उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस की रजत जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से चर्चा करते मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी। जागरण आर्काइव
रविंद्र बड़थ्वाल, जागरण देहरादून: उत्तराखंड वर्ष 2025 में अपनी स्थापना की रजत जयंती मना चुका है। 25 वर्षों के कालखंड में युवा प्रदेश ने बुनियादी सुविधाओं को दुर्गम और दूरस्थ क्षेत्रों में पहुंचाने के लक्ष्य की दिशा में निर्णायक कदम बढ़ाए तो विकास एवं आर्थिकी के क्षेत्र में नए प्रतिमान भी गढ़े हैं। तरुण काल से युवावस्था की ओर बढ़ते राज्य ने अपनी चुनौतियों को पहचानने और क्षमताओं को चिह्नित करने की महत्वपूर्ण पहल की। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
देवभूमि के स्वरूप और संस्कृति को ध्यान में रखकर कई ऐसे ऐतिहासिक कदम उठाए गए जो देश को भी नयी राह दिखा रहे हैं। समान नागरिक संहिता के रूप में महिला अधिकारों एवं समान कानून की राष्ट्रीय आवश्यकता की गंगा के लिए उत्तराखंड भगीरथ बना।
छांगुर प्रकरण के रूप में मतांतरण के घृणित स्वरूप से निपटने के लिए ठोस कदम उठे तो अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थाओं में भेदभाव और समान शिक्षा के अवसर के लिए नया कानून अस्तित्व में आया है। समस्याओं के सरलीकरण, संतु़ष्टिकरण से समाधान की राह पर चलने की दृढ़ इच्छाशक्ति प्रदर्शित की है।
यह कहना सर्वथा उचित होगा कि 26वें वर्ष में प्रवेश करने के साथ ही डबल इंजन के रूप में केंद्र सरकार के दम की बदौलत उत्तराखंड में सशक्त और विकसित बनने की नयी इच्छाशक्ति मूर्त रूप लेने को छटपटा रही है। यह नयी उमंग और नये उत्साह का जयघोष भी है।
समान नागरिक संहिता: महिलाओं का सुरक्षा कवच
उत्तराखंड ने महिला अधिकारों की पुरजोर आवाज बनकर समान नागरिक संहिता लागू कर देश में महत्वपूर्ण पहल की। देश को स्वतंत्रता मिलने के साथ ही समान नागरिक संहिता की आवश्यकता को लेकर सुर बुलंद होने लगे थे, लेकिन मध्य हिमालय की यह देवभूमि ही इस अभिनव पहल की प्रयोगभूमि बनी।
इसे महज संयोग कहा जाए या नियति का लेखा, उत्तराखंड राज्य की संरचना का मुख्य आधार भी मातृशक्ति की चेष्टा, पीड़ा, संघर्ष और बलिदान से तैयार हुआ। सहज, सौम्य और युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव के समय घोषणा बाद में इतिहास रचने का माध्यम बन गई।
संहिता को मुख्य रूप से महिला अधिकारों के संरक्षण के दृष्टिगत चार खंडों, विवाह और विवाह विच्छेद, उत्तराधिकार, सहवासी संबंध (लिव इन रिलेशनशिप) और विविध में विभाजित किया गया है। कानून का क्रियान्वयन हो चुका है। इसे और अधिक सरल बनाने के लिए कानून में संशोधन की प्रक्रिया जारी है।
सशक्त भू कानून: उल्लंघन पर सरकार में निहित होगी भूमि
छोटा प्रदेश, 71 प्रतिशत वन क्षेत्र। सरकार की कल्याण एवं विकासपरक योजनाओं के लिए भूमि उपलब्ध नहीं हो पा रही है। ऐसे में कृषि योग्य एवं बची-खुची भूमि पर भू माफिया की गिद्ध दृष्टि और जन भावनाओं ने राज्य सरकार को आखिरकार कड़ा भू-कानून बनाने के लिए बाध्य किया।
परिणामस्वरूप इसी वर्ष उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950 (अनुकूलन एवं उपांतरण आदेश 2001) (यथा उत्तराखंड राज्य में प्रवृत्त) संशोधन अधिनियम मई, 2025 से अस्तित्व में आ गया। इस कानून के अनुसार कोई भी बाहरी व्यक्ति हरिद्वार और ऊधम सिंह नगर को छोड़कर शेष 11 जिलों में कृषि व बागवानी के लिए भूमि खरीद नहीं कर सकेंगे।
नगर निकाय क्षेत्रों से बाहर यानी ग्रामीण क्षेत्रों में आवासीय उपयोग के लिए बाहरी व्यक्ति 250 वर्गमीटर केवल आवासीय उपयोग के लिए खरीद सकते हैं। भूमि खरीदने वाले को शपथ पत्र भी देना होगा। भू-कानून का उल्लंघन हुआ तो खरीदी गई भूमि सरकार में निहित होगी।
अल्पसंख्यक शिक्षा के लिए नया कानून
उत्तराखंड ने अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों के लिए नया कानून बनाया है। इसके लिए उत्तराखंड अल्पसंख्यक शिक्षा अधिनियम, 2025 लागू किया गया है। यह कानून एक जुलाई, 2026 से प्रभावी होगा। नये कानून में मदरसों में आधुनिक शिक्षा दी जाएगी और धार्मिक शिक्षा के साथ उत्तराखंड बोर्ड का पाठ्यक्रम अनिवार्य किया गया है।
सभी अल्पसंख्यक संस्थानों (सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई, पारसी) को एक \“उत्तराखंड राज्य अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण\“ से मान्यता लेनी होगी। इस कानून को समान शिक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
मतांतरण पर कड़ा किया कानून
मतांतरण को लेकर बहुचर्चित छांगुर प्रकरण सामने आने के बाद प्रदेश सरकार ने अपने मतांतरण कानून को और सख्त बनाया है। धामी सरकार ने राज्य में उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता एवं विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम में संशोधन कर इसमें 10 लाख रुपये तक का जुर्माना के साथ ही आजीवन कारावास का प्रविधान किया है।
इसके साथ ही अन्य कई प्रविधान भी कड़े किए गए हैं। गैरसैंण में पारित इस संशोधन विधेयक में लिपिकीय व तकनीकी त्रुटियां होने से इसे राजभवन ने लौटाया है। इसे शीघ्र लागू करने के लिए सरकार अध्यादेश लाने जा रही है। इसके साथ ही छद्म वेश धारण कर सनातन धर्म को हानि पहुंचाने वालों के विरुद्ध आपरेशन कालनेमि को तेज किया गया है।
शीतकालीन अथवा बारहमासी पर्यटन
उत्तराखंड में अभी तक चारधाम यात्रा गर्मियों में ही संचालित होती रही है। अब शीतकाल के दौरान चारधाम के समस्त गद्दीस्थलों में यात्रा को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके साथ ही अन्य शीतकालीन पर्यटन को भी व्यवस्थित करते हुए विस्तार देने की पहल वर्ष 2025 से हुई है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसे गति देने स्वयं उत्तराखंड पहुंचे थे। अन्य धार्मिक यात्राओं व मेलों के प्रबंधन और संचालन के लिए वर्षभर व्यवस्था पर काम किया जा रहा है। एक जिला एक मेला थीम पर पर्यटकों को लुभाने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। सरकार ने उत्तराखंड धर्मस्व एवं तीर्थाटन परिषद का गठन किया गया। शुरुआती दौर में इसके परिणाम दिखाई दिए हैं। इससे आने वाले वर्षों में शीतकालीन पर्यटन में बड़ी वृद्धि संभावित है।
राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी, खेलों व खिलाड़ियों को प्रोत्साहन
उत्तराखंड ने वर्ष 2025 में 38वें राष्ट्रीय खेलों की सफल मेजबानी की है। इन खेलों में पदक जीतने वाले खिलाड़ियों को सरकारी नौकरी देने की योजना प्रारंभ की गई। इस आयोजन ने राज्य में खेलों के लिए वातावरण सृजन और खिलाड़ियों को बेहतर भविष्य की उम्मीद जगाई है।
राष्ट्रीय खेलों के लिए विकसित की गईं अवस्थापना सुविधाओं के उपयोग की कार्ययोजना पर सरकार गंभीर है। इससे खेलों का विकास होगा और खिलाड़ियों को भी उचित अवसर उपलब्ध हो सकेंगे।
25 हजार से अधिक सरकारी नौकरियां
रजत जयंती वर्ष में सरकारी विभागों में रोजगार का आंकड़ा पांच हजार को पार कर रहा है। सरकार का दावा है कि अब तक 25 हजार से अधिक रोजगार सरकारी विभागों में दिया जा चुका है। इसके अतिरिक्त कौशल विकास एवं उद्योग विभाग की स्वरोजगार योजनाओं से हजारों व्यक्तियों को लाभान्वित किया गया है।
इस वर्ष अकेले मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना 2.0 से ही पांच हजार व्यक्तियों को उद्यमों में स्वरोजगार मिलेगा। इस वर्ष अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के माध्यम से भर्ती परीक्षा के पेपर के कुछ अंश लीक होने का प्रकरण सामने आया। सरकार ने तत्परता से कदम उठाते हुए इस प्रकरण को उजागर किया और इसमें संलिप्त तत्वों पर शिकंजा कसा गया है।
मंत्रिमंडल में रिक्त सीट बढ़ी, नहीं हुआ विस्तार
धामी मंत्रिमंडल में रिक्त सीट की संख्या बढ़ गई, लेकिन विस्तार चर्चाओं तक ही सिमटा रहा। फरवरी माह में बजट सत्र के दौरान जुबान फिसलना कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल पर भारी पड़ गया। बजट सत्र के चंद दिनों बाद ही मार्च माह में उन्हें अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा।
इसके बाद राज्य मंत्रिमंडल में रिक्त पदों की संख्या बढ़कर पांच हो गई। वर्षभर ही मंत्रिमंडल में विस्तार और फेरबदल की चर्चाएं सियासी गलियारों में तैरती रहीं। यह अलग बात है कि मंत्रिमंडल में किसी भी तरह का परिवर्तन नहीं हुआ। यद्यपि, परिवर्तन को लेकर सभी सक्षम स्तर से संकेत दिए गए। इस बार कुछ महत्वपूर्ण दायित्व भी सरकार की ओर से बांटे गए।
भाजपा व कांग्रेस के प्रदेश संगठन में बदलाव
इस वर्ष कई महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम का गवाह भी प्रदेश बना है। विशेष रूप से सत्ताधारी दल भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में विगत जुलाई माह में राज्यसभा सदस्य महेंद्र भट्ट की दोबारा ताजपोशी हुई।
महेंद्र भट्ट पर पार्टी ने अपना भरोसा कायम रखा, साथ ही नयी प्रदेश कार्यकारिणी में पहली बार महामंत्री का पद महिला कोटे को भी मिला। दीप्ति रावत भारद्वाज को यह जिम्मेदारी पार्टी ने सौंपी। भाजपा अपनी जिला इकाइयों से लेकर मोर्चों व प्रकोष्ठों की प्रदेश से लेकर जिला इकाइयों का गठन कर चुकी है।
पार्टी की तैयारी को मिशन 2027 से जोड़कर देखा जा रहा है। वहीं, प्रदेश की मुख्य प्रतिपक्षी पार्टी ने भी दोबारा सत्ता में वापसी को ध्यान में रखकर प्रदेश संगठन में बड़े बदलाव किए। प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा को बदलकर पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल को दोबारा यह महत्वपूर्ण पद सौंपा गया।
इसी प्रकार कांग्रेस हाईकमान ने प्रदेश चुनाव प्रबंधन समिति का अध्यक्ष पूर्व कैबिनेट मंत्री डा हरक सिंह रावत को बनाया, जबकि प्रदेश चुनाव अभियान समिति की कमान पूर्व नेता प्रतिपक्ष व पूर्व अध्यक्ष रहे प्रीतम सिंह को सौंपी गई है।
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