जागरण संवाददाता, ग्रेटर नोएडा। बच्चे के रोने के दौरान या डायपर बदलते समय अंडकोश में दर्द और सूजन की आ रही परेशानी तो जन्मजात हाइड्रोसील या हार्निया हो सकती है। डॉक्टरों का मानना है कि जन्म के समय में बच्चों के अंडकोश में तरल पदार्थ के जमा होने के कारण होती है। यह जन्म के समय मौजूद होता है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
यह रोग लड़कों के मुकाबले लड़कियों में कम पाया जाता है। राजकीय आयुर्विज्ञान संस्थान (जिम्स) के सर्जरी विभाग के प्रोफेसर डॉ. मोहित माथुर ने बताया कि जन्म से पहले, अंडकोष पेट से अंडकोश में एक छोटे से मार्ग से उतरते हैं। इसे प्रोसस वेजिनेलिस कहा जाता है।
आम तौर पर, यह मार्ग जन्म से पहले बंद हो जाता है। यदि यह खुला रहता है, तो तरल पदार्थ अंडकोश में बह सकता है। इससे जन्मजात हाइड्रोसील हो सकता है और यदि आंत्र आता है तो इसे जन्मजात हर्निया कहा जाता है।
हालांकि अधिकतर यह दर्द रहित होता है। यह बच्चे के स्वास्थ्य या भविष्य की प्रजनन क्षमता को प्रभावित नहीं करता है। अक्सर माता-पिता को अंडकोष के एक या दोनों तरफ एक नरम, दर्द रहित सूजन दिखाई दे सकती है। दिन के समय या जब बच्चा रोता है तो सूजन बढ़ सकती है और जब बच्चा सो रहा होता है तो सूजन कम हो सकती है।
तेजी से आकार बढ़ने के साथ आती है सूजन
आमतौर पर हाइड्रोसील में तत्काल उपचार की आवश्यकता नहीं होती है। ज्यादातर मामलों में, जब बच्चा एक-दो साल का होता है, तब हाइड्रोसील अपने आप ठीक हो जाता है, लेकिन हर्निया के मामले में जल्दी सर्जरी की सलाह दी जाती है। आंत फंसने की संभावना रहती है।
इस दौरान आकार बढ़ने के साथ ही दर्द और लालिमा के साथ पेट में सूजन या उल्टी हो रही हैं, तो तुरंत डाक्टरी परामर्श लेना चाहिए। इसकी सर्जरी के बाद पुनरावृत्ति को रोकने के लिए प्रक्रिया योनि झिल्ली को बंद कर दिया जाता है। सही सर्जरी होने पर इसकी पुनरावृत्ति बहुत दुर्लभ है।
समाज में प्रचलित इन धारणाओं से चाहिए बचना
जन्मजात हाइड्रोसील व हर्निया विकास संबंधी स्थिति है। यह जन्म से पहले होती है। इसके लिए कोई दवा नहीं है। समाज में कई गलत धारणाएं प्रचलित हैं, जैसे कान छिदवाना, सिक्के रखना और दागना, झाड़ फूंक। इनसे बचना चाहिए। |