जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि ग्रेडेड रिस्पाॅन्स एक्शन प्लान (GRAP) केवल वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया एक नियामक तंत्र है और इससे केंद्र सरकार के कर्मचारियों को Work From Home का कोई वैधानिक अधिकार प्राप्त नहीं होता है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
अदालत ने एक केंद्रीय कर्मचारी की याचिका खारिज करते हुए वर्क फ्राॅम होम की राहत देने से इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की पीठ ने कहा कि वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) की ओर से जारी ग्रैप निर्देशों का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए, लेकिन इन्हें कर्मचारियों के व्यक्तिगत सेवा अधिकारों के रूप में नहीं देखा जा सकता है, खासकर तब जब वे मौजूदा सेवा शर्तों के विपरीत हो।
यह मामला सेंटर फाॅर डेवलपमेंट ऑफ टेलीमैटिक्स (सी-डाॅट) में कार्यरत साइंटिस्ट-ई पद पर तैनात एक कर्मचारी की ओर से दायर याचिका से जुड़ा था। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि उसके कार्यालय परिसर में ग्रैप नियमों के बावजूद निर्माण और तोड़-फोड़ का काम जारी था, जिससे कार्यालय के अंदर वायु गुणवत्ता बेहद खराब हो गई और उसे सांस संबंधी परेशानी हुई।
याचिका में कर्मचारी ने अदालत से ग्रैप आदेशों के तत्काल पालन, कार्यालय परिसर के निरीक्षण, वर्क फ्राॅम होम की अनुमति और अनुपस्थिति की अवधि को ऑन ड्यूटी माने जाने के निर्देश देने की मांग की थी। हालांकि, अदालत ने इन सभी मांगों को खारिज कर दिया।
कोर्ट ने कहा कि GRAP में Work From Home से जुड़ी व्यवस्थाएं केवल केंद्र सरकार को विवेकाधिकार देती हैं, यह कोई अनिवार्य निर्देश नहीं है। इसके अलावा, अदालत ने यह भी नोट किया कि जिस ग्रैप स्टेज-3 के तहत वर्क फ्रॉम होम जैसे कदमों की परिकल्पना की गई थी, उसे सीएक्यूएम द्वारा 26 नवंबर 2025 से पहले ही वापस लिया जा चुका है।
अदालत ने स्पष्ट किया कि ग्रैप का उद्देश्य सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए प्रदूषण नियंत्रण उपाय लागू करना है, न कि कर्मचारियों और नियोक्ताओं के बीच सेवा शर्तों को बदलना।
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