प्रो. निरंजन कुमार, अध्यक्ष, मूल संवर्धन पाठ्यक्रम समिति एवं डीन (प्लानिंग), दिल्ली विश्वविद्यालय
रितिका मिश्रा, नई दिल्ली। राजधानी की शिक्षा व्यवस्था के लिए वर्ष 2025 नीतिगत सक्रियता, संरचनात्मक बदलाव और संस्थागत मजबूती का वर्ष रहा। स्कूलों से लेकर विश्वविद्यालयों तक कई अहम कदम उठाए गए, जिनसे व्यवस्था में पारदर्शिता, विस्तार और गुणवत्ता सुधार के संकेत स्पष्ट दिखाई दिए। लेकिन यह भी सच है कि विकसित भारत बनाने के लिए शिक्षा व्यवस्था को स्थिर नीतियों, पर्याप्त संसाधनों और मजबूत क्रियान्वयन की सतत आवश्यकता है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
यह कहना है दिल्ली विश्वविद्यालय में मूल संवर्धन पाठ्यक्रम समिति एवं डीन (प्लानिंग) के अध्यक्ष प्रो. निरंजन कुमार का। उन्होंने बताया कि स्कूल स्तर पर फीस नियमन, गैर-मान्यता प्राप्त स्कूलों के नियमितीकरण और डिजिटल मूल्यांकन की दिशा में उठाए गए कदम अभिभावकों के लिए राहतकारी रहे और व्यवस्था की जवाबदेही बढ़ाने में सहायक साबित हुए।
हालांकि, चुनौती यह है कि निगरानी और नियमन के बीच शिक्षा गुणवत्ता और वित्तीय संतुलन प्रभावित न हो। नीति-निर्माताओं के लिए यह संतुलन बनाए रखना आने वाले समय की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। उच्च शिक्षा के स्तर पर वर्ष 2025 उल्लेखनीय रहा। दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) ने नैक के दूसरे मूल्यांकन में ए ग्रेड प्राप्त कर शैक्षणिक विश्वसनीयता को नई ऊंचाई दी।
डीयू की अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग में सुधार, एनआईआरएफ रैंकिंग 2025 में अपने प्रदर्शन में सुधार, खासकर विश्वविद्यालय कैटेगरी में पांचवें और रिसर्च कैटेगरी में 12वें स्थान पर आकर, साथ ही कालेज कैटेगरी में टाप पांच में सभी डीयू के कालेज होने से डीयू भारत के शीर्ष संस्थानों में से एक बन गया है।
पहली बार चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम का सुचारू क्रियान्वयन, भगवद्गीता पर आधारित चार नए समसामयिक पाठ्यक्रम और वीर सावरकर कालेज के निर्माण की नींव शिक्षा भारतीय ज्ञान परंपरा को नई दिशा देते हैं।
इसके साथ ही वैल्यू एडीशन कोर्स कमेटी द्वारा संकाय संवर्धन कार्यक्रम चलाना, डुएल डिग्री प्रोग्राम का आरंभ, पीएचडी कोर्सवर्क सुधार, नई एंटी-रैगिंग गाइडलाइंस और 84 हजार से अधिक छात्रों को डिग्री देना संस्थागत परिपक्वता का संकेत देते हैं। हालांकि, छात्रावास सुविधाएं जैसे कुछ मुद्दे अभी भी चुनौती हैं जिस पर तेजी से काम हो रहा है।
इग्नू में पहली महिला कुलपति की नियुक्ति, जेएनयू में यूजीसी नेट/ सीएसआईआर-नेट/ गेट स्कोर का उपयोग और डुअल एडमिशन साइकिल (साल में दो बार प्रवेश) लागू करके प्रवेश प्रणाली में सुधार, और आईआईटी-दिल्ली द्वारा यूनिवर्सिटी ऑफ क्वींसलैंड के साथ संयुक्त पीएचडी कार्यक्रम जैसे कदम उच्च शिक्षा को अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा, गुणवत्ता शोध और वैश्विक सहयोग के नए अवसर देते हैं।
वहीं सीबीएसई द्वारा वर्ष में दो बार बोर्ड परीक्षा, मूल्यांकन सुधार और क्षमता आधारित सिस्टम को बढ़ावा देना भविष्य-उन्मुख शिक्षा माडल को मजबूती देता है। हालांकि, इसके लिए शिक्षकों के प्रशिक्षण और संसाधन मजबूती की बड़ी आवश्यकता बनी हुई है।
कुल मिलाकर 2025 ने यह सिद्ध किया कि शिक्षा व्यवस्था अब सिस्टम चलाने से आगे बढ़कर सिस्टम सुधारने की दिशा में सक्रिय है। लेकिन प्रदूषण के कारण बाधित शैक्षणिक कार्य, डिजिटल असमानता, विश्वस्तरीय संसाधनों की कमी और निजी-सरकारी शिक्षा के बीच गुणवत्ता अंतर अभी भी चुनौतियां हैं।
समग्र रूप से देखें तो 2025 को शिक्षा सुधार का निर्णायक मोड़ कहा जा सकता है, जहां दिशा स्पष्ट है, अब मंजिल तक पहुंचने के लिए निरंतर, स्थिर और समावेशी प्रयास जरूरी हैं। बस जरूरत है कि सरकार, संस्थान, शिक्षक और समाज सहयोग और साझेदारी आधारित दृष्टिकोण अपनाकर चलें।
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