ईपीआई रैंकिंग में भारत 176वें स्थान पर (फाइल फोटो)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण और स्वास्थ्य संकट के बीच एनवायरनमेंटल परफॉर्मेंस इंडेक्स (ईपीआई) एक बार फिर चर्चा में है। अमेरिका की येल येल यूनिवर्सिटी ने अपडेटेड ईपीआई रैंकिंग जारी की है, जो एक बार फिर भारत की कमजोर स्थिति उजागर की है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
दरअसल, अमेरिका द्वारा जारी अपडेटेड ईपीआई रैंकिंग में भारत 180 देशों में 176वें स्थान पर है। जबकि डेनमार्क, फिनलैंड, लग्जमबर्ग, ब्रिटेन जैसे यूरोपीय देश मजबूत नीतियों के दम पर टॉप पर कायम हैं। एक ओर जहां कार्बन टैक्स से लेकर जंगल संरक्षण तक के सख्त कानूनों ने यूरोप को टॉप में रखा हुआ है, तो वहीं, दूसरी ओर भारत में लक्ष्यों का कानूनी बाध्यता न होना बड़ी वजह बना हुआ है।
बता दें कि ईपीआई हवा की गुणवत्ता, स्वच्छ पानी, जैव विविधता, कार्बन उत्सर्जन और मानव स्वास्थ्य सहित 50 से अधिक संकेतकों के आधार पर देशों का आकलन करता है। इन सभी मानकों पर यूरोप का मॉडल मजबूत और स्थिर दिखता है।
दुनिया में सबसे पहले डेनमार्क ने 1990 में कार्बन टैक्स लागू कर प्रदूषण को महंगा किया और 2030 तक इसका उत्सर्जन 70% घटाने का लक्ष्य कानूनन तय किया। इस दौरान फिनलैंड ने जंगल संरक्षण को विकास से जोड़ा। इसके बाद फॉरेस्ट एक्ट में बदलाव करते हुए जितने पेड़ कटें, उससे अधिक रोपना अनिवार्य कर दिया।
इसके ठीक उल्टा भारत ने 2070 तक नेट-जीरो और 2030 तक उत्सर्जन घटाने के लक्ष्य तो फिक्स कर लिए, लेकिन इसके लिए कोई कानूनी बाध्यता तय नहीं की। यही वजह है कि यहां खराब वायु गुणवत्ता, जल संकट, जैव विविधता पर विकास का दबाव देखने को मिल रहा है, जिसके कारण नीचे की रैंकिंग में बना हुआ है। वर्तमान की स्थिति को देखते हुए भारत में पर्यावरण संरक्षण को गंभीरता से लेने की जरुरत है।
डेनमार्क में 50% बिजली पवन ऊर्जा से
डेनमार्क में 50% बिजली पवन ऊर्जा से मिलती है। यहां 2019 में क्लाइमेट एक्ट पास कर 2030 तक कार्बन उत्सर्जन 70% घटाने को कानूनी बाध्यता बना दिया है। कोपेनहेगन में करीब 60% लोग साइकिल से काम पर जाते हैं। यह सीधे तौर पर ट्रांसपोर्ट प्रदूषण को कम किया।
वहीं, ब्रिटेन में 2008 में क्लाइमेट चेंज एक्ट पारित हुआ। जिसे आज तक कोई नहीं बदला। यही वजह है कि ब्रिटेन की रैंकिंग आज स्थिर है। फिनलैंड ने विकास को जंगलों की सुरक्षा से जोड़ा। यहां के कानून के तहत जितने पेड़ कटें उसे अधिक लगाए गए। |