संवाद सूत्र, पुरैनी (मधेपुरा)। मधेपुरा के अनुमंडल क्षेत्र के विभिन्न बाजारों में प्रतिबंधित रहने के बावजूद लोगों के बीच विभिन्न बिमारी परोसने वाली थाई मांगुर मछलियां धड़ल्ले से बिक रही है। बाजारों में बेखौफ बेची जा रही विभिन्न प्रकार की बीमारी परोसने वाली मछलियों को लेकर विभाग संजीदा नहीं दिख रहा है। अन्य मछलियों की अपेक्षा सस्ती होने के कारण इन मछलियों का सेवन गरीब तबके के लोग काफी बढ़-चढ़कर कर रहे हैं। जिससे कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के होने का खतरा बढ़ रहा है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
2000 से प्रतिबंधित है थाई मांगुर मछली
थाई मांगुर मछली की बिक्री पर सबसे पहले 1998 में केरल में बैन किया गया था। इसके विनाशकारी परिणाम को देखते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल एवं भारत सरकार ने 25 वर्ष पहले सन 2000 में इसके पालन व बिक्री पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा रखा है। इस मछली में आयरन एवं लेड की मात्रा अधिक होती है। लिहाजा यह मानव समाज एवं जलीय वातावरण दोनों के लिए खतरनाक है। इतना ही नहीं मात्र तीन से चार महीने में ही इस मछली का वजन आधा किलोग्राम से एक किलोग्राम तक हो जाता है।
मछली मांसाहारी होती है
मछलियों को इस वजन में आने के लिए सात से आठ महीने लगते हैं। इसके अलावा यह मछली मांसाहारी होती है। यह इंसानों का मांस भी खा जाती है। साथ ही जिस तालाब में पाली जाती है उस तालाब की छोटी मछलियां एवं जलीय कीड़ों को खाकर तालाब का वातावरण खराब कर देती है। बावजूद अनुमंडल क्षेत्र के विभिन्न बाजारों सहित ग्रामीण स्तर पर लगने वाले सप्ताहिक हाट में उक्त प्रतिबंधित मछलियां धड़ल्ले से बेची व खरीदी जा रही है। विभाग इस कदर लापरवाह है कि इस पर रोक लगाने की तनिक भी फुर्सत नहीं मिल रही है।
प्रतिबंधित होने के बावजूद यदि यह मछली प्रखंड क्षेत्र के बाजारों में बिक रही है तो यह गंभीर विषय है। मत्स्य विभाग द्वारा इसकी खरीद-बिक्री पर रोक नहीं लगाया जाना उसकी उदासीनता एवं लापरवाही को दर्शाता है। हर हाल में प्रतिबंधित मछलियों की खरीद-बिक्री बंद कराई जाएगी।
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अमरेंद्र कुमार, बीडीओ, पुरैनी
सुप्रीम कोर्ट व राष्ट्रीय मत्स्य आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो एनबीएफजीआर ने भी सख्त चेतावनी जारी कर इसे भारत के लिए खतरनाक प्रजाति का मछली घोषित किया है। लिहाजा बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, महाराष्ट्र, केरल आदि ने इसके पालन, बिक्री सहित परिवहन पर प्रतिबंध लगाया है। थाई मांगुर मछली के लगातार सेवन से कैंसर, लीवर व किडनी नुकसान, त्वचा रोग एवं हार्मोन असंतुलन जैसे खतरे बढ़ जाते हैं।
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डा. राजेश कुमार, प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी, सीएचसी, पुरैनी |