों और खाली पड़ी जमीनों पर लगातार पौधरोपण किया जा रहा है। शहर को और अधिक हरा-भरा व सुंदर बनाने के उद्देश्य से प्रो. सैनी ने नगर निगम अधिकारियों से वार्डवार पौधरोपण से जुड़ी जानकारी भी मांगी है। इसके आधार पर उन क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जाएगी, जहां हरियाली की अधिक आवश्यकता है। उनका मानना है कि सामूहिक प्रयासों से ही शहर को हरित और स्वच्छ बनाया जा सकता है।
संरचनात्मक-सवाल
वर्ष 2025 के अंत तक यमुनानगर में हवा और पानी से जुड़े कई बुनियादी मुद्दे जस-के-तस बने रहे। वायु प्रदूषण के स्तर में स्थायी सुधार नहीं हो सका। औद्योगिक उत्सर्जन, बढ़ता ट्रैफिक, कूड़ा जलाने और मौसमी कारणों की वजह से शहर अधिकांश समय प्रदूषण की जद में रहा। निगरानी और दावों के बावजूद आम नागरिकों को साफ हवा नसीब नहीं हो पाई। पेयजल की गुणवत्ता भी बड़ा सवाल बनी रही। दूषित पानी की सप्लाई को लेकर हजारों शिकायतें दर्ज हुईं और बड़ी संख्या में पानी के नमूने जांच में फेल पाए गए। इससे साफ है कि जल शोधन, पाइपलाइन और निगरानी व्यवस्था में अब भी खामियां मौजूद हैं। भूजल स्तर के मोर्चे पर हालात और गंभीर रहे।
व्यासपुर सहित कुछ खंडों में रिचार्ज की तुलना में ज्यादा दोहन ने जल संकट को गहराया, जबकि जिले में हर साल भूजल स्तर लगातार नीचे खिसकता रहा। हरित क्षेत्र के संरक्षण में भी विरोधाभास दिखा। एक ओर स्वयंसेवी संस्थाएं और सामाजिक संगठन पौधरोपण के प्रयास करते रहे, वहीं दूसरी ओर विकास के नाम पर हरियाली पर गाहे-बेगाहे कुल्हाड़ी चलती रही। |