एससी/एसटी एक्ट व दुराचार के फर्जी मुकदमे दर्ज कराने पर अधिवक्ता को 12 वर्ष की कठोर कारावास

cy520520 2025-11-5 11:07:49 views 640
  



विधि संवाददाता, लखनऊ। एससी/एसटी एक्ट का दुरुपयोग करके फर्जी मुकदमा दर्ज कराने के एक और मामले में न्यायालय ने आरोपी को कड़ी सजा सुनायी है।

एससी/एसटी एक्ट के प्रविधानों का दुरुपयोग करके महिला के माध्यम से दुराचार एवं अन्य आरोपों के फर्जी मुकदमे दर्ज करवा कर सरकार से मिलने वाली धनराशि को हड़प लेने के मामले में दोषी पाए गए अधिवक्ता परमानंद गुप्ता को विशेष न्यायाधीश एससी एसटी एक्ट विवेकानंद त्रिपाठी ने 12 वर्ष के कठोर कारावास एवं 45 हजार रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

न्यायालय ने लखनऊ पुलिस आयुक्त को आदेश जारी करते हुए कहा है कि दुराचार जैसे अपराध में एफआइआर दर्ज करने से पहले यह भी देखा जाए कि विपक्षी के विरुद्ध ऐसे ही कितने मामलों में एफआइआर करायी गई है। पिछले सप्ताह भी एससी/एसटी एक्ट का दुरुपयोग करने के मामले में न्यायालय ने आरोपी को सजा सुनाई थी।  

अधिवक्ता परमानंद गुप्ता को झूठा एवं बनावटी साक्ष्य गढ़ने के आरोप में तीन वर्ष का सश्रम कारावास एवं 10 हजार रुपये जुर्माना, धारा 420 के आरोप में चार वर्ष के सश्रम कारावास एवं 10 हजार रुपए जबकि अनुसूचित जाति जनजाति निवारण अधिनियम के आरोप में पांच वर्ष के सश्रम कारावास एवं 25 हजार रुपए के जुर्माने से दंडित किया है।

न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि दोषी को सुनाई गई सजा को वह अलग-अलग भुगतेगा। इसके पहले 19 अगस्त 2025 को भी इसी न्यायालय ने एक अन्य मामले में भी आरोपी अधिवक्ता परमानंद गुप्ता को उम्र कैद की सजा के साथ-साथ 5 लाख रुपये के जुर्माने से दंडित किया था।  

इस मामले में सरकारी वकील अरविंद कुमार मिश्रा ने न्यायालय को बताया कि अनुसूचित जाति की पूजा रावत ने न्यायालय के समक्ष आरोपी अधिवक्ता परमानंद गुप्ता के माध्यम से प्रार्थना पत्र देकर अपने विरोधियों विपिन यादव, रामगोपाल यादव, मोहम्मद तासुक एवं भगीरथ पंडित के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज करवाई थी।

बताया गया था कि वह ब्यूटी पार्लर चलाती है, उसने 2007 में चिनहट थाना क्षेत्र में दोषी की पत्नी संगीता गुप्ता के साथ मिलकर एक दुकान खोली, जिसके लिए उसने 50 हजार रुपये की पगड़ी व पांच हजार रुपया प्रतिमाह किराया तय किया।

लाकडाउन होने के कारण कुछ समय तक वह दुकान का किराया नहीं दे पाई, जिसके बाद नामित आरोपियों ने जबरदस्ती दुकान खाली करा कर उसका एसी, फ्रिज, महंगे फर्नीचर फेंक दिया। इस मामले में पुलिस की विवेचना के बाद सभी आरोपियों के विरुद्ध न्यायालय में आरोप पत्र दाखिल किया गया।

न्यायालय में पूजा रावत ने अपने बयानों में कहा कि उसके साथ इस प्रकार की कोई घटना नहीं हुई और न ही वो किसी अभियुक्त को जानती और पहचानती है। उसने स्पष्ट आरोप लगाया था कि फर्जी प्रार्थना पत्र से जो मुकदमा दर्ज हुआ है, वह वकील परमानंद गुप्ता ने आधार कार्ड सही कराने के संबंध में लिया था, जिसका दुरुपयोग किया गया है।

इसी बयान के आधार पर आरोपी अधिवक्ता को भी बतौर अभियुक्त न्यायालय में तलब किया गया और विचारण कर सजा सुनाई गई।

न्यायालय ने अपने आदेश में पुनः कहा कि जिन मामलों में एफआइआर दर्ज करने के बाद विवेचक ने विवेचना के उपरांत प्रथम दृष्टया मामला न बनने के कारण अंतिम रिपोर्ट लगा दी है, उन मामलों में पीड़ित को तब तक कोई प्रतिकर न दिया जाए जब तक की वादी को सुनकर अभियुक्त के विरुद्ध विचारण हेतु तलब न कर ले।

साथ ही यह भी कहा है कि यदि अंतिम रिपोर्ट स्वीकार कर ली जाती है तो मात्र एफआइआर दर्ज हो जाने के कारण पीड़ित को कोई प्रतिकार न दिया जाए।

न्यायालय ने कहा कि सूचना एवं निर्णय की प्रतिलिपि बार काउंसिल आफ उत्तर प्रदेश इलाहाबाद को भी भेजी जाए ताकि दोष सिद्ध परमानंद गुप्ता एडवोकेट जैसे अपराधी के न्यायालय में प्रवेश और प्रैक्टिस पर रोक लग सके, जिससे न्यायपालिका की सुचिता बनी रहे।

न्यायालय ने जहां एक ओर अन्य आरोपियों को दोष मुक्त कर दिया है, वहीं दूसरी ओर पूजा रावत को भी चेतावनी दी है कि यदि भविष्य में उसके द्वारा एससी-एसटी एक्ट के प्रविधानों का दुरुपयोग करते हुए परमानंद गुप्ता अथवा किसी के साथ आपराधिक षडयंत्र करके रेप अथवा गैंग रेप आदि के फर्जी मुकदमे लिखवाए गए तो उसके विरुद्ध भी कार्यवाही की जाएगी।

अदालत ने निर्णय की प्रति पुलिस आयुक्त लखनऊ को भेजते हुए कहा है कि दुराचार जैसे घृणित अपराधों की एफआइआर की दशा में इस तथ्य का उल्लेख अवश्य करें कि उस व्यक्ति, महिला या उसके परिवार के किसी भी सदस्य द्वारा पूर्व में इस प्रकार की कुल कितनी एफआइआर विपक्षी के विरुद्ध दर्ज कराई गई है। जैसे कि दोषी अधिवक्ता की ओर से पूर्व में भी 11 मुकदमे एवं पूजा रावत के माध्यम से 18 फर्जी मामले अपने विरोधियों के विरुद्ध दर्ज कराए गए थे।
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