बीजेपी प्रत्याशई मैथिली ठाकुर और हम प्रत्याशी दीपा मांझी।
दीनानाथ साहनी, पटना। वर्ष 2023 में संविधान संशोधन (106वां) कर राजनीति में एक तिहाई महिला आरक्षण का प्रविधान किया गया। तब प्रतिष्ठित राजनीतिक पार्टियों ने आधी आबादी की राजनीतिक भागीदारी को बढ़ाने का खूब बढ़-चढ़कर वादा किया था। मगर बिहार के विधानसभा चुनाव में जब महिलाओं को टिकट देने की बारी आई तो पार्टियों ने अपने वादों को भुला दिया। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
टिकट देने के मामले में पार्टियों ने महिलाओं के प्रति अपना रवैया नहीं बदला। रोचक यह कि सरकारी नौकरियों और पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण का कोटा लागू हैं। मगर जब राजनीतिक भागीदारी की बात आती है तो पार्टियों के हाथ-पांव फुल जाते हैं। तभी तो 33 प्रतिशत की राजनीतिक हिस्सेदारी देने की बात पार्टियों के लिए सिर्फ वादा ही साबित हुई है।
इस तरह विधानसभा चुनाव लड़ने का सपना देखने वाली आधी आबादी हाशिए पर रह गई। यह हाल उस आधी आबादी की है जो पुरुषों के मुकाबले विभिन्न चुनावों में मतदान करने में बढ़-चढ़कर भागीदारी निभाती रही है।
बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) हो या महागठबंधन (आईएनडीआईए)। इनके उम्मीदवारों की सूची देखें तो महिलाओं पर भरोसा जताने और उन्हें टिकट देने में घोर कंजूसी बरती है। दोनों गठबंधनों ने कुल 53 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया है।
एनडीए के बीच सीट बंटवारे में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के हिस्से 101-101 सीटें आई हैं। भाजपा और जदयू ने 13-13 महिलाओं (13 प्रतिशत) पर भरोसा जताकर चुनाव मैदान में उतारा है।
वहीं, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को 29 सीटें मिली है और उसने छह सीटों पर महिला उम्मीदवार को सिंबल देकर चुनाव में उतारा है। केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) को छह सीटें मिली हैं। दो सीटों पर महिला उम्मीदवार जरूर दिया, लेकिन मांझी ने पार्टी की किसी महिला कार्यकर्ता पर भरोसा न जताकर अपनी समधन ज्योति देवी और बहु दीपा मांझी को चुनाव में उतारा है।
इसी तरह पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्टीय लोक मोर्चा को छह सीटें मिलीं और एक सीट पर महिला उम्मीदवार को उतारा है। मगर कुशवाहा ने भी पार्टी की किसी महिला कार्यकर्ता पर भरोसा नहीं जताकर अपनी पत्नी स्नेहलता को उम्मीदवार बनाया। वैसे देखा जाए तो एनडीए ने विधानसभा की सभी 243 सीटों के विरुद्ध 35 महिला उम्मीदवार को टिकट दिया है।
वहीं, दूसरी ओर महागठबंधन ने मात्र 18 महिलाओं को उम्मीदवार बनाया। इनमें राष्टीय जनता दल (राजद) ने 11 महिलाओं पर भरोसा दिखाया और चुनाव मैदान में उतारा। कांग्रेस ने भी पांच महिलाओं को उम्मीदवार बनाया है।
महागठबंधन में शामिल विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेलिनवादी) ने एक-एक महिला उम्मीदवार पर भरोसा जताया है। वहीं भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी यानी माकपा) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) ने एक भी महिला उम्मीदवार नहीं दिया है।
मतदान में पुरुषों से आगे, टिकट में पीछे महिलाएं
2010 से हर चुनाव में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं ने रिकॉर्ड संख्या में मतदान किया। राज्य निर्वाचन आयोग के मुताबिक 2010 के विधानसभा चुनाव में जहां पुरुषों का मतदान प्रतिशत 50.70 रहा वहीं 54.85 प्रतिशत महिलाओं ने वोट डाले।
हालांकि, महिला प्रत्याशियों की संख्या 2010 के चुनाव में मात्र 8.71 प्रतिशत ही रही। इसके बाद के हर चुनाव में आधी आबादी ने पुरुषों के मुकाबले मतदान में बढ़-चढ़कर भागीदारी निभाती रही। फिर भी आबादी के हिसाब से महिलाओं को टिकट देने की बारी आती है तो सभी दल संकोच कर जाते हैं। इस बार भी ऐसा ही हुआ है। दिलचस्प यह कि इस बार भी कुछ पार्टियों ने तो बाहुबलियों की पत्नियों को टिकट दे दिया है।
किस पार्टी ने कितनी महिलाओं को दिया टिकट?
पार्टी - महिला प्रत्याशियों की संख्या
पार्टी महिला प्रत्याशी
भाजपा
13
जदयू
13
राजद
11
लोजपा (रामविलास)
6
कांग्रेस
5
हम
2
रालोमो
1
वीआइपी
1
भाकपा (माले)
1
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