अखिलेश तिवारी, कानपुर। गेहूं व चावल की अधिक उत्पादन वाली प्रजातियों की आंधी में लुप्तप्राय हो चुके मोटा अनाज कोदों,सांवा, कुटकी, काकुन के बीज अब चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के बीज प्रक्षेत्रों में तैयार किए जाएंगे। कानपुर और आस - पास के क्षेत्रों के लिए उपयोगी प्रजातियों की पहचान कर किसानों को मोटे अनाज की खेती का वैज्ञानिक तरीका भी सिखाया जाएगा। विश्वविद्यालय ने हैदराबाद स्थित भारतीय श्री अन्न अनुसंधान संस्थान (आइसीएआर-आइआइएमआर ) से मोटे अनाजों के बीज भी मंगाए हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
गुणवत्ता युक्त बीज उपलब्ध कराएगा सीएसए
गेहूं व चावल की अधिक उत्पादन वाली प्रजातियों की आंधी में लुप्तप्राय हो चुके मोटा अनाज रागी, कोदों, सांवा, कुटकी, काकुन के बीज अब चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के बीज प्रक्षेत्रों में तैयार किए जाएंगे। लगभग 40 साल पहले विश्वविद्यालय कोदों, सांवा और काकुन जैसी फसलों की नई प्रजातियों का अग्रणी जनक संस्थान रहा है। अब दोबारा विश्वविद्यालय इसके लिए अपने को तैयार कर रहा है। मोटा अनाज के बीजों को तैयार करने का उद्देश्य किसानों को खेती के लिए गुणवत्ता युक्त बीज उपलब्ध कराना है।
मोटा अनाज वर्ष मनाया गा था दो साल पहले
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर दो साल पहले पूरी दुनिया ने मोटा अनाज वर्ष मनाया है। मोटा अनाज में अब उत्तर प्रदेश में केवल ज्वार, बाजरा और मक्का की ही खेती हो रही है। अत्यंत पौष्टिक अनाज रागी, कोदों, सांवा, काकुन की खेती लगभग बंद हो चुकी है। जबकि सुपर फूड में शामिल इन फसलों की बाजार में मांग बढ़ रही है। केंद्र सरकार ने किसानों को मोटा अनाज खेती के लिए प्रोत्साहित करने की योजना बनाई है।
यूपी में 500 करोड़ का बजट आवंटित
इसी योजना के तहत उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद को 500 करोड़ रुपये का बजट भी आवंटित किया है। इसी के तहत सीएसए में मोटा अनाज का बीज बैंक तैयार किया जाएगा जहां पर ऐसे अनाजों के बीज उपलब्ध कराए जाएंगे जिसकी खेती कानपुर और आस -पास के जिलों के अलावा उत्तर प्रदेश में आसानी से की जा सके और किसानों को अनाज उत्पादन भी बेहतर मिले। इसके तहत दक्षिण भारत से मोटे अनाज के बीज मंगाए गए हैं। सावां की एक प्रजाति जेटी सावां का बीज आचार्य नरेन्द्रदेव कृषि विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या से लाया गया है। इन सभी की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जाएगा। अगले महीने की पांच तारीख को किसानों का प्रशिक्षण कार्यक्रम भी सीएसए में आयोजित किया जा रहा है।
40 साल पहले सीएसए ने विकसित की थी नई प्रजातियां
श्रीअन्न यानी मोटे अनाज में शामिल कोदो,सावां की खेती आज भले सीएसए के कृषि क्षेत्रों में नहीं की जा रही है लेकिन 40 साल पहले यहां के विज्ञानी डा आर आर गुप्ता ने इन अनाजों की कई प्रजातियां विकसित की थीं। इसमें कोदों की प्रजाति केके-1, केके-2, मडुआ की निर्मल केएम-13 और केएम-65 , सांवा की प्रजाति अनुराग, कंचन, चंदन और काकुन, भावना और जेटी सांवा , काकुन की प्रजाति निश्चल भी शामिल रही है।
कोदों व सांवा की विशेषता
पर्यावरण हितैषी फसल है जो सिंचाई के बगैर प्राकृतिक वर्षा में भी उगाई जा सकती है। कोदों को पोषण मानक पर सबसे समृद्ध अनाज माना गया है। इसे कैंसररोधी भी माना जाता है और वजन कम करने में भी मददगार है। घुटने और हड्डियों के जोड़ अर्थराइटिस में भी इसका उपयोग लाभकारी है। यह मधुमेह रोधी भी है और न्यूरो समस्याओं को खत्म करने में भी सहायक है। सांवा में प्रोटीन बहुत अधिक होता है और कैलोरी बेहद कम है। यह फास्फोरस व मैग्नीशियम का भी अच्छा स्रोत है।
कोदों, सांवा, काकुन समेत श्रीअन्न की कई प्रजातियां हैं जो चलन से लगभग बाहर हो चुकी हैं। सुपर फूड के तौर पर इनकी मांग बढ़ी है। किसानों को गुणवत्तापूर्ण बीज दिलाने के लिए सीएसए में बीज बैंक बनाया जाएगा।
- प्रो. आरके यादव , निदेशक शोध एवं प्रसार |