नई दिल्ली। भारत में प्लॉट खरीदना लंबे समय से एक सुरक्षित और लाभकारी रियल एस्टेट निवेश माना जाता रहा है। जमीन की कीमतें समय के साथ बढ़ती हैं और रखरखाव का खर्च भी न के बराबर होता है। लेकिन दूसरी ओर, फर्जी दस्तावेज, एक ही जमीन के कई खरीदार और गलत जानकारी देकर जमीन बेचने जैसे मामलों के कारण निवेश से पहले सतर्क रहना बेहद जरूरी हो गया है।
प्लॉट खरीदते समय लोकेशन, विक्रेता की पहचान और कानूनी दस्तावेजो की अच्छे से जांच करना निवेश को सुरक्षित बनाने के लिए अनिवार्य है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
शहर का केंद्र या बाहरी इलाका: कहां खरीदें प्लॉट?
रियल एस्टेट में एक सामान्य नियम है कि जहां कीमतें कम होती हैं, वहां भविष्य में रिटर्न की संभावना अधिक होती है। शहर के केंद्रों में ज़मीन की कीमतें पहले से ही काफी ऊंची होती हैं, जिससे आगे चलकर मुनाफा सीमित रह जाता है।
इसके उलट, शहर के बाहरी या परिधीय इलाकों में जमीन 30-40 प्रतिशत तक सस्ती मिल सकती है। जैसे-जैसे इन क्षेत्रों में सड़क, मेट्रो, स्कूल, अस्पताल और अन्य बुनियादी ढांचा विकसित होता है, वैसे-वैसे जमीन की कीमतों में भी तेजी आती है।
दिल्ली-एनसीआर का यमुना एक्सप्रेसवे इसका उदाहरण है, जहां पिछले कुछ वर्षों में जमीन के दाम तेज़ी से बढ़े हैं और आने वाले समय में जेवर एयरपोर्ट के चालू होने से और बढ़ोतरी की उम्मीद है।
प्लॉट खरीदते समय किन बातों की जांच जरूरी?
विक्रेता की पहचान
- विक्रेता की पहचान और नागरिकता की पुष्टि करें
- यदि जमीन संयुक्त रूप से है तो सभी मालिकों की सहमति सुनिश्चित करें
- कंपनी द्वारा बेची जा रही जमीन के मामले में उसकी कानूनी क्षमता की जांच करें
जरूरी दस्तावेज
- टाइटल डीड (स्वामित्व पत्र): जमीन का स्वामित्व स्पष्ट और निर्विवाद होना चाहिए
- एनए (नॉन-एग्रीकल्चर) ऑर्डर: आवासीय या व्यावसायिक उपयोग के लिए आवश्यक
- एनकम्ब्रेंस सर्टिफिकेट: जमीन पर किसी तरह का कर्ज या कानूनी विवाद न हो
- रिलीज़ सर्टिफिकेट: यदि जमीन पर पहले लोन था, तो बैंक से एनओसी
- प्रॉपर्टी टैक्स रसीदें: पुराने बकाया टैक्स न हों
- एफएसआई (FSI): प्लॉट पर कितनी निर्माण अनुमति है, यह जानना ज़रूरी
जोनिंग और निर्माण से जुड़े नियम
- किसी भी प्लॉट को खरीदने से पहले यह समझना ज़रूरी है कि वह किस जोन में आता है।
- रेड जोन: स्कूल, अस्पताल, धार्मिक स्थल
- ग्रीन जोन: कृषि और हरित क्षेत्र
- येलो जोन: आवासीय या मिश्रित उपयोग
- ब्लू जोन: व्यावसायिक गतिविधियां
- ग्रे/पर्पल जोन: औद्योगिक और फैक्ट्री क्षेत्र
जोनिंग नियम यह तय करते हैं कि वहां किस तरह का निर्माण संभव है और कितनी ऊंचाई तक इमारत बनाई जा सकती है।
फिजिकल वेरिफिकेशन और कनेक्टिविटी
केवल ब्रोशर या विज्ञापन पर भरोसा न करें। प्लॉट पर जाकर खुद देखें, आसपास का विकास, सड़क, बिजली, पानी और परिवहन सुविधाओं की जांच करें। बेहतर कनेक्टिविटी भविष्य में प्लॉट की कीमत बढ़ाने में अहम भूमिका निभाती है।
प्लॉट के प्रकार
- आवासीय प्लॉट: घर बनाने के लिए
- व्यावसायिक प्लॉट: दुकान, ऑफिस या मॉल के लिए
- कृषि भूमि: खेती के लिए, राज्यों के अनुसार नियम अलग-अलग
- औद्योगिक प्लॉट: फैक्ट्री, वेयरहाउस के लिए
- संस्थागत प्लॉट: स्कूल, कॉलेज या संस्थान के लिए
प्लॉट में निवेश के फायदे
लंबे समय में बेहतर रिटर्न
उपयोग में लचीलापन
कम टैक्स और न्यूनतम रखरखाव खर्च
भविष्य में निर्माण या किराये से आय की संभावना
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)
प्रश्न1: भारत में प्लॉट खरीदने की प्रक्रिया क्या है?
उत्तर- प्लॉट खरीदने के लिए सबसे पहले बजट और लोकेशन तय करें। इसके बाद विक्रेता की पहचान और जमीन से जुड़े सभी कानूनी दस्तावेज़ों की जांच करें। अंत में रजिस्ट्री और स्टांप ड्यूटी का भुगतान कर सब-रजिस्ट्रार कार्यालय में रजिस्ट्रेशन कराएं।
प्रश्न2: जमीन का टाइटल डीड क्या होता है?
उत्तर- टाइटल डीड एक कानूनी दस्तावेज़ होता है, जिससे यह पता चलता है कि जमीन का असली और वैध मालिक कौन है और उस पर किसी प्रकार का विवाद नहीं है।
प्रश्न3: क्या प्लॉट खरीदने से पहले एनए (NA) सर्टिफिकेट ज़रूरी है?
उत्तर- हां, यदि आप जमीन को आवासीय या व्यावसायिक उपयोग के लिए खरीद रहे हैं, तो उसका कृषि से गैर-कृषि (NA) में परिवर्तन होना आवश्यक है।
प्रश्न4: एनकम्ब्रेंस सर्टिफिकेट क्यों जरूरी है?
उत्तर- यह सर्टिफिकेट बताता है कि जमीन पर कोई कर्ज, लोन या कानूनी विवाद नहीं है। प्लॉट खरीदने से पहले इसे ज़रूर जांचें।
प्रश्न5: क्या कृषि भूमि कोई भी खरीद सकता है?
उत्तर- नहीं, कृषि भूमि खरीदने के नियम राज्यों के अनुसार अलग-अलग होते हैं।
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